राष्ट्रीय हितों को शुद्ध लक्ष्य माना जाए तो इस समय हमारी वैदेशिक नीति सिर के बल खड़ी नजर आती है। कोरोना से हाहाकार और लोगों के चीत्कार के चित्र पूरी दुनिया को विचलित कर रहे हैं‚ वहीं भारत सरकार की महामारी से निपटने में विफलता को राजनीतिक अदुर्द्र्शिता की तरह देखा जा रहा है। दरअसल‚ भारत की वैक्सीन डिप्लोमेसी की नीति और उसके बाद देश में हालात बद से बदतर होने पर विदेशों से सहायता की गुहार लगाने से एक मजबूत नजर आने वाले राष्ट्र की छवि को गहरा धक्का पहुंचा है। चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के एक सोशल मीडिया अकाउंट से भारत में कोरोना संकट का मजाक बनाया गया है। इसमें एक चित्र में एक ओर भारत में चिताएं जल रही हैं‚ वहीं चीन का राकेट अंतरिक्ष में जाने को तैयार है। दुनिया भर के समाचार पत्रों में भारत के अस्पतालों की बदहाली‚ रोते–बिलखते लोग‚ जलती चिताओं के ढेर‚ ऑक्सीजन के लिए लगी लंबी कतारें‚ श्मशान के बाहर परिजनों की अंत्येष्टि की प्रतीक्षा करते लोग‚ दाह संस्कार के ताप से गल चुकी चिमनियां और सरकारी विफलता को प्रमुखता से छापा जा रहा है। ‘गार्जियन ने विशेषज्ञों के हवाले से इस संक्रमण की वजहें बताते हुए लिखा है‚ वायरस गायब हो गया है। यह गलत तरीके से समझते हुए सुरक्षा उपायों में बहुत जल्दी ढील दे दी गई। शादियों और बड़े त्योहारों को आयोजित करने की अनुमति थी और मोदी स्थानीय चुनावों में भीड़ भरी चुनावी रैलियां कर रहे थे।
भारत के पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने करीब डेढ़ दशक पहले विदेशी स्त्रोतों से अनुदान एवं सहायता न लेने का फैसला किया था। इस नीति का पालन आपदाओं के समय भारत ने बखूबी किया भी था। 2013 में उत्तराखंड बाढ़ और 2014 की कश्मीर बाढ़ के समय भारत ने विदेशी सहायता लेने से इंकार कर दिया था। इस समय दुनियाभर से मदद के हाथ बढ़े तो हैं लेकिन भारत सरकार की अदुर्द्र्शिता पर भी निशाना साधा जा रहा है। साइंस जर्नल नेचर की रिपोर्ट है कि वैज्ञानिकों की सलाह न मानकर भारत सरकार ने कोरोना नियंत्रण का अच्छा मौका खो दिया। भारत ने अपने नागरिकों की सुरक्षा को उम्र के अनुसार तय करते हुए 80 से ज़्यादा देशों में कोरोना वैक्सीन की तकरीबन साढ़े छह करोड़़ डोज पहुंचाई है‚इसमें अमेरिका और ब्रिटेन भी शामिल है। भारत में इस साल ऑक्सीज़न का बेहतर उत्पादन हुआ लेकिन इसे विदेशों में निर्यात कर दिया गया। भारतीय कंपनियों से वैक्सीन को लेकर भारत सरकार ने ऐसा कोई करार नहीं किया जिससे देश के सभी नागरिकों को वैक्सीन की उपलब्धता जल्दी सुनिश्चित हो पाती। इसी का नतीजा है कि भारत को विदेशों के सामने हाथ फैलाने को मजबूर होना पड़ा। भारत में करीब तीन महीने तक रेमडेसिविर का उत्पादन बंद था‚ अब इसकी जरूरत बढने पर मांग के अनुसार आपूर्ति कर पाने में कंपनियां असमर्थ हैं। इस मामले में भी भारत को मिस्त्र‚ बांग्लादेश‚ उज्बेकिस्तान और यूएई से मदद लेने को मजबूर होना पड़ा है। इस समय अमेरिका‚ ब्रिटेन‚ फ़्रांस‚ जर्मनी‚ रूस‚ आयरलैंड़‚ बेल्जियम‚ रोमानिया‚ लक्जमबर्ग‚ पुर्तगाल‚ स्वीडन‚ ऑस्ट्रेलिया‚ सिंगापुर‚ सऊदी अरब‚ हांगकांग‚ थाइलैंड़‚ फिनलैंड़‚ स्विटजरलैंड़‚ नार्वे‚ इटली और यूएई मेडिकल सहायता भारत भेज रहे हैं। इसमें ऑक्सीजन‚ वेंटिलेटर‚ मोबाइल ऑक्सीजन जेनेरेटर‚ बाईपैप और अन्य जरूरत के मेडिकल साजोसामान शामिल हैं। भारत को पहली बार पड़ोसी देशों से मदद लेने पर मजबूर होना पड़ा है। असम सरकार भूटान की ओर ऑक्सीजन के लिए देख रही है। भारत को मदद केवल पाकिस्तान ही नहीं‚ बल्कि बांग्लादेश से भी मिल रही है। पाकिस्तान में यूरोपियन यूनियन की राजदूत एंद्रोउला कामिनारा ने ट्वीट कर पाकिस्तान की भारत के लिए एयर स्पेस का उपयोग करने की अनुमति देने की सराहना की है बांग्लादेश ने एंटी–वायरल दवाई‚ पीपीई किट्स और जिंक‚कैल्सियम‚ विटामिन सी के साथ अन्य जरूरी सामान भारत को उपलब्ध कराने को कहा है। इसके मानवीय रूपों के साथ भारत की राजनीतिक और स्वास्थ्य व्यवस्थाओं पर भी निशाना साधा जा रहा है। यूरोपीय कमीशन ने यह कहने से गुरेज नहीं किया कि भारत से मदद की गुजारिश मिलने के बाद वह जल्द से जल्द जरूरी दवाएं और मेडिकल सप्लाई भारत भेजने की तैयारी कर रहा है। सिंगापुर की हेल्थ केयर ट्रेड एसोसिएशन की सीईओ हरजीत गिल ने स्वीकार किया है कि भारत के लोग उनकी ओर मदद के लिए देख रहे हैं जिसमें खासकर ऑक्सीजन‚ पीपीई किट्स‚ दवाएं‚ वेंटिलेटर्स या अस्पताल में काम आने वाली अन्य चीजों की मांग की जा रही है। इन सबके बीच वैक्सीन निर्माता कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया के सीईओ अदार पूनावाला ने कहा है कि उन्हें धमकी के कारण भारत छोड़ना पड़ा है। उन्होंने कई राजनीतिज्ञों‚ कई राज्यों के मुख्यमंत्री और भारत के कई प्रभावशाली लोगों पर निशाना साधते हुए कहा है कि वे उन पर वैक्सीन जल्दी देने के लिए दबाव बना रहे हैं। यह भी कम दिलचस्प नहीं है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने पिछले साल अक्टूबर में कनाडा–इंडिया इंवेस्टर सम्मेलन में कहा था कि कोरोना के दौर में भारत ने दुनिया के करीब १५० देशों को कई दवाओं का निर्यात किया है। भारत विश्व को सबसे अधिक जेनेरिक दवाएं उपलब्ध कराने वाला देश है। भारत अकेला देश है‚ जिसके पास अमेरिकी दवा नियामक यूएसएफडीए के मानकों के अनुरूप अमेरिका से बाहर सबसे अधिक संख्या में दवा बनाने के संयंत्र हैं। भारत की इन क्षमताओं का अपने ही देश में योजनाबद्ध उपयोग किया जाता तो भारत में लाखों लोगों की जिंदगी को बचाया जा सकता था।
इस समय भारत स्याह सच्चाइयों से रूबरू है‚ स्वास्थ्य सेवाओं को लेकर भारत लंबे समय से जूझ रहा है‚ और यही कारण है कि देश में लाखों लोग ऑक्सीजन‚ दवाओं और बेड की कमी से मर गए हैं। भारत को क्यूबा से सीखना चाहिए जहां वैश्विक प्रतिबंधों के बाद भी स्वास्थ्य की मुफ्त और उच्च कोटि की सेवाएं दी जाती हैं। स्वास्थ्य क्षेत्र दशकों से प्राथमिकता में रहा और उसके उजले परिणाम भी रहे हैं। कोरोना से निपटने की असफलता से भारत के राष्ट्रीय हित और वैश्विक छवि को गहरा नुकसान हुआ है। दक्षिण एशियाई देशों में चीन की स्वीकार्यता और निर्भरता बढ़ने से भारत की सामरिक चुनौतियां बढ़ सकती हैं ।महाशक्ति और मजबूत अर्थव्यवस्था के दावों की असलियत सामने आ गई है।
कहां छिपा है पाकिस्तान का परमाणु भंडार?
पहलगाम आतंकी हमले के बाद भारत बेहद गुस्से में है. सरकार ने कई कठोर कदम भी उठाए हैं, जिससे पाकिस्तान बुरी...