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क्या 38 रोहिंग्याओं को समुद्र में फेंका !

UB India News by UB India News
May 21, 2025
in खास खबर
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क्या 38 रोहिंग्याओं को समुद्र में फेंका !
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6 मई को मेरी बेटी अस्मा और बहन अनवरा को बदरपुर पुलिस स्टेशन बुलाया गया। बताया कि उनका बायोमेट्रिक होना है। तब से वो दोनों नहीं लौटीं। 4 दिन बाद बहन का कॉल आया तो पता चला भारत सरकार ने 38 रोहिंग्या को समुद्र में छोड़ दिया है।’

म्यांमार से 2017 में शरणार्थी बनकर आए इस्माइल भारत को ही अपना घर मान चुके हैं। अब बेटी और बहन को जबरन वापस भेजे जाने से नाराज हैं। विकासपुरी रोहिंग्या कैंप में रहने वाले नुरूल भी परिवार से दूर हो गए हैं। वे बताते हैं कि समुद्र में फेंकते समय परिवारवालों की आंखों पर पट्टी थी। हाथों में हथकड़ी और पैरों में जंजीर बंधी थी।

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आरोप है कि 38 रोहिंग्या शरणार्थियों को दिल्ली से अंडमान ले जाया गया और उन्हें लाइफ जैकेट देकर समुद्र के बीचोबीच छोड़ दिया गया। ये शरणार्थी दिल्ली के उत्तम नगर, शाहीन बाग, विकासपुरी और मदनपुर खादर में रह रहे थे। इन रिपोर्ट्स को लेकर भारत सरकार या इंडियन नेवी का अब तक कोई बयान सामने नहीं आया है।

16 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले को लेकर दायर जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि ये खूबसूरती से गढ़ी गई कहानी है। हालांकि, यूनाइडेट नेशन ने कहा है कि वह रोहिंग्या शरणार्थियों को समुद्र में फेंकने के दावों की जांच करेगा। UN ने भारत सरकार से मामले की पूरी जानकारी भी मांगी है।

ल्ली के शाहीन बाग की श्रम कॉलोनी… बायोमेट्रिक के लिए पुलिस थाने बुलाया, फिर घर नहीं लौटी बेटी-बहन 2017 में म्यांमार के रखाइन स्टेट में रोहिंग्या कम्युनिटी के खिलाफ हिंसक घटनाएं शुरू हुईं। इसके बाद रोहिंग्याओं को घर छोड़कर बांग्लादेश, भारत और दूसरे देशों में शरण लेनी पड़ी। मोहम्मद इस्माइल भी उन्हीं में से एक हैं। वो और उनके परिवार के लोगों ने मलेशिया, बांग्लादेश और भारत में शरण ली थी।

इस्माइल अपने माता, पिता, बहन, पत्नी और बच्चों के साथ भारत आ गए। वे दिल्ली के शाहीन बाग की श्रम कॉलोनी में रह रहे हैं। इस्माइल भारत के शुक्रगुजार हैं कि पिछले 8 साल से वो बिना किसी परेशानी के रह रहे हैं।

वे बताते हैं, ‘6 मई को दोपहर 12 बजे का वक्त था। हमारे लीडर यूनुस ने बताया कि बदरपुर पुलिस थाने में कुछ लोगों को बायोमेट्रिक के लिए बुलाया है। मेरी बेटी अस्मा और बहन अनवरा बेगम समेत बस्ती के 20-25 लोगों को थाने ले गए, लेकिन वे लौटे नहीं।’

इस्माइल आगे बताते हैं, ’20 मई को हरियाणा के नूंह में अस्मा की शादी होनी थी। मैं कबाड़ का काम करता हूं। इतने सालों में मैंने जो भी कमाया था वो सब उसकी शादी की तैयारी में खर्च कर दिया। उसके लिए फ्रिज, कूलर और लेने-देने का सामान खरीद लिया था, लेकिन शादी से पहले ही हम पर इतना जुल्म हो गया।’

‘पुलिस धोखे से ले गई, बीच समुद्र में लाइफ जैकेट पहनाकर छोड़ दिया’ थाने जाने के बाद बेटी या बहन की कोई खबर मिली क्या? इस पर इस्माइल बताते हैं, ‘मुझे 6 मई की रात 8 बजे बहन अनवरा का फोन आया। उसने बताया कि उसके साथ 38 लोगों को एक गाड़ी में बैठाकर इंद्रलोक डिटेंशन कैंप ले जाया गया। रातभर डिटेंशन कैंप में रखा।’

‘अनवरा ने 7 मई की सुबह फिर 8 बजे फोन किया और बताया कि उन्हें गाड़ी में भरकर इंदिरा गांधी एयरपोर्ट ले जाया जा रहा। फिर उस दिन कोई फोन नहीं आया। अगले दिन 8 मई को इस्माइल के पास फिर एक फोन आया। दूसरी तरफ से अस्मा की आवाज आई। उसने बताया कि हम म्यांमार के पास स्थित तनिनथरी इलाके में हैं। ये द्वीप थाईलैंड और म्यांमार के बीच में है। इसके पश्चिम में अंडमान सागर है।’

‘अस्मा ने फोन पर बताया कि उन सभी को पोर्ट ब्लेयर ले गए। वहां उन्हें लाइफ जैकेट पहनाकर अंडमान सागर में छोड़ दिया। अस्मा और अनवरा को तैरना नहीं आता। उन्हें एक मछली वाले ने रेस्क्यू किया। उसी के फोन से अस्मा ने मुझे कॉल कर अपना हाल बताया।’

इस्माइल आगे बताते हैं, ‘उस दिन हमारी बस्ती में और भी लोगों के पास उनके परिजन के फोन आए। हालांकि, उन दिन के बाद से हमारा उनसे संपर्क नहीं हो पा रहा है।’

म्यांमार के मानवाधिकार मंत्री ने किया कन्फर्म म्यांमार के राजनेता और मानवाधिकार कार्यकर्ता म्यो मिन्ट ने बताया कि वे म्यांमार के जिस हिस्से में तैरकर पहुंचे हैं, उस पर म्यांमार की सेना का कंट्रोल नहीं है। वो म्यांमार की राष्ट्रीय एकता सरकार के कंट्रोल में है। ये म्यांमार की सिविलियन सरकार है, जो 2021 के सैन्य तख्तापलट के बाद से निर्वासन में काम कर रही है। म्यो मिन्ट इसी राष्ट्रीय एकता सरकार (NUG) के मंत्रिमंडल में मानवाधिकार मंत्री हैं।

म्यांमार की राष्ट्रीय एकता सरकार के अधिकारियों ने कन्फर्म किया है कि करीब 38 रोहिंग्या शरणार्थी उसकी सशस्त्र शाखा पीपुल्स डिफेंस फोर्स के साथ हैं। सरकार के उप मानवाधिकार मंत्री और एकमात्र रोहिंग्या सदस्य आंग क्याव मो ने कहा कि बचाए गए शरणार्थियों ने बताया कि उन्हें भारत ने जबरदस्ती समुद्र में ले जाकर निर्वासित किया है।

दिल्ली की विकासपुरी कालोनी… मुझे पीटा, पत्नी को घुसपैठिया बताकर अस्पताल से निकलवाया विकासपुरी में रहने वाले रोहिंग्या शरणार्थी नुरुल अमीन के परिवार के साथ भी 6 मई को यही हुआ। वो बताते हैं, ‘हम 2017 में परिवार के साथ भारत आए थे। हमें लगा जब तक देश में हालात ठीक नहीं हो जाते, तब तक हम यहां रह सकते हैं। परिवार में सभी के पास UNHRC का कार्ड भी है। यहां इतने सालों से कोई ऐसी दिक्कत भी नहीं हुई।’

‘6 मई को बदरपुर पुलिस हमारे परिवार वालों को ये बोलकर साथ ले गई कि बायोमेट्रिक कराके सबको घर भेज दिया जाएगा। पिछले ही महीने हमारा बायोमेट्रिक हुआ था।’

हमने पुलिस से बात की तो पहले तो उन्होंने बात करने से मना कर दिया। फिर कहा कि इनके नाम ऊपर से आए हैं। सुबह सबको भेज देंगे।

परिवार में किस-किस को थाने ले गए? जवाब में नुरुल बताते हैं, ‘मेरी मां लैला बेगम, पिता मोहम्मद शरीफ, भाई खेरुल अमीन, छोटे भाई सईदुल करीम और भाभी शहीदा को साथ ले गए। ये सब हुआ तब मैं बीमार पत्नी को लेकर दीनदयाल उपाध्याय अस्पताल गया था। मेरी मां भी साथ में ही थी। पुलिस अस्पताल से मां को अपने साथ ले गई।’

परिवारवालों की आंखों पर पट्टी बांधकर, हथकड़ी लगाकर समुद्र में छोड़ा नुरूल ने बताया, ‘कैंप से जिन भी लोगों को ले जाया गया, वो सभी UNHRC से रजिस्टर्ड हैं। न हमें कोई सूचना दी, न नोटिस दिया। हमारे परिवारवालों को इंद्रलोक में दया बस्ती डिटेंशन कैंप ले गए। वहां तक हमारी उनसे बात हुई। मेरे भाई ने वहां से कुछ फोटोज भी भेजी थीं। इसके बाद 7 मई को सुबह 10:50 बजे सभी को गाड़ी में भरकर ले जाया गया। उन्हें बताया गया कि सभी को म्यांमार डिपोर्ट कर रहे हैं।’

‘डिपोर्ट करने से पहले सभी के फोन ले लिए गए। फिर मेरे भाई ने एक मछुआरे के फोन से कॉल करके मुझे आगे की कहानी बताई। उसने बताया कि सभी को फ्लाइट से अंडमान लेकर गए। वहां उन्हें एक नेवी शिप में बैठाया गया। महिलाओं और पुरुषों को अलग कर दिया गया। सबकी आंखों पर पट्टी थी। हाथों में हथकड़ी और पैरों में जंजीर थी। सभी को लाइफ जैकेट पहनाई गई।‘

‘समुद्र में फेंकने से पहले उनसे पूछा गया कि म्यांमार या इंडोनेशिया में से कहां जाना चाहते हो। सभी 38 लोगों ने कहा कि हमें अपने देश में खतरा है। पहले अधिकारियों ने कहा कि तुम सबको इंडोनेशिया छोड़ देंगे, लेकिन बाद में उन्हें सागर के बीचोंबीच छोड़ दिया गया।’

‘वे एक घंटे तक अपनी जान बचाने के लिए समुद्र में जद्दोजहद करते रहे। कुछ मछुआरों ने उनकी जान बचाई और सभी को पास के एक आईलैंड पर ले गए। उसके बाद से हमारा परिवार से कोई कॉन्टैक्ट नहीं हो पा रहा। ये सब UNHRC को बताए बिना किया गया। हम बहुत परेशान हैं। हमारे भी बच्चे हैं। हमारी जान को भी खतरा है।’

‘बीमार मां को ले गए, उनके पास न खाना- न दवाई’ इसके बाद हम शहनूर से मिले। वो इलाके में किराने की छोटी-सी दुकान चलाती हैं। घर में पांच बच्चे और पति हैं। 6 मई से उनकी बुजुर्ग सास का कुछ पता नहीं चल रहा। वे बताती हैं, ‘हमारे लीडर यूनुस का कॉल आया था। उन्होंने बताया कि मां का बायोमेट्रिक होना है, इसलिए पुलिस स्टेशन बुलाया है। वो बिना खाना खाए ही चली गईं। उसके बाद से उनका कुछ पता नहीं चल पाया है।’

‘इन सबके चार दिन बाद पता चला कि सभी को देश से बाहर फेंक दिया है। ये भी हमें किसी और से पता चला। मेरी उनसे अभी बात तक नहीं हुई है। मां बहुत बीमार रहती हैं। अभी अस्पताल से डिस्चार्ज होकर आई थीं। उनके पैर में भी दिक्कत है। उन्हें शुगर भी है। उनके पास न दवा है न खाने-पीने के लिए कुछ है।’

यूनुस बोला- बायोमेट्रिक के लिए बुलाया, नहीं पता था ऐसा करेंगे इसके बाद हम यूनुस से मिलने पहुंचे। शहनूर और इस्माइल उनका बार-बार जिक्र कर रहे थे। वो कम्युनिटी का लीडर है। हमने इस्माइल और शहनूर के आरोपों के बारे में पूछा तो यूनुस ने कैमरे पर आने से मना कर दिया। ऑफ द कैमरा उसने बताया, ‘पुलिस ने मुझे कुछ लोगों के नाम बताए थे और कहा था कि इन्हें बायोमेट्रिक के लिए थाने लाना है। मुझे नहीं पता था कि वे ऐसा करेंगे।‘

हालांकि जब इस मामले को लेकर हमने बदरपुर थाने के SHO अशोक कुमार से बात करने की कोशिश की तो उन्होंने कैमरे पर कुछ भी बोलने से इनकार कर दिया। उन्होंने ऑफ द रिकॉर्ड इतना जरूर कहा कि ऊपर से ऑर्डर मिलने पर ये सब हमें करना पड़ता है।

UN ने विरोध किया, कहा- भारत का ये कदम अमानवीय भारत की इस ‘पुशबैक’ नीति का यूनाइटेड नेशन ने विरोध किया है। म्यांमार में मानवाधिकारों की स्थिति पर संयुक्त राष्ट्र के विशेष दूत थॉमस एन्ड्रयूज ने कहा, ‘रोहिंग्या शरणार्थियों को नौसेना के जहाजों से समुद्र में फेंक दिया गया, ये बेहद चौंकाने वाला और निंदनीय कदम है।’

‘मैं इन घटनाओं के बारे में ज्यादा जानकारी और गवाहों की तलाश कर रहा हूं। भारत सरकार से अनुरोध करता हूं कि वह इस पूरी घटना की स्पष्ट और पूरी जानकारी दे।’

रोहिंग्या शरणार्थियों के मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट में पिटीशन 10 मई को इस मामले को लेकर एडवोकेट कॉलिन गोंसाल्वेस, मानिक गुप्ता और दिलवर हुसैन ने सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की। याचिका में आरोप लगाया कि भारत सरकार ने 38 रोहिंग्या शरणार्थियों को जबरदस्ती समुद्र में छोड़ दिया। ये भी कहा गया कि इन शरणार्थियों में महिलाएं, बच्चे, बुजुर्ग और कैंसर जैसे गंभीर मरीज से पीड़ित लोग भी शामिल थे।

16 मई को सुप्रीम कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए याचिकाकर्ता को फटकार लगाई। जस्टिस सूर्यकांत और दीपांकर दत्ता की पीठ ने कहा कि अगर रोहिंग्या शरणार्थी भारतीय कानूनों के तहत ‘विदेशी’ माने जाते हैं, तो उन्हें निर्वासित किया जा सकता है।

कोर्ट ने रोहिंग्या शरणार्थियों के निर्वासन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया। साथ ही याचिकाकर्ताओं के तत्काल सुनवाई के अनुरोध को भी खारिज कर दिया। मामले को लंबित याचिकाओं के साथ 31 जुलाई 2025 तक के लिए स्थगित कर दिया।

न सरकारी ऑर्डर निकला न म्यांमार से बात हुई, ये डिपोर्टेशन नहीं हमने याचिकाकर्ता और एडवोकेट मानिक गुप्ता से बात की। वे बताते हैं, ‘हमने सुप्रीम कोर्ट में एक PIL दाखिल की। ये एक हेबियस कॉर्पस पिटीशन है।’

‘रोहिंग्या शरणार्थियों के साथ जो कुछ भी हुआ, उसे डिपोर्टेशन नहीं कहा जा सकता, क्योंकि डिपोर्टेशन में सरकार की तरफ से ऑर्डर निकाला जाता है। दूसरे देश को ये स्वीकार करना होगा कि ये हमारे नागरिक हैं और आप उन्हें निर्वासित कर सकते हैं। ये कोई कानून नहीं है कि आप किसी भी व्यक्ति को शिप में बैठाकर पानी में छोड़ आएंगे।’

वो आगे कहते हैं, ‘हमारे संविधान में आर्टिकल 21, जीवन का अधिकार है। ये अधिकार शरणार्थियों को भी मिलता है। जो हो रहा है, वो इसका उल्लंघन है। ऐसे में सुप्रीम कोर्ट को दखल देना होगा। अप्रवासियों और शरणार्थियों में अंतर होता है। शरणार्थी अपने देश में जान बचाकर भारत आया है। भारत सरकार ने इन्हें साल 2017 में लॉन्ग-टर्म वीजा भी दिया। यानी सरकार ने माना कि रोहिंग्या शरणार्थी हैं।’

UNHRC भी भारत सरकार की मदद से ही काम कर पा रहा है। अगर वह किसी शरणार्थी को कार्ड दे रहा है तो भारत सरकार की सहमति के बाद ही दे रहा है। हमारे देश में तिब्बती और अफगानी शरणार्थी भी रहते हैं। आप दो देशों के शरणार्थियों में भेदभाव नहीं कर सकते।

‘जब ये खबर आती है कि 38 रोहिंग्या को निकाल दिया गया है, उसके अगले ही दिन असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्व सरमा का बयान सामने आता है कि उन्होंने डिटेंशन सेंटर में रह रहे शरणार्थियों को बांग्लादेश में ‘पुश’ कर दिया है। गुजरात में 72 शरणार्थियों को सुंदरबन में ले जाकर छोड़ दिया गया। सरकार को बताना ही होगा कि ये लोग कहां गए।’

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