विश्व स्तर पर ‘द ग्रीन डील’ या ‘द ग्रेट ग्रीन डील’ जैसे प्रस्तावों पर जो चर्चा हो रही है‚ वे मूलतः इसी सोच से जुडी है कि न्याय–समता व पर्यावरण की रक्षा को जोडते हुए कोई बडी पहल की जाए। इन सरोकारों का महत्व इस कारण और बढ जाता है कि विश्व के अति प्रतिष्ठित वैज्ञानिक अब कह रहे हैं कि जलवायु बदलाव जैसी कुछ गंभीर पर्यावरण समस्याओं व महाविनाशक हथियारों की मार से अब धरती की जीवनदायिनी क्षमता भी खतरे में पड गई है
विश्व स्तर पर जिन समस्याओं को सबसे गंभीर माना गया है‚ उनके समाधान में देर होने पर जाने–माने विशेषज्ञ व वैज्ञानिक बार–बार चिंता प्रकट कर रहे हैं। इसका एक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि असरदार समाधानों के लिए विभिन्न देशों में अभी वह समर्थन व भागीदारी नहीं मिल पा रही है‚ जिनकी जरूरत है। महाविनाशक हथियारों की होड हो या अंतरिक्ष युद्ध की आशंका हो‚ सभी मानते हैं कि यह बहुत गंभीर समस्याएं हैं। पर जमीनी स्तर पर‚ आम लोगों के स्तर पर यह कोई बडा मुद्दा नहीं बनते हैं क्योंकि सामान्य मान्यता यह है कि यह तो विश्व के बडे नेताओं के बडे समझौतों के मुद्दे हैं। इनमें भला जनसाधारण की क्या भूमिका हैॽ
यह सच है कि इतने पेचीदे अंतरराष्ट्रीय मुद्दों पर जनसाधारण की सीधी या प्रत्यक्ष भागीदारी कठिन है‚ दूसरी ओर यह भी सच है कि यदि आम लोगों में ऐसे मुद्दों पर बहुत जागृति हो व विश्व शांति व निशस्त्रीकरण के पक्ष में उनकी ओर से दुनिया भर में सशक्त आवाज यदि उठे तो बडी समस्याओं के समाधान में जरूर मदद मिलेगी। अतः विश्व के करोडों लोगों के अमन–शांति के आंदोलन से जुडने की निश्चित तौर पर एक बहुत महत्वपूर्ण भूमिका है। विभिन्न स्तरों पर इस आंदोलन की अलग तरह की सार्थकता हैं। जो हिंसा हमारे दैनिक जीवन में हमारे आसपास मौजूद है‚ करोडों लोग उसमें प्रतिदिन आहत होते हैं। तरह–तरह की महिला विरोधी हिंसा‚ बाल–हिंसा‚ घरेलू हिंसा‚ मानसिक व भावनात्मक हिंसा‚ सांप्रदायिक व जातिगत हिंसा‚ निर्धन विरोधी हिंसा व अत्याचार दमन‚ हत्या–अपहरण आदि के आंकडों को विश्व स्तर पर देखा जाए तो एक युद्ध जैसी स्थिति ही नजर आती है।
यदि हर स्तर पर अमन–शांति के प्रयास बढते हैं‚ अहिंसा की सोच मजबूत होती है व इन सभी तरह की दैनिक जीवन की हिंसा में महत्वपूर्ण कमी आती है तो इससे लोगों को बहुत राहत मिलेगी। उनके सामने यह और स्पष्ट होगा कि हिंसा में व हिंसक सोच में कमी आने से जिंदगी में कितनी खुशी आती है। इस तरह अमन–शांति के विश्व आंदोलन की परिवार व मोहल्ले के स्तर पर‚ शिक्षा संस्थानों के स्तर पर एक मजबूत बुनियाद तैयार हो सकती है। विश्व में करोडों लोग इससे मजबूती से जुड सकते हैं। फिर अमन–शांति की उनकी सोच का विस्तार हो सकता है। अधिक व्यापक तरह की हिंसा को कम करने के उनके प्रयास तेज हो सकते हैं। इसमें निशस्त्रीकरण को आगे बढाने‚ महाविनाशक हथियारों के विश्व भंडार को न्यूनतम करने‚ युद्ध की आशंका को पूरे विश्व में न्यूनतम करने जैसे विश्व के सबसे महत्वपूर्ण मुद्दे भी जुड सकते हैं। इस तरह करोडों लोगों की आवाज विश्व शांति के पक्ष में निरंतरता से व मजबूती से उठेगी तो सबसे जटिल व गंभीर समस्याओं के समाधान में भी मदद मिलेगी। जब इतने लोग निरंतरता से महत्वपूर्ण मुद्दों पर सोचेंगे‚ तो वह अनेक तरह के रचनात्मक सुधार भी सामने रखेंगे और इनसे अवश्य सहायता मिलेगी। इसी तरह जो पर्यावरण की सबसे गंभीर समस्याएं हैं आज विश्व के सामने हैं‚ उनके समाधान में बहुत मदद मिलेगी यदि जमीनी स्तर पर पर्यावरण की रक्षा का प्रयास मजबूत होगा। इसमें एक बाधा यह है कि पर्यावरण के मुद्दे अभी निर्धन व कमजोर वर्ग के बीच मजबूती नहीं पा सके हैं। इन मुद्दों को कमजोर व निर्धन वर्ग से जोडना चाहिए।
विश्व में हरियाली बढानी है‚ जल व मिट्टी संरक्षण करना है‚ तो इन सब कार्यों में सबसे बडा योगदान मेहनतकश वर्ग से ही मिलेगा। अतः क्यों न पर्यावरण रक्षा के कार्यों को कमजोर वर्गो में बहुत बडे पैमाने पर टिकाऊ रोजगार के सृजन से जोडा जाए‚ ऐसे रोजगार से जो पर्यावरण की रक्षा को आगे बढाने वाले कार्यों से जुडा हो। विश्व स्तर पर ‘द ग्रीन डील’ या ‘द ग्रेट ग्रीन डील’ जैसे प्रस्तावों पर जो चर्चा हो रही है‚ वे मूलतः इसी सोच से जुडी है कि न्याय–समता व पर्यावरण की रक्षा को जोडते हुए कोई बडी पहल की जाए। इन सरोकारों का महत्व इस कारण और बढ जाता है कि विश्व के अनेक अति प्रतिष्ठित वैज्ञानिक व विशेषज्ञ अब कह रहे हैं कि जलवायु बदलाव जैसी कुछ गंभीर पर्यावरण समस्याओं व महाविनाशक हथियारों की मिली–जुली मार से अब धरती की जीवनदायिनी क्षमता भी खतरे में पड गई है। इसे समकालीन विश्व की सबसे गंभीर समस्या भी बताया जा रहा है। अब इसके समाधानों में जाएं तो हमें वहीं प्राथमिकताएं नजर आती हैं जो पहले से मौजूद हैं व सबसे जरूरी जिम्मेदारियों के रूप में पहचानी गई हैं–पर्यावरण की रक्षा व अमन–शांति को विश्व भर में इस तरह से‚ इस राह पर मजबूत करना जो न्याय व समता के अनुकूल हो।
लोकतंत्र व पारदर्शिता के माहौल में ही यह समाधान बेहतर ढंग से आगे बढ सकेंगे। सामाजिक समरसता के माहौल में इन समाधानों से लोग अधिक उत्साह से जुड सकेंगे। इन सभी प्रयासों में हमें केवल मनुष्यों की रक्षा के बारे में नहीं‚ सभी जीवन–रूपों की रक्षा के बारे में सोचना होगा‚ उनकी व उनके आश्रय–स्थलों की भी रक्षा करनी होगी। इस तरह यह स्पष्ट होता है कि जो न्याय‚ समता‚ जीवन के सभी रूपों की रक्षा‚ लोकतंत्र‚ पारदर्शिता‚ पर्यावरण–रक्षा व सामाजिक समरसता के मुद्दे पहले जन–कल्याणकारी‚ धरती की रक्षा की सोच के महत्वपूर्ण पक्ष रहे हैं‚ उनकी सार्थकता व महत्व आज भी पहले की तरह ही बने हुए हैं। बडी समस्याओं के समाधान के लिए भी यह सभी प्राथमिकताएं बहुत उपयोगी सिद्ध होंगी। जरूरत इस बात की है कि इनके आपसी अंतर्संबंधों को बेहतर ढंग से स्थापित कर इन सभी को मजबूत किया जाए। इसी तरह अमन–शांति‚ न्याय व पर्यावरण के प्रयास जुडे तो वे तीनों ही आपसी सहयोग से मजबूत होते हैं।
इसके साथ यह जरूरी है कि जमीनी स्तर पर इन सभी सरोकारों और प्रयासों को अधिक मजबूती मिले। इन मुद्दों को जमीनी स्तर पर मजबूत किया जाए ताकि इनपर निरंतरता व उत्साह से कार्य करने वाले करोडों लोग दुनिया भर में सक्रिय हों। इन मुद्दों को इस तरह आगे बढाया जाए कि इनसे जनसाधारण के दुख–दर्द कम हो‚ उनको राहत मिले‚ उनके जीवन में खुशहाली बढे। इस तरह जो नई संभावनाएं खुलती हैं उनमें बडी संख्या में आम लोग आपसी सहयोग को बढाते हुए दुनिया की बडी समस्याओं के समाधान में भी उल्लेखनीय व अहम भूमिका निभा सकते हैं। विशेषकर करोडों लोगों के सशक्त समर्थन से वे इन समाधान के लिए उचित माहौल बना सकते हैं‚ रचनात्मक सुझावों को भी सामने ला सकते हैं व अपनी भागीदारी से क्रियान्वयन में भी महत्वपूर्ण योगदान दे सकते हैं।