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वक्फ एक्ट पर आज सुप्रीम कोर्ट में अपना पक्ष रख रही सरकार………….

UB India News by UB India News
May 22, 2025
in कानून
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नए वक्फ कानूनों पर सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम आदेश के क्या हैं मायने? सरकार के लिए हैं ये पाबंदियां

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देश की सर्वोच्च न्यायालय यानी सुप्रीम कोर्ट में आज बुधवार 21 मई को एक बार फिर केंद्र सरकारी की ओर से लाए गए वक्फ एक्ट पर सुनवाई शुरु हो गई है। वक्फ संशोधन कानून 2025 की संवैधानिकता की वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर आज एक बार फिर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई कर रहा है। आज की सुनवाई में केंद्र सरकार अपना पक्ष रख रही है। केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कोर्ट से कहा कि, ये ऐसा मामला नहीं, जहां मंत्रालय ने एक बिल बनाया और बिना सोचे समझे वोटिंग कर दी। हम एक बहुत पुरानी समस्या खत्म करने का काम कर रहे हैं, जिसकी शुरुआत 1923 में हुई थी।

जनरल मेहता ने कहा- कुछ याचिकाकर्ता पूरे मुस्लिम समुदाय की ओर से नहीं बोल सकते। आपके पास जो याचिकाएं आई, वे ऐसे लोगों ने दायर की हैं जो सीधे इस कानून से प्रभावित नहीं हैं। किसी ने ये नहीं कहा कि, संसद को ये कानून बनाने का अधिकार नहीं था। जेपीसी की 96 बैठकें हुईं और हमें 97 लाख लोगों से सुझाव मिले, जिस पर बहुत सोच-समझकर काम किया गया है।

केंद्र की तरफ से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता पेश हुए. उन्होंने कहा कि संसद ने सोच-विचार कर कानून बनाया और कानून बनाए जाने से पहले लाखों लोगों के सुझाव लिए गए. एसजी मेहता ने कहा कि कुछ लोग खुद को पूरे मुस्लिम समुदाय का प्रतिनिधि नहीं बता सकते और वक्फ कानून में 1923 से ही कमी चली आ रही थी, जिसे दुरुस्त किया गया है.

मंगलवार को भी इस मामले में सुनवाई हुई थी, जिसमें याचिकाकर्ताओं की ओर से सीनियर एडवोकेट कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी और राजीव धवन ने दलील दीं. आज एसजी तुषार मेहता ने केंद्र का पक्ष रखते हुए कहा कि 1923 से 1995 के कानून तक व्यवस्था थी कि सिर्फ मुस्लिम ही वक्फ कर सकता था, लेकिन साल 2013 में चुनाव से पहले कानून बना दिया गया कि कोई भी वक्फ कर सकता है. उन्होंने कहा कि सरकार ने इसे सुधारा है और वक्फ करने के लिए कम से कम 5 साल से इस्लाम धर्म का पालन करने की शर्त रखी गई है.

एसजी तुषार मेहता ने कहा, ‘अगर कोई किसी जगह का इस्तेमाल कर रहा है, उसके पास उस जगह के कागज नहीं हैं और उसका दावा है कि यह अनरजिस्टर्ड वक्फ बाय यूजर है. सरकार के रिकॉर्ड में संपत्ति सरकारी है तो क्या इसकी जांच नहीं होगी? याचिकाकर्ताओं ने कल सुनवाई में संपत्ति के रजिस्ट्रेशन पर आपत्ति जताई थी और कहा था कि 100-200 साल पुराने वक्फ के कागजात कहां से आएंगे,

एसजी तुषार मेहता की दलील पर मुख्य न्यायाधीश भूषण रामाकृष्ण गवई ने कहा कि लेकिन याचिकाकर्ताओं का कहना है कि सरकार खुद ही अपने दावे की जांच करेगी. तुषार मेहता ने कहा, ‘भू-राजस्व रिकॉर्ड की जांच रेवेन्यू अधिकारी करेंगे. वह कोई अंतिम स्वामित्व नहीं तय कर देंगे. प्रभावित पक्ष के पास कोर्ट जाने का रास्ता है.’

एसजी मेहता ने कहा कि लोगों को कलेक्टर की जांच से दिक्कत थी, तो दूसरा अधिकारी तय किया गया. वह सिर्फ रेवेन्यू रिकॉर्ड की जांच कर संशोधन करेगा. सीजेआई ने एसजी से पूछा कि यानी सिर्फ कागजों में एंट्री होगी. तुषार मेहता ने सीजेआई गवई के सवाल पर कहा, ‘जी हां, अगर सरकार को स्वामित्व चाहिए होगा तो वह भी सिविल केस दाखिल करेगी.’

याचिकाकर्ताओं को इस पर भी आपत्ति थी कि कोई भी वक्फ संपत्ति पर आपत्ति जता सकता है और फिर वह संपत्ति सरकार की है या नहीं, ये भी सरकार का अधिकारी ही तय करेगा. उन्होंने कहा कि संपत्ति पर विवाद शुरू होते ही वह सरकार के पास चली जाएगी यानी वक्फ नहीं रहेगी और अगर बोर्ड कोर्ट जाता है तो जब तक कोर्ट का फैसला नहीं आता वह संपत्ति सरकार की ही रहेगी.

कल की सुनवाई में क्या हुआ?

कल कोर्ट ने सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ताओं की तमाम दलीलें सुनी और याचिकाकर्ताओं के वकील से तमाम सवाल भी हुए, लेकिन कोर्ट इस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी कि, याचिकाकर्ताओं को कोई अंतरिम राहत दी जाए या नहीं। बता दें कि, वक्फ कानून की सुनवाई को लेकर देशभर के साथ-साथ मध्य प्रदेश में भी चर्चाओं का बाजार खासा गर्म है।

आपको बता दें कि, एक दिन पहले मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा था कि, हर कानून के पक्ष में संवैधानिकता की धारणा होती है, इसलिए राहत के लिए बहुत ठोस और स्पष्ट कारण पेश करने होते हैं। कोर्ट ने कहा कि, अदालत तबतक हस्तक्षेप नहीं करती, जबतक मामला स्पष्ट ना हो। जिसपर याचिकाकर्ता के वकील कपिल सिब्बल ने कानून को मुसलमानों की धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार का उल्लंघन और वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने वाला बताया। साथ ही कोर्ट से इसपर अंतरिम रोक लगाने की मांग की।

केंद्र सरकार ने कही ये बात

वहीं, दूसरी तरफ केंद्र सरकार की ओर से कहा गया कि, यह कानून एक धर्मनिरपेक्ष अवधारणा है और संवैधानिकता की धारणा को देखते हुए रोक नहीं लगाई जा सकती। सुप्रीम कोर्ट ने कानून का विरोध कर रहे याचिकाकर्ताओं से वक्फ के पंजीकृत करने की कानूनी अनिवार्यता और पंजीकृत न करवाने की कानूनी परिणाम के बारे में सवाल पूछे। कोर्ट ने पूछा- पहले से ही कानून में वक्फ को रजिस्टर्ड करने की बात है और जो वक्फ पहले से रजिस्टर है, उनपर असर नहीं पड़ेगा।

‘नया कानून धार्मिक संपत्तियों के अधिकारों का उल्लंघन’

याचिकाकर्ताओं की ओर से कोर्ट को बताया गया कि, सरकार की ओर से लाया जा रहा नया कानून वक्फ संपत्तियों पर कब्जा करने के लिए लाया गया है। ये धार्मिक संपत्तियों के प्रबंधन के मौलिक अधिकारों का उल्लंघन है। उन्होंने संशोधित कानून के वक्त बाय यूजर को खत्म करने के साथ केंद्रीय वक्फ परिषद में और राज्य वक्फ बोर्ड में गैर मुसलमानों को शामिल करने और वक्फ कराने वाले के 5 साल के प्रैक्टिस होने के प्रावधान को गलत ठहराया।

इन मुद्दों पर राहत की मांग

याचिकाकर्ता पक्ष जिन तीन मुद्दों पर राहत या रोक की मांग कर रहा है, उनमें पहला वक्फ बाई यूजर या वक्फ बाय डीड है। इसका मतलब वक्त घोषित संपत्तियों को गैर अधिसूचित करने से संबंधित है। वहीं, दूसरा मुद्दा राज्य सरकार वक्फ बोर्ड और केंद्रीय वक्फ परिषद संरचना से संबंधित है, जबकि याचिका में तीसरा मुद्दा वक्फ बोर्ड में गैर मुस्लिमों को शामिल करने के विरोध में है। आपको बता दें कि, मुख्य न्यायाधीश बीआर गवई और जस्टिस ए.जी मसीह की पीठ इस मामले की सुनवाई कर रही है।

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