चीन में एक महिला ने अपने पति से तलाक लेते समय इस बात के लिए भी मुआवजे की मांग की कि शादी के बाद के पांच सालों में उसने नौकरी करने के साथ–साथ घर का सारा कामकाज संभाला और बच्चे की देखभाल भी की। दिलचस्प बात यह कि अदालत ने भी उसे इसके लिए पांच लाख युवान का मुआवजा देने का आदेश दिया। फैसले में स्पष्ट किया कि पति–पत्नी में से किसी ने भी घर की अतिरिक्त जिम्मेदारी संभाली है‚ तो उसे इसका मुआवजा लेने का अधिकार है। खबर पढ़कर एक बार को दिमाग में सवाल कौंधा कि क्या भारत में भी ऐसा हो सकता हैॽ भारतीय समाज में तो यही माना जाता है कि घर संभालना औरत की जिम्मेदारी है‚ चाहे नौकरी करती हो या नहीं करती हो। पति का काम सिर्फ ऑफिस की नौकरी‚ व्यापार या व्यवसाय करना और बतौर गृहपति पत्नी पर हुकुम चलाना होता है। भारत के अखबार आए दिन ऐसी खबरों से भरे होते हैं कि पति ने खाने में नमक कम/तेज हो जाने या टाइम पर खाना नहीं बनने पर पत्नी पर हाथ उठा दिया‚ उसके मुंह पर खाने की थाली फेंक मारी या उसकी पिटाई कर दी। कभी–कभी तो उसे मार ही दिया या इतना पीटा कि बाद में उसकी मौत हो गई। ऐसा नहीं है कि ऐसी घटनाएं ग्रामीण समाज‚ कम पढ़े–लिखे तबके में या नौकरी नहीं करने वाली औरतों के साथ होती हों। उन परिवारों में भी घटती हैं‚ जहां पत्नी नौकरी करती है‚ पति के बराबर कमाकर लाती है। कभी–कभी तो ऐसे परिवारों में भी होती है‚ जिनमें पति कोई काम नहीं करता‚ कुछ कमाकर नहीं लाता। लेकिन गृहपति होना और पत्नी पर हुकुम चलाना उसका जन्मसिद्ध अधिकार होता है॥। चीन वाली खबर को विस्तार से पढ़ा तो समझ आया कि भारत और चीन के समाजों में ज्यादा फर्क नहीं है। खबर में आगे यह भी लिखा था कि उस महिला की ओर से अपने घरेलू काम के लिए मुआवजे की मांग पर चीन के समाज में सख्त प्रतिक्रिया हुई। खबर छपते ही बड़ी संख्या में चीनी पुरुषों ने इसकी न सिर्फ आलोचना की‚ बल्कि उस औरत को भी बुरा–भला भी कहा। अदालत के फैसले को गलत नजीर पेश करने वाला फैसला बताया। सोचने की बात है कि भारत में भी ऐसा कोई मामला सामने आता तो अदालत क्या फैसला देती और समाज की क्या प्रतिक्रिया होतीॽ यहां बंबई उच्च न्यायालय में चंद रोज पहले आए एक मामले का जिक्र करना जरूरी है। इस मामले में ठीक वैसा ही हुआ था जिसका जिक्र हम ऊपर कर आए हैं यानी पति के मांगने पर चाय बनाकर नहीं देने पर पति ने पत्नी पर हथौड़े से हमला कर दिया था। चोट की वजह से कुछ दिन बाद पत्नी की मौत हो गई। अदालत ने पति को उसके इस अपराध के लिए दस साल की कैद की सजा सुनाते हुए टिप्पणी की कि पत्नी पति की संपत्ति नहीं है कि घर का सारा काम वही करे। कहा कि कोई पत्नी से जानवर या वस्तु जैसा व्यवहार नहीं कर सकता। वैवाहिक जीवन में पति और पत्नी बराबरी का हक रखते हैं। दरअसल‚ समस्या चीनी या भारतीय समाज की ही नहीं है। भारतीय उपमहाद्वीप में औरत और मर्द‚ दोनों के लिए अलग–अलग प्रतिमान हैं। औरत को बचपन से उसकी निम्नता का अहसास कराया जाता है। हालांकि इस स्थिति में शहरी इलाकों में थोड़ा बहुत अंतर जरूर आ रहा है‚ लेकिन घरेलू हिंसा से औरतों को बचाने के लिए हमारे यहां ऐसा कोई कानून नहीं है जो विशेष रूप से स्त्री को केंद्र में रख कर बनाया गया हो। जो सिर्फ औरत की शिकायत को पर्याप्त मानकर उसे प्रताडि़त करने वाले पति या ससुराल वालों के खिलाफ कार्रवाई सुनिश्चित करता हो। २००५ में सरकार ने घरेलू हिंसा से सुरक्षा कानून बनाया था‚ लेकिन इस कानून के तहत औरत और मर्द‚ दोनों को एक दूसरे के खिलाफ शिकायत करने का अधिकार है।
घरेलू औरतें आम तौर पर तो ऐसे कानूनी प्रावधानों के बारे में जानती ही नहीं‚ और अगर जानती भी हैं‚ तो आर्थिक और सामाजिक रूप से इतनी सबल नहीं होतीं कि कचहरी में मामला दायर कर सकें। उनके अपने माता–पिता और संबंधी भी समाज में बदनामी से बचने के लिए इससे उन्हें हतोत्साहित करते हैं। आखिर‚ घर छोड़ कर वे कहां जाएंॽ इसलिए यही बेहतर समझती हैं कि चुपचाप हिंसा झेलती रहो या फिर फांसी का फंदा लगाकर मर जाओ। अगर सचमुच औरतों को समान धरातल पर लाना है‚ तो न सिर्फ उनके कंधों से पारिवारिक जिम्मेदारियों और घर के कामकाज का बोझ कम करना होगा‚ बल्कि उनके लिए अलग से सामाजिक सुरक्षा का विशेष कवच भी तैयार करना होगा। चंद महिलाओं के चंद उची कुर्शियो पर बैठ जाने से उनकी दुनिया का पूरा सच हमारे सामने नहीं आता‚ और न ही उनकी तरक्की की असली तस्वीर सामने आती है।
हमारे पास दंगाइयों का इलाज है उनको घुटने के बल चलने पर मजबूर कर देंगे….
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा है कि हमारे पास दंगाइयों का इलाज है. हम उनको घुटने के बल चलने...