देश की खातिर अपनी जान की रत्ती भर भी परवाह नहीं करने वालों का नाम स्वर्णाक्षरों में दर्ज होता है। आने वाली पीढ़ियां उनका जिक्र करके गौरव का अनुभव करती हैं। ऐसे लोगों का असमय जाना राष्ट्र की क्षति है। चीफ ऑफ डि़फेंस स्टाफ (सीड़ीएस) जनरल बिपिन रावत समेत १३ लोगों की हवाई हादसे में मौत वाकई बेहद तकलीफदेह है। मगर कुछ लोग ऐसे भी हैं‚ जो शहीदों का अपमान करने में अपनी शान समझते हैं। दरअसल‚ ऐसी गिरी हुई हरकत वैसे शोहदे करते हैं‚ जिनके परिवार ने उन्हें संस्कार से रुबरू ही नहीं कराया।
हवाई दुर्घटना के बाद जहां देश भर में मातम पसरा था‚ वहीं कई चेहरे ऐसे निकले जिनका दिल काला था और सोच सड़़ी हुई। राजस्थान‚ गुजरात‚ मध्य प्रदेश‚ जम्मू और कश्मीर के कई अहसानफरामोशों ने रावत और अन्य अफसरों के निधन पर खुशी जाहिर की। हालांकि उन्हें खोज निकाला गया और अब वो ‘सरकारी मेहमान’ हैं‚ लेकिन इस टुच्चे आचरण से उनकी मनोदशा और देश के प्रति निष्ठा का पता चलता है। इसके उलट कुछ ऐसे लोग भी हैं‚ जिन्हें इस हादसे में जान गंवाने वालों से ज्यादा पीड़़ा इन सैन्य अधिकारियों के खिलाफ प्रतिक्रिया देने वालों से रही। इनमें से एक नाम मलयालम फिल्म निर्देशक अली अकबर और उनकी धर्मपत्नी का है। जनरल रावत के खिलाफ ओछी बयानबाजी से व्यथित होकर अकबर दंपति ने मुस्लिम धर्म को त्याग कर हिंदू धर्म अपनाने का फैसला लिया।
बेशक‚ घटिया और दो कौड़़ी के चरित्र वालों की सही जगह जेल है। इन लोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई होनी चाहिए। यह काम थोड़़ा कठिन भले है‚ किंतु नामुमकिन नहीं है। किसी को भी दूसरे शख्स के बारे में अपमानजनक भाषा का प्रयोग करने से बचना चाहिए। खासकर देश के लिए मर–मिटने वालों के बारे में तो बुरा कहना या सोचना भारी गुनाह है। सरकार अगर ऐसे लोगों के खिलाफ बुरे–से–बुरा सोचे तो जाहिर है देशवासियों को अच्छा लगेगा। निःसंदेह जनरल बिपिन रावत को अपने जीते–जी देश के दुश्मनों की पहचान थी‚ किंतु जाते–जाते भी उन्होंने देश के गद्दारों की पहचान करा दी। हालिया मामले ही नहीं‚ बल्कि बीते काफी समय से देखने में आया है कि सोशल मीडि़या जैसा जरिया अपरिपक्व लोगों के हाथों में पड़़ गया है‚ जिसका उपयोग भड़़ास निकालने के लिए किया जाता है। इस पर लगाम जरूरी है।