पाकिस्तान सेना के इतिहास में दो ऐसे सैन्य अधिकारी हैं जिन्हें फील्ड मार्शल का सर्वोच्च सम्मान प्राप्त हुआ. ये हैं मोहम्मद अयूब खान और असीम मुनीर. इस आर्टिकल के जरिए हम जानने की कोशिश करेंगे कि पाकिस्तान की सेना के इन दो फील्ड मार्शलों की क्या कहानी थी और भारत के नजरिए से इस घटनाक्रम को कैसे देखा जा सकता है.
मोहम्मद अयूब खान: पहले फील्ड मार्शल
मोहम्मद अयूब खान पाकिस्तान सेना के पहले फील्ड मार्शल थे. उन्होंने 1958 में एक सैन्य तख्तापलट (कूप) किया और खुद को पाकिस्तान का राष्ट्रपति बना लिया. इसके बाद, 1959 में, उन्होंने खुद को फील्ड मार्शल का रैंक दिया. उन्होंने कहा कि यह कदम नागरिक समाज के अनुरोध पर उठाया गया था. इस पदोन्नति को राष्ट्रपति मंत्रिमंडल के एक विशेष घोषणापत्र के माध्यम से औपचारिक रूप दिया गया.
हालांकि, फील्ड मार्शल बनने के बाद अयूब खान ने सेना का सक्रिय नेतृत्व नहीं किया. उन्होंने जनरल मूसा खान को सेना का कमांडर-इन-चीफ नियुक्त किया और खुद राष्ट्रपति के रूप में देश के शासन पर ध्यान केंद्रित किया.
अयूब खान का सैन्य जीवन
मोहम्मद अयूब खान का जन्म हुआ और उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में पढ़ाई की. इसके बाद, उन्होंने ब्रिटेन के रॉयल मिलिट्री कॉलेज, सैंडहर्स्ट में सैन्य प्रशिक्षण लिया. 1928 में उन्हें ब्रिटिश भारतीय सेना में कमीशन मिला. उन्होंने मुख्य रूप से पंजाब रेजिमेंट में सेवा की, लेकिन कुछ समय के लिए असम रेजिमेंट में भी रहे.
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान, अयूब खान ने असम रेजिमेंट की पहली बटालियन का नेतृत्व किया. लेकिन उनके कमांडिंग ऑफिसर ने उन्हें “कमांड में डरपोक” पाया और उन्हें इस पद से हटा दिया गया. 1947 में भारत के विभाजन के बाद, अयूब खान पाकिस्तान सेना में शामिल हुए. धीरे-धीरे तरक्की करते हुए, वह 1958 तक पाकिस्तान सेना के कमांडर-इन-चीफ बन गए. उसी वर्ष, उन्होंने तख्तापलट कर सत्ता हासिल की और राष्ट्रपति बने.
असीम मुनीर: दूसरे फील्ड मार्शल
पाकिस्तान सेना के दूसरे फील्ड मार्शल हैं जनरल असीम मुनीर. उनकी पदोन्नति की कहानी अयूब खान से काफी अलग है. असीम मुनीर को यह रैंक पाकिस्तान की नागरिक सरकार ने दिया, जिसका नेतृत्व प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ कर रहे हैं. यह एक महत्वपूर्ण अंतर है, क्योंकि अयूब खान ने खुद को यह रैंक दिया था, जबकि असीम मुनीर को सरकार ने चुना.
एक और बड़ा अंतर यह है कि असीम मुनीर फील्ड मार्शल बनने के बाद भी सेना के चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के रूप में अपनी जिम्मेदारियां निभाते रहेंगे. अयूब खान ने यह रैंक पाने के बाद सेना का नेतृत्व छोड़ दिया था.
असीम मुनीर का सैन्य जीवन
असीम मुनीर ने 1986 में ऑफिसर्स ट्रेनिंग स्कूल से प्रशिक्षण पूरा करने के बाद फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट में कमीशन प्राप्त किया. उनके सैन्य करियर में कई महत्वपूर्ण भूमिकाएं शामिल हैं. उन्होंने फ्रंटियर फोर्स रेजिमेंट की 23वीं बटालियन, एक इन्फैंट्री ब्रिगेड, और उत्तरी क्षेत्रों में फोर्स कमांडर के रूप में काम किया. इसके अलावा, उन्होंने मिलिट्री इंटेलिजेंस के डायरेक्टर जनरल, आईएसआई के डायरेक्टर जनरल, 30 कॉर्प्स के जीओसी, और क्वार्टरमास्टर जनरल जैसे महत्वपूर्ण पदों पर भी रहा है.
असीम मुनीर ने पाकिस्तान और विदेशों में कई सैन्य प्रशिक्षण पाठ्यक्रमों में भाग लिया है. एक खास बात यह है कि उन्होंने कुरान को पूरी तरह से याद किया है.
असीम मुनीर का रिटायरमेंट
नवंबर 2024 में, पाकिस्तान की संसद ने एक कानून पारित किया, जिसके तहत सेना प्रमुख का कार्यकाल तीन साल से बढ़ाकर पांच साल कर दिया गया. इस नए कानून के अनुसार, असीम मुनीर अब 2027 में चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के रूप में रिटायर होंगे.
फील्ड मार्शल रैंक का महत्व और विशेषताएं
पाकिस्तान सेना में फील्ड मार्शल का रैंक बहुत ही विशेष और दुर्लभ है. यह रैंक ब्रिटिश सैन्य परंपराओं से प्रेरित है. इस रैंक के कुछ खास अधिकार और विशेषताएं हैं:
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जीवन भर सक्रिय सूची में: एक फील्ड मार्शल को जीवन भर सेना की “सक्रिय सूची” में रखा जाता है, भले ही वे सक्रिय कमांड से रिटायर हो जाएं.
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विशेष वर्दी: फील्ड मार्शल को किसी भी उपयुक्त अवसर पर अपनी वर्दी पहनने की अनुमति होती है.
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रैंक बैज और प्रतीक: उनके पास विशेष रैंक बैज होते हैं, और उनकी गाड़ियों पर पांच सितारे प्रदर्शित किए जाते हैं.
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विशेष सलामी: फील्ड मार्शल सलामी देते समय हाथ की बजाय एक विशेष फील्ड मार्शल बैटन को माथे तक उठाते हैं.
अयूब खान और असीम मुनीर की पदोन्नति में अंतर
मोहम्मद अयूब खान और असीम मुनीर की फील्ड मार्शल पदोन्नति में दो मुख्य अंतर हैं:
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अधिकार देने वाला प्राधिकरण: अयूब खान ने तख्तापलट के बाद खुद को यह रैंक दिया, जबकि असीम मुनीर को यह रैंक नागरिक सरकार ने प्रदान किया.
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सेवा की निरंतरता: अयूब खान ने फील्ड मार्शल बनने के बाद सेना का नेतृत्व छोड़ दिया, जबकि असीम मुनीर इस रैंक के साथ चीफ ऑफ आर्मी स्टाफ के रूप में अपनी सेवा जारी रखेंगे.
निष्कर्ष
पाकिस्तान सेना के दो फील्ड मार्शल, मोहम्मद अयूब खान और असीम मुनीर, दोनों ने भारत के साथ तनावपूर्ण संबंधों के दौर में यह रैंक हासिल किया. अयूब खान की 1965 की हार और मुनीर की भारतीय सेना के ऑपरेशन सिंदूर के खिलाफ विफलता दोनों ही भारत की सैन्य श्रेष्ठता को दर्शाते हैं. ऑपरेशन सिंदूर ने भारत की रणनीतिक ताकत और आतंकवाद के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति को दुनिया के सामने रखा. मुनीर की पदोन्नति, भारत के दृष्टिकोण से, एक हताश कोशिश है जो पाकिस्तान की सैन्य और राजनीतिक अस्थिरता को दर्शाती है.