बिहार विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और सभी राजनीतिक दलों की रणनीतियां सामने आने लगी हैं. एक ओर महागठबंधन ने जहां तेजस्वी यादव को कोर्डिनेशन कमिटी का प्रमुख बनाया है, वहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपना चेहरा घोषित कर सियासी समीकरणों को और रोचक बना दिया है. खास बात यह कि बिहार एनडीए की सियासत को लेकर लगाई जा रही तमाम अटकलों और विपक्ष की रणनीतियों को धता बताते हुए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल (यूनाइटेड) (जदयू) ने एकजुटता का संदेश दिया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत को लेकर उठ रहे सवालों को भी इस फैसले ने खारिज कर दिया है. हालांकि, सीएम नीतीश के 20 साल के शासन से उपजी एंटी-इनकंबेंसी की आशंका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन जानकार बताते हैं कि अभी भी नीतीश कुमार के चेहरे में वो दम है जो एनडीए की गाड़ी को खींच ले जाएगा. यही नहीं, बीजेपी समेत एनडीए में शामिल तमाम दलों को भी नीतीश के फेस पर भरोसा है. आइये आगे जानते हैं कि आखिर नीतीश के चेहरे पर ही एनडीए को विश्वास क्यों है?
वर्ष 2005 में जब नीतीश कुमार ने बिहार की कमान संभाली तब राज्य ‘जंगलराज’ की छवि से जूझ रहा था. सड़कों की बदहाली, बिजली की कमी और कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति बिहार की पहचान थी. लेकिन, उनके सुशासन और विकास कार्यों ने बिहार की तस्वीर बदली है जो जनमानस में गहरी छाप छोड़ रही है. नीतीश ने सुशासन के मॉडल के जरिए इन समस्याओं को हल करने की दिशा में काम किया. सड़क नेटवर्क का विस्तार, बिजली की उपलब्धता और शिक्षा-स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधारों ने बिहार को नई पहचान दी. हाल ही में उद्घाटित कच्ची दरगाह-बिदूपुर छह लेन गंगा पुल इसका ताजा उदाहरण है जिसने राघोपुर से पटना की दूरी को महज पांच मिनट में समेट दिया. यह पुल न केवल कनेक्टिविटी बढ़ाता है, बल्कि व्यापार और निवेश के नए अवसर भी खोलता है.
महागठबंधन के नहले पर एनडीए का दहला
बिहार में नीतीश कुमार के किये विकास कार्यों के साथ सामाजिक कल्याण की स्कीम नीतीश के नेतृत्व को मजबूती देते हैं. नीतीश सरकार ने हाल ही में सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना में मासिक राशि को 400 रुपये से बढ़ाकर 1200 रुपये करने का ऐलान किया. यह कदम वृद्ध, विधवा और दिव्यांगजनों के लिए बड़ी राहत है जो ग्रामीण बिहार में एक बड़ा वोट बैंक है. यह योजना नीतीश की सामाजिक समावेशिता की नीति को बताती है जिसने अति-पिछड़ा और महादलित समुदायों को मुख्यधारा से जोड़ा. इसके अलावा, शराबबंदी, महिलाओं के लिए 50% पंचायत आरक्षण और पुलिस में 35% महिला आरक्षण जैसे कदमों ने नीतीश को महिला वोटरों में लोकप्रिय बनाया है. ये योजनाएं तेजस्वी यादव की ‘माई-बहिन मान योजना’ के जवाब में एनडीए को बढ़त दे सकती हैं.
सीएम नीतीश का चेहरा, पीएम मोदी की ताकत
नीतीश की यह विकास और सामाजिक कल्याण केंद्रित रणनीति उनकी विश्वसनीयता को मजबूत करती है जिस पर एनडीए को पूरा ऐतबार है. वहीं, नीतीश के स्थानीय नेतृत्व को पीएम नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय लोकप्रियता और बीजेपी की संगठनात्मक ताकत का साथ मिल रहा है. लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार में एनडीए की 30 सीटों की जीत इसका प्रमाण है. मोदी की रैलियों और राष्ट्रवाद की बात एनडीए को साइलेंट वोटरों, खासकर महिलाओं और युवाओं का समर्थन दिलाती है. बीते 20 जून को सीवान में 400 करोड़ रुपये की वैशाली-देवरिया रेलवे लाइन और मढौरा में लोकोमोटिव निर्यात जैसे प्रोजेक्ट्स मोदी-नीतीश जोड़ी की विकास की गारंटी को पुष्ट करते हैं.
पीएम मोदी को सीएम नीतीश पर भरोसा
बता दें कि 20 जून 2025 को सिवान में आयोजित विकास परियोजनाओं के उद्घाटन समारोह में पीएम मोदी ने नीतीश कुमार की जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा था कि, नीतीश जी के नेतृत्व में बिहार ने विकास की नई ऊंचाइयों को छुआ है और एनडीए का परिवार बिहार को और समृद्ध बनाएगा. इस मौके पर नीतीश कुमार ने भी पीएम का स्वागत करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में ऐतिहासिक काम किया है. दोनों नेताओं की मंच पर दिखाई गई एकजुटता बिहार में एनडीए की एकता का संदेश देने की कोशिश थी.
एंटी-इनकंबेंसी एनडीए की बड़ी चुनौती
नीतीश कुमार के लंबे शासन के बावजूद एंटी-इनकंबेंसी एक चुनौती है. हालांकि, विपक्ष के सवाल हैं और हमले भी जारी हैं. खासकर तेजस्वी यादव बिहार में सीएम नीतीश की गठबंधन बदलने की छवि और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठा रहे हैं. अब जमीनी हकीकत की भी बात कर लें तो हाल के एक सर्वे में महागठबंधन को 126 सीटों के साथ बढ़त दिखाई गई है, जबकि एनडीए को 112 सीटें मिलने का अनुमान है. फिर भी नीतीश की प्रगति यात्रा और विकास कार्यों की घोषणाएं इस चुनौती को कम करने की कोशिश है.
बिहार की राजनीति में दिखेंगे कई मोड़
नीतीश कुमार का राजनीतिक अनुभव, सुशासन और विकास कार्य के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय अपील एनडीए को मजबूत स्थिति में रखता है. बिहार में एनडीए ने 225 सीटों का लक्ष्य रखा है, जाहिर है भले ही महत्वाकांक्षी हो, लेकिन नीतीश की रणनीति और बीजेपी का संगठन इसे संभव बना सकता है. विपक्ष की रणनीति को बेअसर करने के लिए एनडीए ने नीतीश के चेहरे पर भरोसा जताया है जो बिहार की जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता को दर्शाता है. बहरहाल, जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आएंगीं बिहार की राजनीति में कई मोड़ भी देखने को मिलेंगे. इन सबके बीच नीतीश और मोदी की यह जोड़ी बिहार की सियासत में कितना कमाल दिखाती है यह देखना दिलचस्प होगा.
बिहार विधानसभा चुनाव की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है और सभी राजनीतिक दलों की रणनीतियां सामने आने लगी हैं. एक ओर महागठबंधन ने जहां तेजस्वी यादव को कोर्डिनेशन कमिटी का प्रमुख बनाया है, वहीं राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) ने मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को अपना चेहरा घोषित कर सियासी समीकरणों को और रोचक बना दिया है. खास बात यह कि बिहार एनडीए की सियासत को लेकर लगाई जा रही तमाम अटकलों और विपक्ष की रणनीतियों को धता बताते हुए भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और जनता दल (यूनाइटेड) (जदयू) ने एकजुटता का संदेश दिया है. मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सेहत को लेकर उठ रहे सवालों को भी इस फैसले ने खारिज कर दिया है. हालांकि, सीएम नीतीश के 20 साल के शासन से उपजी एंटी-इनकंबेंसी की आशंका को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता, लेकिन जानकार बताते हैं कि अभी भी नीतीश कुमार के चेहरे में वो दम है जो एनडीए की गाड़ी को खींच ले जाएगा. यही नहीं, बीजेपी समेत एनडीए में शामिल तमाम दलों को भी नीतीश के फेस पर भरोसा है. आइये आगे जानते हैं कि आखिर नीतीश के चेहरे पर ही एनडीए को विश्वास क्यों है?
वर्ष 2005 में जब नीतीश कुमार ने बिहार की कमान संभाली तब राज्य ‘जंगलराज’ की छवि से जूझ रहा था. सड़कों की बदहाली, बिजली की कमी और कानून-व्यवस्था की खराब स्थिति बिहार की पहचान थी. लेकिन, उनके सुशासन और विकास कार्यों ने बिहार की तस्वीर बदली है जो जनमानस में गहरी छाप छोड़ रही है. नीतीश ने सुशासन के मॉडल के जरिए इन समस्याओं को हल करने की दिशा में काम किया. सड़क नेटवर्क का विस्तार, बिजली की उपलब्धता और शिक्षा-स्वास्थ्य के क्षेत्र में सुधारों ने बिहार को नई पहचान दी. हाल ही में उद्घाटित कच्ची दरगाह-बिदूपुर छह लेन गंगा पुल इसका ताजा उदाहरण है जिसने राघोपुर से पटना की दूरी को महज पांच मिनट में समेट दिया. यह पुल न केवल कनेक्टिविटी बढ़ाता है, बल्कि व्यापार और निवेश के नए अवसर भी खोलता है.
महागठबंधन के नहले पर एनडीए का दहला
बिहार में नीतीश कुमार के किये विकास कार्यों के साथ सामाजिक कल्याण की स्कीम नीतीश के नेतृत्व को मजबूती देते हैं. नीतीश सरकार ने हाल ही में सामाजिक सुरक्षा पेंशन योजना में मासिक राशि को 400 रुपये से बढ़ाकर 1200 रुपये करने का ऐलान किया. यह कदम वृद्ध, विधवा और दिव्यांगजनों के लिए बड़ी राहत है जो ग्रामीण बिहार में एक बड़ा वोट बैंक है. यह योजना नीतीश की सामाजिक समावेशिता की नीति को बताती है जिसने अति-पिछड़ा और महादलित समुदायों को मुख्यधारा से जोड़ा. इसके अलावा, शराबबंदी, महिलाओं के लिए 50% पंचायत आरक्षण और पुलिस में 35% महिला आरक्षण जैसे कदमों ने नीतीश को महिला वोटरों में लोकप्रिय बनाया है. ये योजनाएं तेजस्वी यादव की ‘माई-बहिन मान योजना’ के जवाब में एनडीए को बढ़त दे सकती हैं.
सीएम नीतीश का चेहरा, पीएम मोदी की ताकत
नीतीश की यह विकास और सामाजिक कल्याण केंद्रित रणनीति उनकी विश्वसनीयता को मजबूत करती है जिस पर एनडीए को पूरा ऐतबार है. वहीं, नीतीश के स्थानीय नेतृत्व को पीएम नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय लोकप्रियता और बीजेपी की संगठनात्मक ताकत का साथ मिल रहा है. लोकसभा चुनाव 2024 में बिहार में एनडीए की 30 सीटों की जीत इसका प्रमाण है. मोदी की रैलियों और राष्ट्रवाद की बात एनडीए को साइलेंट वोटरों, खासकर महिलाओं और युवाओं का समर्थन दिलाती है. बीते 20 जून को सीवान में 400 करोड़ रुपये की वैशाली-देवरिया रेलवे लाइन और मढौरा में लोकोमोटिव निर्यात जैसे प्रोजेक्ट्स मोदी-नीतीश जोड़ी की विकास की गारंटी को पुष्ट करते हैं.
पीएम मोदी को सीएम नीतीश पर भरोसा
बता दें कि 20 जून 2025 को सिवान में आयोजित विकास परियोजनाओं के उद्घाटन समारोह में पीएम मोदी ने नीतीश कुमार की जमकर तारीफ की. उन्होंने कहा था कि, नीतीश जी के नेतृत्व में बिहार ने विकास की नई ऊंचाइयों को छुआ है और एनडीए का परिवार बिहार को और समृद्ध बनाएगा. इस मौके पर नीतीश कुमार ने भी पीएम का स्वागत करते हुए कहा कि उनकी सरकार ने शिक्षा, स्वास्थ्य, और बुनियादी ढांचे के क्षेत्र में ऐतिहासिक काम किया है. दोनों नेताओं की मंच पर दिखाई गई एकजुटता बिहार में एनडीए की एकता का संदेश देने की कोशिश थी.
एंटी-इनकंबेंसी एनडीए की बड़ी चुनौती
नीतीश कुमार के लंबे शासन के बावजूद एंटी-इनकंबेंसी एक चुनौती है. हालांकि, विपक्ष के सवाल हैं और हमले भी जारी हैं. खासकर तेजस्वी यादव बिहार में सीएम नीतीश की गठबंधन बदलने की छवि और बेरोजगारी जैसे मुद्दों को उठा रहे हैं. अब जमीनी हकीकत की भी बात कर लें तो हाल के एक सर्वे में महागठबंधन को 126 सीटों के साथ बढ़त दिखाई गई है, जबकि एनडीए को 112 सीटें मिलने का अनुमान है. फिर भी नीतीश की प्रगति यात्रा और विकास कार्यों की घोषणाएं इस चुनौती को कम करने की कोशिश है.
बिहार की राजनीति में दिखेंगे कई मोड़
नीतीश कुमार का राजनीतिक अनुभव, सुशासन और विकास कार्य के साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की राष्ट्रीय अपील एनडीए को मजबूत स्थिति में रखता है. बिहार में एनडीए ने 225 सीटों का लक्ष्य रखा है, जाहिर है भले ही महत्वाकांक्षी हो, लेकिन नीतीश की रणनीति और बीजेपी का संगठन इसे संभव बना सकता है. विपक्ष की रणनीति को बेअसर करने के लिए एनडीए ने नीतीश के चेहरे पर भरोसा जताया है जो बिहार की जनता के बीच उनकी स्वीकार्यता को दर्शाता है. बहरहाल, जैसे-जैसे चुनाव की तारीख नजदीक आएंगीं बिहार की राजनीति में कई मोड़ भी देखने को मिलेंगे. इन सबके बीच नीतीश और मोदी की यह जोड़ी बिहार की सियासत में कितना कमाल दिखाती है यह देखना दिलचस्प होगा.