बिहार विधानसभा भवन का शताब्दी समारोह उस सफरनामा का गवाह बनने जा रहा है जहां एक नियत समय में सामाजिक‚ सांस्कृतिक व आर्थिक स्थितियों को लोकतांत्रिक सांचे में ढाला गया। गर्व से यह भी कह सकते हैं कि गुलामी की जंजीर–सी जकड़ी जाने वाली स्थितियों से खरामा–खरामा स्वतंत्र बोध के उदयकाल की पूरी गाथा इस भवन की इट–इट में जज्ब है। इतना भर नहीं‚ नये युग की पटकथा लिख लोकतंत्र के दरवाजे सामाजिक न्याय की पुरजोर दस्तक देने जैसे स्वणम इतिहास की रचयिता बिहार विधानसभा आज समाज सुधार के कई कदमों की आहट के साथ जीवन की हरीतिमा पाने में लगी है। ॥ वर्तमान समाज पुराने से नये युग में प्रवेश कराने को पारित हुए विधेयकों का आज ऋणी है जो निरन्तर एक विकसित समाज की दिशा की ओर उड़़ान भरता रहा। कहना नहीं होगा कि १०० वर्षों के इस सफरनामे का श्रेय हर वर्ष राज्य को नेतृत्व देने वाली उन राजनीतिक सोच‚ नीति नियामकों व उस लोकतांत्रिक सोच को जाता है जहां से अविकसित राज्य से विकासशील राज्य बनने का सफर तय किया गया। अनुमान कर सकते हैं‚ सामंतवाद से लोकतंत्र का गवाह बनतीं बिहार विधानसभा की दीवारें न जाने कितने किस्से–कहानियों को समेटे इंतजार कर रही हैं भविष्य की उन स्थितियों को पाने की जहां सभी को रोजगार‚ हर खेत को पानी व स्वच्छ वातावरण में पल्लवित होते नौनिहालों के चेहरों पर मुस्कान ठहर जाए। जाहिर है‚ इस विशेष समय में बिहार विधानसभा के इतिहास के उन तमाम पन्नों को नहीं पलटा जा सकता। मगर‚ जीवन जहां से सुगमता की राह चढ़ते लोकतंत्र की खूबसूरती की ओर बढ़ा– उन पारित हुए कुछ प्रमुख विधेयकों‚ उठाये गये प्रशासनिक कदमों व नियमावलियों की चर्चा तो कर ही सकते हैं। बिहार केसरी श्रीकृष्ण सिंह (तब प्रधानमंत्री) के कार्यकाल के उस गौरवमय क्षण को याद कर सकते हैं जब उनके नेतृत्व में वर्ष १९३७–३८ में काश्तकारी कानून लाया गया था। इसकी विशेषता और जरूरत को इस बात से समझा जा सकता है कि इस कानून को जमींदारों की प्रताड़़ना से शोषितों को बचाने का पहला सुरक्षा कवच माना जाता है। इनके ही नेतृत्व में राज्य सरकार वर्ष १९४८ में एक कदम आगे बढ़ते हुए जमींदारी उन्मूलन बिल सदन में लायी। इस बिल को जमींदारी उन्मूलन का उद्भव काल माना गया। १९५० में बिहार पहला राज्य बना जहां जमींदारी उन्मूलन को कानून का जामा पहनाया गया। बिहार विधानसभा में उठाये गये उस कदम पर भी चर्चा करने की जरूरत है जब १९५१–६९ तक भूदान आंदोलन के तहत ६ लाख एकड़़ जमीन दान में प्राप्त कर भूमिहीनों को भूमिदार बनाने का प्रयास किया गया। इनके बाद संविद सरकार की भूमिका भी कम महत्वपूर्ण नहीं रही। इस कार्यकाल में बासगीत पर्चा देना‚ भूमि सुधार हेतु पहल करना आदि शामिल हैं। इस सरकार के दौरान भूमि व खेती के लिए गरीबों के बीच भूमि वितरित करने जैसे कदम उठाये गये जिसके काफी दूरगामी प्रभाव भी पड़े़। यहां तक कि बाद में कई भूमि संघर्षों को जन्म भी दिया। जननायक कर्पूरी ठाकुर ने वर्ष १९७० में बतौर मुख्यमंत्री अपने मात्र १६३ दिनों के कार्यकाल में आठवीं तक की पढ़ाई मुफ्त की‚ उर्दू को दूसरी राजकीय भाषा का दर्जा दिया तथा पांच एकड़़ तक की जमीन की मालगुजारी भी माफ कर दी।
१९७९ में दूसरी बार जब कर्पूरी ठाकुर सत्ता में आये तो ओबीसी के लिए आरक्षण लागू करने वाला बिहार पहला राज्य बना। नवम्बर १९७८ में उनके नेतृत्व में सभी वर्गों की महिलाओं व सवर्ण गरीबों को तीन–तीन प्रतिशत तथा ओबीसी के लिए २० प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की गयी। ॥ मुख्यमंत्री के रूप में ड़ॉ. जगन्नाथ मिश्रा ने अपने कार्यकाल में स्कूलों का सरकारीकरण करने की पहल की और इसे २ अक्टूबर १९८० में ठोस रूप देने में सफल भी हुए। सामाजिक न्याय के नेता लालू प्रसाद के कार्यकाल को शिक्षा मित्र बहाल करने‚ मछुआरों को गंगा पर अधिकार देने तथा जलकर समाप्त करने‚ चरवाहा विद्यालय जैसे स्कूलों के प्रयोग के लिए जाना जाता है। सरकारी नौकरियों में कार्यरत महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान दो दिन का अवकाश देने जैसा क्रांतिकारी कदम वर्ष १९९२ में लालू प्रसाद के कार्यकाल में ही उठाया गया।
कृषि रोड़मैप के जरिये सूबे में एक नयी क्रांति लाने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार का भी कार्यकाल बिहार के लिए अत्यंत प्रगतिशील साबित हुआ। इनके कार्यकाल में विकास की नई परिभाषा गढ़ी गई। शिक्षा‚ स्वास्थ्य व समाज सुधार की दिशा में कई नियामक गढ़े गये। वर्ष २००६ में बनी शिक्षक नियोजन नियमावली की बात करें या फिर २०१५ में शिक्षकों के वेतनमान तय करने जैसे प्रगतिशील कदमों की। स्कूलों के इन्फ्रास्ट्रक्चर के साथ शिक्षकों की बहाली शिक्षा जगत में क्रांतिदूत की तरह अवतरित हुई। अपने दूसरे कार्यकाल के दौरान बालिकाओं में शिक्षा की लहर पैदा करने के लिए लाई गई पोशाक योजना‚ साइकिल योजना व छात्रवृत्ति योजना शिक्षा के क्षेत्र में अलख जगाने वाली साबित हुई। इसके फलस्वरूप सरकारी स्कूलों में छात्र–छात्राओं की उपस्थिति काफी बढ़ी। वर्ष २००६ में ही पंचायत चुनाव में महिलाओं को ५० प्रतिशत आरक्षण देकर बिहार देश का अगलधर राज्य बना। इसी साल बिहार को विशेष राज्य का दर्जा दिलाने को लेकर सर्वसम्मति से विधानमंड़ल से प्रस्ताव पारित कराया गया। २०१० में भ्रष्टाचार पर नियंत्रण के लिए भ्रष्टाचार निरोधक व संपत्ति जब्ती कानून भी बनाया गया। मुख्यमंत्रित्व के तीसरे कार्यकाल में नीतीश कुमार का व्यक्तित्व एक समाज सुधारक की तरह दिखा। वर्ष २०१६ में बिहार मद्य निषेध और उत्पाद विधेयक लाना एक अत्यंत क्रांतिकारी कदम था। बाल विवाह‚ दहेज प्रथा को लेकर भी काफी कार्य किये गये। वर्ष २०१८ में जीएसटी संशोधन विधेयक पारित किया गया। इसके बाद एक पैन कार्ड़ पर कई जीएसटी निबंधन कराया जाना संभव हो गया। पृथ्वी पर पर्यावरण संतुलन और जीवन के अस्तित्व को बचाये रखने के लिए जल और पेड़़–पौधों को संरक्षित करना अनिवार्य है। नीतीश सरकार ने इसके लिए जल‚ जीवन‚ हरियाली योजना की शुरुआत २६ अक्टूबर २०१९ में की। वर्ष २०२१ को नई शिक्षा नीति व विशेष सशस्त्र पुलिस विधेयक लाने के लिए याद किया जाएगा।
निर्माण के बाद से इस शताब्दी वर्ष तक बिहार विधानसभा भवन से कितनी ही क्रांतियों के बीज बोये गये जिन्होंने पुष्पित–पल्लवित होकर राज्य को विकास के पथ पर एक नया मुकाम दिलाया और आज हम जहां खड़े़ हैं वहां से यह कहने में कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी कि बहुत जल्द हम विकसित राज्यों से कदमताल कर रहे होंगे। हमारा दृढ विश्वास भी है यह।