देश के प्रथम सीडीएस जनरल बिपिन रावत और अन्य सैनिकों की शहादत से पूरा देश सदमे में है। कुन्नुर में हुआ यह दर्दनाक हादसा पहला नहीं है। भारत के इतिहास में ऐसे दर्जनों हादसे हुए हैं‚ जिनमें देश के सैनिक‚ नेता और अन्य अति विशिष्ट व्यक्तियों ने अपनी जान गंवाई है। सवाल यह है कि क्या हम इन हादसों से कुछ सबक ले पाए हैंॽ जिस एमआई सीरिज के रूसी हेलिकॉप्टर में जनरल बिपिन रावत सवार थे वो बेहद भरोसेमंद हेलिकॉप्टर माना जाता है। दुर्घटना का कारण क्या था यह तो जांच के बाद ही सामने आएगा परंतु जिस तरह हम अन्य विषयों में तकनीक की मदद से तरक्की कर रहे हैं‚ उसी तरह वीआईपी हेलिकॉप्टर यात्रा में आधुनिक तकनीक का प्रयोग क्यों नहीं कर रहेॽ
इस हादसे के कारण पर तमाम तरह के कयास लगाए जा रहे हैं। पिछले कुछ हादसों की सूची को देखें तो ऐसा भी माना जा रहा है कि वीआईपी उडानों में खराब मौसम के चलते‚ पाइलट के मना करने पर भी वीआईपी द्वारा उडान भरने का दबाव डाला जाता रहा है। फिर वो चाहे २००१ का कानपुर का हादसा‚ जिसमें माधवराव सिंधिया ने अपनी जान गंवाई थी‚ हो या फिर ३० अप्रैल‚ २०११ में अरुणाचल प्रदेश के तवांग में हुआ हादसा‚ जिसमें प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री दोरजी खांडू समेत चार लोगों की मौत हुई थी‚ हो। जानकारों की मानें तो रूस में बने इस अत्याधुनिक हेलिकॉप्टर को यदि खतरा हो सकता था तो वो केवल खराब मौसम का ही। गौरतलब है कि वीआईपी उडानों में इस हेलिकॉप्टर को केवल अनुभवी पायलट ही उडाते हैं‚ और ऐसा ही इस उडान के लिए भी किया गया।
वीआईपी यात्राओं के लिए विभिन्न हेलिकॉप्टरों का इस्तेमाल वायु सेना और नागरिक उड़्ड़यन‚ दोनों में होता है परंतु भारत में अभी तक इन उडानों के लिए ‘विजुअल फ्लाइट रूल्ज’ (वीएफआर) ही लागू किए जाते हैं। वीएफआर नियम और कानून के तहत विमान उडाने वाले पायलट को कॉकपिट से बाहर के मौसम की स्थिति साफ–साफ दिखाई देनी चाहिए जिससे उसे विमान के बीच आने वाले अवरोध‚ विमान की उचाई आदि का पता चलता है। इन नियमों को लागू करने वाले नियंत्रक नियम लागू करते समय इन बातों को सुनिश्चित करते हैं कि विमान की उडान के लिए मौसम की स्थिति‚ विजिबिलिटी‚ विमान की बादलों से दूरी आदि उडान के लिए अनुरूप हैं। मौसम के मुताबिक इन सभी परिस्थितियों के अनुसार विमान की उडान जिस इलाके में होनी है‚ वह उस इलाके के अधिकार क्षेत्र के मुताबिक बदलती रहती है। कुछ देशों में तो वीएफआर की अनुमति रात के समय में भी दी जाती है परंतु ऐसा केवल प्रतिबंधात्मक शर्तों के साथ ही होता है। वीएफआर पायलट को इस बात का विशेष ध्यान देना होता है कि उसका विमान न तो किसी अन्य विमान के रास्ते में आ रहा है‚ और न ही उसके विमान के सामने कोई अवरोध है। यदि उसे ऐसा कुछ दिखाई देता है‚ तो अपने विमान को इन सबसे बचा कर उडाना केवल पायलट की जिम्मेदारी होती है। ज्यादातर वीएफआर पायलट ‘एयर ट्रैफिक कंट्रोल’ या एटीसी से निर्धारित रूट पर नहीं उडते‚ लेकिन एटीसी को वीएफआर विमान को अन्य विमानों के मार्ग से अलग करने के लिए वायु सीमा अनुसार‚ विमान में ट्रांसपोंडर का होना अनिवार्य होता है। ट्रांसपोंडर की मदद से रेडार पर इस विमान को एटीसी द्वारा देखा जा सकता है।
यदि वीएफआर विमान की लिए मौसम और अन्य परिस्थितियां अनुकूल नहीं होती हैं‚ तो वह विमान ‘इंस्ट्रुमेंट फ्लाइट रूल्ज’ (आईएफआर) के तहत उडान भरेगा। आईएफआर की उडान ज्यादा सुरक्षित मानी जाती है। जिन इलाकों में मौसम अचानक बिगड जाता है वहां पर उडान भरने के लिए पायलट को विशेष ट्रेनिंग दी जाती है। अन्य देशों में जिन पायलट्स के पास केवल वीएफआर की उडानों की योग्यता होती है‚ उन्हें बदलते मौसम वाले क्षेत्र में उडान भरने की अनुमति नहीं दी जाती।
जनरल रावत के हेलिकॉप्टर को वायु सेना के विंग कमांडर पृथ्वी सिंह चौहान उडा रहे थे। वे सुलुर में १०९ हेलिकॉप्टर यूनिट के कमांडिंग ऑफिसर भी थे। उन्हें इस तरह की उडानों का अच्छा–खासा अनुभव था। विषम परिस्थितियों में उन्होंने इस तरह के हेलिकॉप्टर को कई बार सुरक्षित उडाया। हेलिकॉप्टर को खराब मौसम का सामना करना पडा या उसमें कुछ तकनीकी खराबी हुई‚ इसका पता तो जांच के बाद ही लग सकेगा‚ लेकिन आम तौर पर ऐसे मामले में जांच आयोग पायलट की गलती बता देते हैं‚ लेकिन जानकारों की मानें तो इस हादसे में पायलट की गलती नहीं लगती।
ऐसे हादसों में जांच को कई पहलुओं से गुजरना पडता है। इनमें तकनीकी खराबी‚ पायलट की गलती‚ मौसम और हादसे की जगह की स्थिति महत्वपूर्ण होती हैं। इन सभी विषयों की गहराई से जांच होती है। तभी किसी निर्णय पर पहुंचा जा सकता है। जांच का केवल एक ही मकसद होता है कि आगे से ऐसे हादसे फिर न हों। जब भी कोई हादसा होता है‚ तो तमाम टीवी चैनलों पर स्वघोषित विशेषज्ञों की भरमार हो जाती है‚ जो इस पर अपनी राय व्यक्त करते हैं परंतु कोई भी इस बात पर ध्यान नहीं देता कि भारत में अन्य देशों की तरह वीआईपी हेलिकॉप्टर उडानों के लिए वीएफआर को लागू क्यों किया जा रहा हैॽ भारत के नागर विमानन निदेशालय (डीजीसीए) और वायु सेना को इस बात पर भी अविलंब गौर करना चाहिए। कब तक हम ऐसे और हादसों के साक्षी बनेंगेॽ
यह हादसा पिछले हादसों से अलग नहीं है। बल्कि उन्हीं हादसों की सूची में एक बढ़ता हुआ अंक है। बरसों से वीएफआर के नियम‚ जिन्हें केवल हवाई अड़्ड़ों के नियंत्रण वाली सीमा में ही प्रयोग में लाया जाता है‚ के द्वारा ही हवाई अड़्ड़ों के बाहर और अन्य स्थानों में प्रयोग में लाया जा रहा है जबकि होना तो यह चाहिए कि डीजीसीए और वायु सेना के साझे प्रयासों से वीएफआर की समीक्षा होनी चाहिए और ऐसे हादसों को रोकने के लिए प्रयास किए जाने चाहिए। जरूरी है कि उड़़ानों के सुचारू परिचालन में अड़़चन ड़ालने वाले नियम–कायदों से निजात पा ली जाए।