बिहार में ३० अक्टूबर को होने जा रहे दो सीटों का उपचुनाव कई मायने में विधानसभा के आम चुनाव पर भी भारी पड़़ रहा है। आलम है कि सत्ताधारी दल और विपक्ष दोनों ने तारापुर व कुशेश्वर स्थान सीट को अपने पाले में करने के लिए एड़़ी–चोटी एक कर सारी ताकत झोंक दी है। दोनों सीटों की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद यादव ने सीधे उपचुनाव प्रचार में इंट्री मारी है‚ जबकि लालू पिछले विधानसभा चुनाव में चुनाव प्रचार से दूर थे। लिहाजा यह उपचुनाव ही नहीं‚ बिहार का चुुनावी महासंग्राम है।
यह उपचुनाव इसलिए भी खासा महत्वपूर्ण है कि राजद व कांग्रेस की पुरानी दोस्ती सीट बंटवारे को लेकर टूट गई। यानी वर्ष २०२४ में होने वाले लोकसभा के महाभारत के पहले महागठबंधन चटक गया। वर्ष २०१५ के विधानसभा चुनाव के समय जो महागठबंधन की नींव ड़ाली गई थी वह धीरे धीरे टुकड़़ों में बंट गई है। जीतनराम मांझी के नेतृत्व वाला ‘हम’ बहुत पहले ही लालू को बाय–बाय कह एनड़ीए खेमे में आ गया था। अब कांग्रेस भी राजद से अलग हो गई। दो सीटों के उपचुनाव में कांग्रेस एक सीट कुशेश्वर स्थान की मांग कर रही थी पर राजद ने कांग्रेस को विश्वास में लिए बगैर दोनों सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े़ कर दिए। नयी परिस्थतियों में कांग्रेस ने सूबे की सभी ४० लोकसभा सीटों पर उम्मीदवार उतारने की घोषणा कर दी है। जाहिर है कि सभी दल वर्ष २०२४ में होने वाले लोकसभा चुनाव को ध्यान में रहकर रणनीति तैयार कर रहे हैं। कांग्रेस कन्हैया समेत कुछ युवा तुर्क को अपने पाले में खींच लाई है और वह बड़ा गेम खेलने की तैयारी है। लेकिन यह विश्लेषण की बात है कि महागठबंधन के विखराव से आखिर सबसे अधिक नुकसान किसे हो रहा है। जनता हमेशा तौल कर वोट देती है। परिवर्तन उसके जेहन में होता है। ऐसे में अगले लोकसभा चुनाव के महाभारत में बड़़ा खेला हो सकता है।
जहां तक ताजा उपचुनाव की बात है लालू प्रसाद यादव के चुनाव प्रचार में कूदने पर राजनीतिक तापमान गरम हो गया है। लालू व नीतीश दोनों उपचुनाव में प्रचार कर चुके हैं। उपचुनाव की दोनों सीटें जदयू की सिटिंग सीटें रही हैं। इसलिए जदयू के लिए ये दोनों सीटें खासा प्रतिष्ठा का विषय बनी हुई हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में ४३ सीटें लेकर जदयू तीसरे स्थान की पार्टी रही। चूंकिं मौजूदा सरकार नीतीश की अगुवाई में चल रही है‚ इसलिए उपचुनाव में जीत या हार के कई अर्थ लगाए जाएंगे। जदयू की पार्टनर भाजपा ने भी जदयू को जीताने के लिए पूरी ताकत लगा दी है। जदयू नेताओं के साथ भाजपा के नेता भी कुशेश्वर स्थान व तारापुर में कैंप किए हैं। भाजपा के नेता अपने –अपने स्तर पर जदयू के पक्ष में प्रचार कर रहे हैं। भाजपा के वरिष्ठ नेता व पूर्व सांसद आर के सिन्हा ने कायस्थ समाज से एनड़ीए के पक्ष में वोट देने की अपील की है। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष ड़ॉ. संजय जायसवाल समेत प्रवक्ता संतोष पाठक‚ अरविन्द सिंह‚ राजीव रंजन‚ अखिलेश सिंह‚ प्रेम रंजन पटेल‚ मनोज शर्मा ने समय–समय पर बयान जारी कर उपचुनाव में एड़ीए उम्मीदवार के पक्ष में गोलबंद करने का संदेश दिया है।
ज्ञात हो कि जिस तरह उपचुनाव में राजद व कांग्रेस के बीच मनमुटाव हुआ है‚ ठीक उसी तरह वर्ष २०१० के विधानसभा चुनाव में इन दोनों के बीच तनातनी के साथ अलगाव हुआ था। वर्ष २०१० के बिहार विधानसभा चुनाव में राजद व कांग्रेस के बीच सीटों को लेकर बात नहीं बन सकी। लिहाजा कांग्रेस ने एकला चलो की राह अपना कर सभी २४३ सीटों पर ताल ठोक दिया। राजद ने लोजपा को नए साथी के रूप में चुना। कांग्रेस वर्ष २०१० के विधानसभा चुनाव में सभी २४३ सीटों पर भाग्य आजमाई थी और उसे मात्र चार सीटों से संतोष करना पड़़ा, कांग्रेस को कुल ८.३८ प्रतिशत मत हासिल हुए। इसी तरह राजद व लोजपा गठजोड़़ में राजद ने कुल १६८ सीटों पर चुनाव लड़़कर २२ सीटें हासिल की। उसे १८.८४ प्रतिशत मत मिले थे। लोजपा को ७५ सीटों में मात्र तीन सीटें हाथ लगीं।