अफगानिस्तान की पंजशीर घाटी में तालिबान और नॉर्दर्न अलायंस के लड़ाकों के बीच जबर्दस्त जंग चल रही है। हालांकि रिपोर्ट्स यह भी आईं कि कि तालिबान ने नॉर्दर्न अलायंस के नेताओं अहमद मसूद और अमरुल्ला सालेह को बातचीत करके समझौता करने का न्योता दिया था। दोनों संगठनों के बीच बात भी हुई, लेकिन फिलहाल नॉर्दर्न अलायंस ने पीछे हटने से इनकार कर दिया है और तालिबान को चुनौती दे रहा है। इस बीच तालिबान ने यह खबर फैलाई कि अमहद मसूद ने उससे हाथ मिला लिया है, लेकिन मसूद ने बयान देकर साफ कर दिया कि वह अमरुल्ला सालेह के साथ हैं और आखिरी सांस तक पंजशीर घाटी की रक्षा करेंगे।
दूसरी बड़ी खबर यह आई है कि अफगानिस्तान पर कब्जे के बाद तालिबान ने जेलों में बंद जिन आतंकवादियों को रिहा किया हैं, उनमें से 2,300 आंतकवादी पाकिस्तान के आतंकी संगठनों से जुड़े हुए हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, इन आतंकवादियों को तालिबान ने अमेरिकी फौज से लूटे हुए हथियार सौंप दिए हैं और अफगानिस्तान की जेलों से छूटे इन दहशतगर्दों में से ज्यादातर अब पाकिस्तान पहुंच गए हैं। यह भारत के लिए चिंता की बात है, हालांकि हमारी सुरक्षा एजेसियां सतर्क हैं। सीमा पर और नियंत्रण रेखा के आसपास चौकसी बढ़ा दी गई है।
अफगानिस्तान में तीसरा बड़ा डिवेलपमेंट यह हुआ है कि तालिबान से संबंधित जिन कट्टर आतंकी सरगनाओं पर अमेरिका ने अच्छे-खासे इनाम की घोषणा की थी, वे अब मंत्री बन गए हैं या अफगानिस्तान में महत्वपूर्ण पदों पर काबिज हो गए हैं। इनमें से कुछ आतंकी सरगना अपने समर्थकों को अहम पदों पर तैनात करने में बड़ी भूमिका अदा कर रहे हैं। इनमें से हक्कानी नेटवर्क के सरगना सिराजुद्दीन हक्कानी का चाचा खलीलुर रहमान हक्कानी एक बड़ा नाम है।
खलीलुर रहमान हक्कानी सरकार का कामकाज देखने के लिए तालिबान द्वारा गठित 12 सदस्यों वाली काउंसिल का हिस्सा है। इस काउंसिल में एक अन्य दहशतगर्द तंजीम का सरगना गुलबुद्दीन हिकमतयार, दिवंगत मुल्ला उमर का बेटा मुल्ला याकूब, अब्दुल गनी बरादर, पूर्व राष्ट्रपति हामिद करजई और अब्दुल्ला अब्दुल्ला शामिल हैं। यह काउंसिल तालिबान के अमीर मौलाना हैबतुल्ला अखुंदजादा के अधीन काम करेगी।
खलीलुर रहमान हक्कानी पेशावर स्थित हक्कानी नेटवर्क के शीर्ष कमांडरों में से एक है। हक्कानी नेटवर्क ने अफगानिस्तान पर कब्जा करने में तालिबान की मदद करने के लिए कम से कम 6 हजार आतंकियों को भेजा था। तालिबान ने खलीलुर रहमान हक्कानी को अफगानिस्तान की राजधानी काबुल का सिक्यॉरिटी इंचार्ज बनाया है। आपको जानकर हैरानी होगी कि खलीलुर रहमान हक्कानी एक मोस्ट वॉन्टेड आतंकवादी है। अमेरिका ने 2011 से ही इसे दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादियों की लिस्ट में डाला हुआ है और उस पर 50 लाख डॉलर (लगभग 37 करोड़ रुपये) के इनाम का ऐलान किया हुआ है।
सोचिए कि अमेरिका की जो सेनाएं पिछले कई सालों से इस आतंकवादी को ढूंढ रही थी, वह काबुल एयरपोर्ट पर तैनात अमेरिकी सैनिकों से कुछ ही मिनटों की दूरी पर मौजूद है। एयरपोर्ट के अन्दर अमेरिकी सैनिक तैनात हैं, स्पेशल कमांडो ऐक्टिव हैं, और एय़रपोर्ट के बाहर ये सरगना खड़ा है, लेकिन अमेरिका चाहकर भी कुछ नहीं कर सकता। तालिबान से उसका जो शांति समझौता है उसके मुताबिक 31 अगस्त तक, जब तक कि निकासी का काम खत्म नहीं होता, तालिबान काबुल एयरपोर्ट के अंदर नहीं जा सकता और अमेरिका एयरपोर्ट के बाहर कार्रवाई नहीं कर सकता। इसीलिए खलील हक्कानी जैसा आतंकवादी खुलेआम काबुल की सड़कों पर टहल रहा है, और न्यूज चैनल्स को इंटरव्यू देकर दावा कर रहा है कि तालिबान बदल गया है और अहमद मसूद तालिबान के साथ आना चाहते हैं।
खलीलुर हक्कानी तालिबान के लिए पैसे की उगाही करने का काम करता था। उसकी गतिविधियों के बारे में अमेरिका के ट्रेजरी डिपार्टमेंट की वेबसाइट पर विस्तार से बताया गया है। उसके संबंध अल कायदा से भी रह चुके हैं और वह उसके टेरर ऑपरेशंस में शामिल रह चुका है। अमेरिका ने 9 फरवरी 2011 को उसे मोस्ट वॉन्टेड आतंकवादी घोषित किया गया था, और उसके सिर पर 50 लाख डॉलर के इनाम का ऐलान किया था। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई ने हक्कानी को 20 साल तक अमेरिका की सेनाओं से छिपाकर सुरक्षित रखा। अब जबकि अफगानिस्तान पर तालिबान का कब्जा हो गया है, तो उसने अपना बेस पेशावर और उत्तरी वजीरिस्तान से काबुल में शिफ्ट कर लिया। जो शख्स कुछ दिन पहले तक जान बचाकर छिपता हुआ घूम रहा था, वह आज अफगानिस्तान में बैठकर तालिबान के राज में सबको माफी का ऐलान कर रहा है।
तालिबान में इस वक्त पाकिस्तान के हक्कानी नेटवर्क के जो आतंकवादी सक्रिय हैं उनमें सिराजुद्दीन हक्कानी के भाई अनस हक्कानी का नाम भी शामिल है। अफगानिस्तान पर तालिबान के कब्जे के बाद अनस अब काबुल में नेशनल रिकंसीलिएशन काउंसिल के सदस्यों से मुलाकात कर रहा है। अनस पाक-अफगान बॉर्डर पर सक्रिय था और उसे अफगान सुरक्षा बलों ने 2014 में गिरफ्तार किया था। अनस को 2016 में मौत की सजा सुनाई गई थी, लेकिन बंधक बनाए गए अमेरिकन यूनिवर्सिटी ऑफ अफगानिस्तान के 2 प्रोफेसरों को छोड़ने के बदले में 2019 में उसे 2 अन्य तालिबान कमांडरों के साथ रिहा कर दिया गया था।
हक्कानी खानदान के तीसरे सदस्य और गिरोह के सरगना सिराजुद्दीन हक्कानी के भी काबुल में होने की खबर है। सिराजुद्दीन हक्कानी काबुल में एक फाइव स्टार होटल पर 2008 में हुए बम हमले, 2012 में खोस्त में अमेरिकी आर्मी के बेस पर हुए हमले और 2017 में काबुल में जर्मन दूतावास के बाहर हुए आत्मघाती हमले का मास्टरमाइंड है। संयुक्त राष्ट्र और अमेरिका ने सिराजुद्दीन हक्कानी को ग्लोबल टेररिस्ट घोषित किया है। अमेरिका ने सिराजुद्दीन हक्कानी पर एक करोड़ डॉलर (74 करोड़ रुपये) के इनाम की घोषणा की है। लेकिन अब सिराजुद्दीन हक्कानी तालिबान में मुल्ला अब्दुल गनी बरादर के बाद दूसरा सबसे ताकतवर नेता है।
काबुल पर तालिबान के कब्जे के बाद पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी के लेफ्टिनेंट जनरल फैज हमीद ने खुद मुल्ला बरादर से मुलाकात की थी। उन दोनों ने एक साथ नमाज भी अदा की थी। बुधवार की रात अपने प्राइम टाइम शो ‘आज की बात’ में हमने कुछ तस्वीरें दिखाई थीं जिनमें दोनों एक साथ नजर आ रहे थे। तालिबान और हक्कानी नेटवर्क के साथ आईएसआई के रिश्ते की बातें हम भारतीयो के लिए नई हो सकती हैं, लेकिन पाकिस्तान में बच्चे-बच्चे को यह बात पिछले 20 सालों से मालूम है। अब तो पाकिस्तान का आम आदमी भी खुलेआम कह रहा है कि तालिबान की हुकूमत में अफगानिस्तान में वही होगा जो पाकिस्तानी फौज के जनरल चाहेंगे।
तालिबान ने अपने कई पुराने कमांडर्स को मंत्री बनाया है। मुल्ला अब्दुल कयूम जाकिर को अफगानिस्तान का कार्यवाहक रक्षा मंत्री बनाया गया है। वहीं, इब्राहिम सद्र को कार्यवाहक गृह मंत्री और गुल आगा इशाकजई को वित्त मंत्री बनाया गया है।
गुल आगा तालिबान के वित्तीय मामलों के प्रमुख और मुल्ला उमर का बचपन का दोस्त है। वह पिछले 2 दशकों से संयुक्त राष्ट्र के प्रतिबंधों का निशाना बना हुआ है। गुल आगा बलूचिस्तान में सीमा पार के व्यापारियों से टैक्स के नाम पर तालिबान के लिए पैसे इकट्ठा करता था। उसने कंधार में आत्मघाती हमलों के लिए पैसे मुहैया कराए। उसके साथ हाजी मोहम्मद इदरीस को अफगानिस्तान सेंट्रल बैंक का गवर्नर बनाया गया है। हाजी इदरीस भी तालिबान के लिए जबरन वसूली का काम किया करता था।
48 साल का अब्दुल कयूम जाकिर तालिबान के सबसे खूंखार कमांडर्स में से एक है और वह अमेरिका की ग्वान्टानामो जेल में भी कैद रह चुका है। अफगानिस्तान के हेलमंद सूबे में जन्मा कयूम अलीजई कबीले से ताल्लुक रखता है। उसने NATO सुरक्षा बलों पर कई आत्मघाती हमले करवाए। उसे कार और ट्रक बम धमाकों का एक्सपर्ट माना जाता है। उसे 2001 में पकड़कर ग्वान्टानामो जेल भेज दिया गया जहां वह 12 साल तक कैद रहा। उसे और मोहम्मद नबी ओमारी को 2 अमेरिकी सैनिकों के बदले ग्वान्टानामो से रिहा किया गया था।
अफगानिस्तान के नए गृह मंत्री का नाम इब्राहिम सद्र है और वह कंधार से है। इब्राहिम सद्र तालिबान का बड़ा कमांडर है और उसे अल कायदा का बेहद करीबी माना जाता है। अमेरिका की डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी के एक दस्तावेज के मुताबिक, इब्राहिम सद्र अफगानिस्तान पर अमेरिकी कब्जे के बाद पाकिस्तान के पेशावर में जाकर छिप गया था। वह तालिबान के लड़ाकों को हमले के लिए ट्रेनिंग दिया करता था। वह मुल्ला उमर और मुल्ला अख्तर मंसूर का करीबी माना जाता था। 2014 में इब्राहिम तालिबान का मिलिट्री चीफ बना। UNSC की एक रिपोर्ट के मुताबिक, इब्राहिम सद्र ने फिर अपना खुद का मिलिशिया बनाया और कुछ दिन पहले तालिबान ने इसे बैन भी कर दिया था। लेकिन कहीं तालिबान में अंदरूनी बगावत न हो जाए और इब्राहिम सद्र अलग मोर्चा न खोल दे, इसलिए उसे कार्यवाहक गृह मंत्री बनाया गया है।
तालिबान ने अफगानिस्तान के शिक्षा मंत्री के तौर पर अब्दुल बाकी बारी के नाम पर मुहर लगाई है। बारी पिछले 20 सालों से तालिबान के लिए हवाला के पैसे भेजने का काम करता रहा है। वह तालिबान के साथ-साथ अल कायदा को भी पैसे भेजता रहा है। बारी के ताल्लुकात खुद ओसामा बिन लादेन के साथ थे और उसके लिए अफगानिस्तान में सैटलाइट ऑफिस तैयार करवाया था। अब्दुल बाकी बारी आतंकवादियों के बीच ‘तालिबान बैंक’ के नाम से मशहूर है। उसने जबरन वसूली के जरिए इकट्ठा किए गए तालिबान के पैसे को पाकिस्तानी बैंकों में बेनामी तरीके से सुरक्षित रखा । वह 2001 से तालिबान का वित्तीय प्रबंधक रहा है। वह जलालाबाद में आतंकी हमलों का सरगना भी रहा है और उसने 12 साल से अधिक उम्र की सभी अफगान लड़कियों के लिए स्कूल के दरवाजे बंद करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।
नजीबुल्लाह, जिसे ‘अफगानिस्तान का कसाई’ के नाम से जाना जाता है, को तालिबान का इंटेलीजेन्स चीफ बनाया गया है। निर्वासन के दौरान वह तालिबान मिलिट्री इंटेलिजेंस का कमांडर था। वह कई आतंकी हमलों को अंजाम दे चुका है और तालिबान के कई विरोधियों का कत्ल भी करवा चुका है।
बुधवार को भारत के चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ जनरल बिपिन रावत ने कहा कि भारत के लिए तालिबान वही है जो 20 साल पहले था। उन्होंने कहा, ‘केवल उनके साथी अब बदल गए हैं। हम इस बात से ज्यादा चिंतित हैं कि कैसे अफगानिस्तान से आतंकवादी गतिविधियां भारत तक पहुंच सकती हैं।’ जनरल रावत ने चेतावनी दी कि अफगानिस्तान से भारत पहुंचने वाली किसी भी आतंकी गतिविधि से उसी तरह से निपटा जाएगा जिस तरह भारतीय सेनाएं भारत के अंदर निपटती हैं। उन्होंने कहा, ‘ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए आपातकालीन योजनाएं तैयार की गई हैं।’
जनरल रावत ने सही कहा है। तालिबान न बदला है, न बदलेगा, सिर्फ उसके साझेदार बदले हैं। पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई के साथ तालिबान की लंबी साझेदारी है। अमेरिका और नाटो सैनिकों की वापसी के बाद अफगानिस्तान की सरज़मीं से आतंकी गतिविधियां निश्चित रूप से बढ़ेंगी। पाकिस्तानी सेना ने जिन आतंकवादियों को ट्रेनिंग दी थी, वे अब अफगानिस्तान में महत्वपूर्ण पदों पर हैं और वे भारत के लिए परेशानियां पैदा कर सकते हैं।