गया में पितृपक्ष के मौके पर पितरों के निमित्त पिंडदान से जुड़े अनुष्ठान फल्गु नदी के किनारे देव घाट पर शुरू हो चुके हैं। हजारों की संख्या में देश के विभिन्न कोने से आए लोगों ने फल्गु में स्नान कर श्राद्ध कर्म में जुट गए। फल्गु का किनारा धूप, दीप और सुगंधित अगरबती से सुंगधित हो उठा है। यह क्रियाएं अगले 17 दिनों तक लगातार चलेगी।
मंगलवार से शहर के विभिन्न कोने में स्थिति महत्वपूर्ण पिंडवेदियों पर पिंडदान से जुड़ी क्रिया को पिंडदानी ब्राह्मणों के दिशा-निर्देश में संपन्न कराएंगे। हालांकि, कोराना काल से पूर्व इस मौके पर पहले ही दिन लाखों की संख्या में श्रद्धालु नजर आते थे, जो इस बार नहीं हैं। तीर्थ यात्रियों की संख्या 5-7 हजार के बीच ही पहले दिन सिमटी रही। ब्राह्मणों का दावा है कि श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या सोमवार और मंगलवार के बीच पहुंचने वाली है।
पहले दिन UP, मध्यप्रदेश, ओडिशा, राजस्थान, बंगाल के तीर्थ यात्री अधिक नजर आए। विभिन्न प्रदेशों से आनेवाले तीर्थयात्री अपने परिवार सहित खुद से जुड़े तीन कुलों यानी पिता के कुल, ससुराल के कुल और ननिहाल के कुल के पितरों के मोक्ष के लिए पिंडदान से जुड़े श्राद्ध कर्म में तल्लीन नजर आए। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं के नहीं पहुंचने से पितृ पक्ष में रौनक की कमी है।
यही नहीं इस बार विभिन्न प्रदेशों से आनेवाले तांत्रिक, ओझा-गुणी भी इस बार नजर नहीं आए। जिस स्थान पर फल्गु नदी में ओझा गुणी व तांत्रिक (महिला व पुरुष) स्नान के साथ कुछ घंटों तक साधना करते थे। वह इस बार नहीं दिखे। कुछ जटाधारी दिखे, पर उनके बदन में स्थिरता बनी रही। जबकि, स्नान के पूर्व इनके बदन में गजब के कंपन आते थे, जो कई बार कैमरे में कैद भी नहीं हो पाते थे। यही नहीं तांत्रिक नाराज भी हो जाते थे, लेकिन इस बार ऐसा नहीं रहा। उनके बदन में किसी प्रकार की कोई विशेष हरकत नजर नहीं आई। बड़े सामान्य ढंग से पिंडदान के अनुष्ठान संपन्न होते दिखे।
इधर, तीर्थ सुधारिणी सभा के गजाधर लाल कटरियार ने बताया- ‘इस बार तीर्थयात्री की संख्या पूर्व की भांति नहीं है। तीर्थयात्री पांच हजार से सात हजार के करीब ही हैं। कोविड-19 की गाइडलाइन के तहत सभी पिंडदानियों की व्यवस्था की गई है और उसी के तहत श्राद्ध कर्म संपन्न कराया जा रहा है।’
UP से आए शिवप्रसाद दुबे ने बताया- ’15 दिनों तक यहां रहेंगे और पिंडदान से जुड़े कार्य को संपन्न करेंगे।’ भोपाल से अपने दादा जी के साथ आए मयंक ने बताया- ‘अपने पिता व पूर्वजों का पिंडदान करने आए हैं। यहां सात दिनों तक रहेंगे।’ कोलकाता से आए दुर्गेश भगत ने बताया- ‘मूल रूप से राजस्थान से हैं। यहां पिंडदान करने के लिए आए हैं।’ ओडिशा से परिवार सहित आईं साधना सर्राफ ने बताया- ‘परिवार के सदस्य थाईलैंड से आए हैं। यहां 21 दिनों तक रह कर श्राद्ध कर्म करेंगे। श्राद्ध करने में आनंद आ रहा है।’
पांव पूजन के बाद तर्पण व फल्गु श्राद्ध
पितृपर्व ‘पितृपक्ष’ का आगाज सोमवार से होगा। पांव पूजन के बाद तर्पण व फल्गु श्राद्ध करेंगे। पूर्वजों की मुक्ति की कामना को लेकर पिंडदानी पिंडदान के बाद मोक्षदायिनी फल्गु में पिंड को विसर्जित करेंगे। वहीं 21 सितंबर को पिंडदानी प्रेतशिला, ब्रह्मकुंड, रामकुंड, रामशिला व कागबलि वेदी पर पिंडदान के कर्मकांड को पूरा करेंगे।
दूसरे वर्ष पितृपक्ष मेले का आयोजन नहीं
कोरोना के कारण इस साल भी पितृपक्ष मेले का आयोजन नहीं होगा। मेले के उद्घाटन को लेकर किसी प्रकार का कोई राजकीय महोत्सव नहीं मनाया जाएगा, हालांकि राज्य सरकार द्वारा पिंडदान की अनुमति दी गई है। कोविड 19 गाइडलाइन के साथ तीर्थयात्री पिंडदान की रस्मों को पूरा कर सकते है। जानकारी हो कि वर्ष 2020 में पितृपक्ष मेला पूरी तरह से स्थगित था।
21 को प्रेत पर्वत पर उड़ाया जाएगा सत्तू
21 सितंबर को तीर्थयात्री प्रतिपदा तिथि का श्राद्ध करेंगे। शहर के पश्चिमोत्तर कोण पर स्थित प्रेतशिला पर्वत पर श्राद्ध के कर्मकांड पूरे होंगे। पितरों को प्रेतयोनि से मुक्ति दिलाने के लिए प्रेत पर्वत (धर्मशिला) पर सत्तू उड़ाया जाएगा साथ ही पर्वत पर विराजमान ब्रह्मा, विष्णु व महेश की प्रतिमा का दर्शन भी तीर्थयात्री करेंगे। बता दें कि प्रेत पर्वत के पास ब्रह्मकुंड वेदी पर सोने की लकीरें हैं। कर्मकांड को पूरा करने के बाद इसी वेदी पर पिंड को अर्पित किया जाता है।
विष्णुपद में मेला सा रहता था नजारा
विष्णुपद इलाके में मेला सा नजारा रहता था। लाखों खर्च कर पितृपक्ष मेले के उद्घाटन के लिए भव्य पंडाल बनाए जाते थे। सीएम से लेकर डिप्टी सीएम तक मेले के उद्घाटन में शरीक होते थे। देश के प्रमुख कलाकारों द्वारा सांस्कृतिक कार्यक्रमों की प्रस्तुति दी जाती थी, पर इस बार कोविड 19 को लेकर जिला प्रशासन द्वारा किसी भी प्रकार की कोई व्यवस्था नहीं की गई है।
श्राद्ध के लिए पिंडदानियों का प्रवेश शुरू
पटना, अरवल व बनारस में मार्ग का श्राद्ध कर पिंडदानियों का जत्था गया श्राद्ध के लिए गयाधाम आने वाले है। विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति के कार्यकारी अध्यक्ष शंभु लाल विट्ठल व सचिव गजाधरलाल पाठक ने बताया कि इस बार 17 पिंडदानियों की संख्या में काफी कमी आयी है। तीन व पांच दिन वाले ज्यादा संख्या में तीर्थयात्री होंगे।
त्रिपाक्षिक श्राद्ध का है महत्व
विष्णुपद प्रबंधकारिणी समिति की माने तो पितृपक्ष में ित्रपाक्षिक श्राद्ध का विशेष महत्व है। तीन पीढी के श्राद्ध के लिए तीन पक्ष बना है। भादपद्र पूर्णिमा एक, 15 दिन आश्विन कृष्ण पक्ष और एक दिन आश्विन शुक्ल पक्ष। उन्होंने बताया कि अमावस्या के दिन अक्षयवट में श्राद्ध कर पंडा जी से सफल आशीर्वाद लेने के बाद गायत्री तीर्थ में मातामह (नाना-नानी) के श्राद्ध को पूरा किया जाता है।