इस साल के अंत में बिहार विधानसभा चुनाव होने हैं और उसके लिए महागठबंधन और एनडीए दोनों ही गठबंधनों में सीट शेयरिंग को लेकर घटल दलों में बैठकों का दौर जारी है। एनडीए में इस बार सीट शेयरिंग की गुत्थी कुछ ज्यादा पेचीदा है क्योंकि चिराग पासवान की पार्टी लोकजनशक्ति पार्टी (एलजेपी) (पासवान) भी इस बार एनडीए का हिस्सा है, जबकि पिछले विधानसभा चुनाव में उसने अलग चुनाव लड़ा था।
एनडीए में सीट बंटवारे का पेच समझिए
एलजेपी (पासवान) केंद्र सरकार में भी शामिल है और पार्टी नेता बिहार विधानसभा की कुल 243 सीटों में से कम से कम 40 सीटों पर लड़ने की बात कर रहे हैं। पिछले विधानसभा चुनाव में एनडीए में से बीजेपी ने 110 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 74 सीटें जीती थीं। जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा और 43 सीटें जीतीं। ‘हम’ ने 7 सीटों पर लड़ा और चार जीतीं। वीआईपी ने 11 पर लड़ा और चार जीतीं। 2020 का विधानसभा चुनाव लोकजनशक्ति पार्टी ने अलग से लड़ा था और तब 134 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। हालांकि सीट एक ही जीत पाई लेकिन जेडीयू को कई सीटों पर नुकसान हुआ।
इस दफे बदला-बदला एनडीए
पिछले विधानसभा चुनाव से इस बार में एनडीए का स्वरूप बदला है। वीआईपी अब एनडीए की जगह महागठबंधन का हिस्सा है और चिराग पासवान की पार्टी एनडीए में है। जाहिर तौर पर सीट शेयरिंग में बीजेपी और जेडीयू दोनों की सीटें कम होंगी। इसे लेकर खींचतान है कि किस पार्टी की कितनी सीटें कम होंगी। बीजेपी के नेता अनौपचारिक बातचीत में कहते हैं कि बीजेपी कम से कम 100 सीटों पर तो लड़ेगी ही। इसका मतलब है कि जेडीयू की काफी सीटें कम हो सकती हैं। जीतन मांझी 35 सीटों की मांग कर रहे है, हालांकि उन्हें भी मालूम है कि इतनी सीटें उन्हें नहीं मिलनी। लेकिन यह अपनी पहले की सीटें बचाने की कवायद है ताकि उनके कोटे की सीटें कम ना हों। एलजेपी (पासवान) के एक नेता ने अनौपचारिक बातचीत में कहा कि बीजेपी और हमें मिलकर 135-140 सीटों से ज्यादा पर लड़ना चाहिए ताकि सरकार स्थिर रहे।
चुनावी जोड़-घटाना, गुणा-भाग सब शुरू
मुकेश सहनी की पार्टी वीआईपी पिछले विधानसभा चुनाव में जहां एनडीए का हिस्सा थी, वह अब महागठबंधन के साथ है। लेकिन उनके एनडीए में वापसी की चर्चाएं तेज हैं। बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष दिलीप जायसवाल के एक बयान के बाद इसके कयास लगने लगे। हालांकि सहनी ने इसका खंडन किया है लेकिन राजनीति में ऐसे मौके भी दिखे हैं जब नेता रात में एक पार्टी के लिए प्रचार करते हैं और सुबह उठकर दूसरी पार्टी जॉइन कर लेते हैं। सहनी ने 2014 और 2019 का लोकसभा चुनाव आरएलडी के साथ मिलकर लड़ा था। सहनी अगर एनडीए में आते हैं तो सीट शेयरिंग को लेकर वहां रस्साकस्सी और बढ़ सकती है।
महागठबंधन में सीएम फेस पर सहमति नहीं, समन्वय समिति का गठन
पटना में महागठबंधन (इंडिया गठबंधन) की हुई बैठक में सीएम फेस पर तो सहमति नहीं बनी, लेकिन गठबंधन में शामिल दलों के बीच बेहतर समन्वय को लेकर कोऑर्डिनेशन कमेटी का गठन किया गया। इस कमेटी की जिम्मेदारी तेजस्वी यादव को सौंपी गई। जबकि समन्वय समिति में आरजेडी, कांग्रेस और वाम दल समेत अन्य दलों के नेताओं को शामिल किया गया है।
सीट शेयरिंग को लेकर जिच!
वर्ष 2020 के विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस और आरजेडी ने मिलकर चुनाव लड़ा। आरजेडी 144 सीटों पर और कांग्रेस 70 सीटों पर लड़ी। बाकी 29 सीटें वाम दलों को दी गई थी। चुनाव परिणाम के बाद आरजेडी को 75 सीटें मिली, जबकि कांग्रेस सिर्फ 19 सीटों पर सिमट गई, जिससे महागठबंधन की सरकार नहीं बन सकी। इसलिए आरजेडी के कई नेता इस बार चाहते हैं कि कांग्रेस को 70 सीटें नहीं दी जाए।
समझौते में जनाधार वाली सीटें हासिल करने की कोशिश
दूसरी तरफ कांग्रेस नेताओं का तर्क है कि पिछली बार कांग्रेस को 70 में से 30 सीटें ऐसी दी गई, जिस पर आरजेडी पिछले तीन-चार चुनाव में लगातार हारती रही है, जबकि कांग्रेस का भी सीटों पर प्रदर्शन अच्छा नहीं रहा है। पिछली बार सीट शेयरिंग के वक्त कांग्रेस की ओर से अखिलेश प्रसाद सिंह की भूमिका महत्वपूर्ण थी, लेकिन इस बार कांग्रेस ने चुनाव के ठीक पहले संगठन में बदलाव करते हुए राजेश कुमार को प्रदेश अध्यक्ष नियुक्त किया है। ऐसे में कांग्रेस अधिक सीटें हासिल करना चाहती हैं। हालांकि एनडीए को फिर से सत्ता में आने से रोकने के लिए कांग्रेस पार्टी इस बार कुछ सीटों पर समझौता भी कर सकती हैं, लेकिन अपने खाते में ऐसे सीटों की मांग करेगी, जिसमें जीत की संभावना ज्यादा हो।
सीट शेयरिंग होने तक सीएम फेस की घोषणा मुश्किल!
यही कारण है कि कांग्रेस अभी सीएम फेस के मुद्दे पर चुप है। कांग्रेस नेता यह चाह रहे हैं कि पहले सीट शेयरिंग का मसला पूरी तरह से हल हो जाए, उसके बाद ही सीएम फेस की घोषणा हो। कांग्रेस कुछ नेता इस पक्ष में भी है कि यदि आरजेडी के साथ सम्मानजनक समझौता नहीं होता है, तो दिल्ली की तरह बिहार में भी पार्टी अपने दमखम पर चुनाव लड़े। हालांकि दिल्ली में कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के बीच समझौता नहीं होने से बीजेपी को फायदा हुआ और लंबे समय के बाद दिल्ली में बीजेपी की सत्ता में वापसी हुई।
2010 के परिणाम से सीख लेकर आरजेडी नेता सतर्क
आरजेडी नेतृत्व 2010 विधानसभा चुनाव परिणाम से सीख लेकर सतर्क है। दिल्ली चुनाव परिणाम से यह बात साफ हो गई है कि पहले ही कांग्रेस पार्टी खुद सत्ता में न आए, लेकिन चुनाव परिणाम में पार्टी की भूमिका निर्णायक साबित होगी। आरजेडी नेताओं को भी इस बात का अहसास है कि अगर कांग्रेस अलग होकर चुनाव लड़ती है तो इससे उसे भी भारी नुकसान हो सकता है। 2010 के बिहार विधानसभा चुनाव में कांग्रेस और आरजेडी ने अलग-अलग चुनाव लड़ने का फैसला लिया, तो आरजेडी सिर्फ 22 सीटें जीत पाई थी, जबकि कांग्रेस को मात्र 4 सीटें ही मिली। यही कारण है कि आरजेडी भी कांग्रेस को नाराज नहीं करना चाहती है।
महागठबंधन में तेजस्वी ही सबसे मजबूत दावेदार
तेजस्वी समेत पार्टी के अन्य नेताओं को विश्वास है कि महागठबंधन में कांग्रेस, रालोजपा, वीआईपी और वाम दलों के साथ मिलकर चुनाव लड़ने पर महागठबंधन में सबसे अधिक सीटें आरजेडी के खाते में ही जाएगी, ऐसे में अभी सीएम फेस की घोषणा हो या नहीं, महागठबंधन को बहुमत मिलने की स्थिति में तेजस्वी यादव ही सीएम पद के लिए स्वभाविक रूप से सबसे मजबूत दावेदार होंगे।