जदयू के प्रदेश अध्यक्ष के रूप में शनिवार को पूर्व मंत्री रामसेवक सिंह का नाम लगभग तय हो गया है। प्रदेश अध्यक्ष की सूची में अब तक नीरज कुमार की चर्चा थी। लेकिन इस फेहरिस्त में अब संजय झा और राम सेवक सिंह भी शामिल हो गए हैं। छात्र राजनीति से आने वाले नीरज कुमार भूमिहार जाति से हैं। नीरज कुमार एग्रेसिव राजनीति करने के लिए जाने जाते हैं। साफ छवि के नीरज कुमार संगठन के कामों को इसलिए भी बेहतर तरीके से कर सकते हैं‚ क्योंकि इनकी शिक्षा दीक्षा वाम दल के एआईएसएफ से हुई है। जब नीतीश कुमार बाढ से १९८९ में लोक सभा चुनाव लड रहे थे। तब से नीरज उनके साथ हैं और नीतीश कुमार के लिए नुक्कड सभाएं किया करते थे। ऐसे में नीरज युवा भी और अगडी जाति से आते है। मुख्यमंत्री के सबसे विश्वासपात्र और चहेते नेताओं में से एक संजय झा को भी प्रदेश जदयू की कमान दी जा सकती है। भाजपा से जदयू में आए संजय झा कभी भाजपा और जदयू में सेतू का काम किया करते थे। कहा ये भी जाता है कि नीतीश कुमार ने संजय झा को अरुण जेटली के लिए काम करते देखा था‚ तब से उनके काम करने की शैली पर नीतीश कुमार फिदा हो गए। अरुण जेटली के साथ नीतीश कुमार के मधुर रिश्ते भी संजय झा की वजह से थी। संजय लगातार पर्दे के पीछे रहकर संगठन के लिए काम करते रहे हैं। नीतीश कुमार के किचन कैबिनेट के सदस्य भी हैं। आरसीपी सिंह के राष्ट्रीय अध्यक्ष बनने के बाद चर्चा ये थी कि संजय झा को राष्ट्रीय महासचिव बनाया जाएगा। लेकिन‚ प्रदेश की राजनीति और भाजपा के साथ बनते बिगडते रिश्तों के कारण संजय झा को प्रदेश अध्यक्ष का ताज पहनाया जा सकता है।
बिहार के गोपालगंज जिले के उचकागांव के बलेसरा पंचायत के आसनंदपुर गांव के रहने वाले रामसेवक तीन भाइयों में दूसरे नंबर पर हैं।उन्होंने गोपेश्वर कॉलेज से इंटरमीडिएट की पढ़ाई पूरी कर खेती करने लगे। इसके बाद उन्होंने अपने पिता के दवा कारोबार को संभाला। इसके बाद वो 1998 में जदयू नेता नीतीश कुमार के संपर्क में आए और अपना राजनीतिक कैरियर की शुरूअआत की।
उन्होंने अपने राजनीतिक कैरियर की शुरूआत वर्ष 2001 से की जब वो बलसेरा पंचायत के मुखिया पद पर चुनाव लड़े। मुखिया चुनाव जीतने के बाद वो फिर कभी वापस मुड़ कर नहीं देखे और अपने राजनीतिकी उचाईयों को छुआ। 2005 विधानसभा चुनाव में पहली बार हथुआ विधानसभा क्षेत्र से राजद सुप्रीमो लालू यादव के गृह क्षेत्र से जदयू की टिकट पर 7700 वोटों से चुनाव जीता। उसी वर्ष मध्यावधि चुनाव में एक बार फिर से 8 हजार वोटों से जीतकर अपना परचम लहराया। इसके बाद 2010 में एक बार फिर से उन्होंने जीत हासिल की। 2015 में भी उन्होंने जीत का अंतर बढ़ाते हुए 23 हजार वोटों से जीत हासिल की। चुनाव दर चुनाव उनके जीत का फासला बढ़ता गया।
अपनी पार्टी जेडीयू के प्रति उनकी निष्ठा शुरू से ही रही। जदयू के सबसे विश्वासपात्र माने जाने वाले संगठन के नीति निर्धारण में रामसेवक सिंह की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। विधानसभा में सत्तारूढ़ दल के सचेतक, झारखंड में जदयू के प्रदेश प्रभारी, जदयू के राष्ट्रीय सचिव जैसे कई महत्वपूर्ण पदों पर रहकर उन्होंने अपनी जिम्मेदारी का निर्वहन किया है।
लोकसभा चुनाव 2019 में जेडूयू प्रत्याशी डॉ. आलोक कुमार सुमन की भारी जीत में भी रामसेवक सिंह का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। पूर्व समाज कल्याण मंत्री रामसेवक सिंह को लगातार चार बार चुनाव जीतने के बाद पहली बार 2020 विधानसभा चुनाव में हार का सामना करना पड़ा। इस बार चुनाव में खुद की हार से नहीं बचा पाए।
रामसेवक सिंह के दो भाई कारोबार को संभालते हैं। उनके दो बेटे हैं। उनका बड़ा बेटा पप्पू कुमार एमबीबीएस करने के बाद आइजीएमएस में कार्यरत हैं। जबकि छोटा बेटा राजू कुमार एमबीबीएस में इंटर्नशिप कर रहा है। जबकि उनकी पत्नी गृहणी है।