अंग्रेजी कैलेंडर के हिसाब से हर साल 1 जनवरी से नए साल की शुरुआत होती है, लेकिन अगर हिंदू पंचांग की मानें तो 2025 में आज (30 मार्च) से नववर्ष शुरू हुआ है. ये दिन बहुत शुभ माना जाता है, क्योंकि इसी दिन से चैत्र नवरात्रि भी शुरू होती है. भारत के अलग-अलग राज्यों में इसे अलग-अलग नामों से मनाया जाता है. महाराष्ट्र में इसे गुड़ी पड़वा कहते हैं. आंध्र प्रदेश, तेलंगाना और कर्नाटक में इसे उगादी कहते हैं.
हिंदू नव वर्ष को नया साल भी कहा जाता है. हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार, यह तारीख चैत्र शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि को दर्शाती है. चैत्र महीने के पहले दिन हिंदू नव वर्ष मनाया जाता है. यह दिन विक्रम संवत 2082 वर्ष की शुरुआत का प्रतीक है. साथ ही चैत्र नवरात्रि और गुड़ी पड़वा जैसे प्रमुख त्योहारों के साथ मेल खाता है.
विक्रम संवत एक पुराना भारतीय कैलेंडर है जो चांद और सूरज दोनों को देखकर चलता है. इसका नया साल चैत्र महीने के पहले दिन आता है, जिसे चैत्र शुक्ल प्रतिपदा कहते हैं. इसकी स्थापना प्राचीन राजा विक्रमादित्य ने की थी.
हिंदू नव वर्ष 30 मार्च को क्यों?
हिंदू नव वर्ष हिंदू चंद्र कैलेंडर के अनुसार मनाया जाता है. हिंदू परंपरा के अनुसार, नया साल 1 जनवरी को नहीं मनाया जाता, क्योंकि यह ग्रेगोरियन कैलेंडर के बजाय चंद्र कैलेंडर का पालन करता है. हिंदू कैलेंडर चांद की गति के हिसाब से चलता है, जबकि अंग्रेजी कैलेंडर (ग्रेगोरियन) सूरज की गति के हिसाब से चलता है. इसलिए, हिंदू नव वर्ष 1 जनवरी को नहीं आता.
हिंदू नव वर्ष और अंग्रेजी कैलेंडर में क्या फर्क
ग्रेगोरियन कैलेंडर सौर आधारित होता है. ये सूरज के हिसाब से चलता है. मतलब, ये देखता है कि धरती सूरज का एक चक्कर कितने दिन में लगाती है. इसमें 12 महीने होते हैं और हर महीने में 30 या 31 दिन होते हैं. इसका नया साल 1 जनवरी को शुरू होता है.
जबकि हिंदू कैलेंडर चांद के हिसाब से चलता है. ये देखता है कि चांद धरती का एक चक्कर कितने दिन में लगाता है. इसमें भी 12 महीने होते हैं, लेकिन आमतौर पर हर महीने में 28 दिन होते हैं. इसका नया साल हमेशा एक ही तारीख को नहीं आता, क्योंकि चांद की गति बदलती रहती है.
हिंदू नववर्ष के पीछे का विज्ञान समझिए
भारत में खगोल विज्ञान का ज्ञान बेबीलोन से भी पहले का है. पहले वेदों में भी तारों और समय के बारे में जानकारी थी, जैसे तिथियां और नक्षत्र. आर्यभट्ट जैसे वैज्ञानिकों ने पंचांग को बनाने और उसे बेहतर बनाने में मदद की. हमारे पास पुराने समय के सभी रिकॉर्ड नहीं हैं, इसलिए हमें पुराने ग्रंथों से जानकारी निकालनी पड़ती है. हमारा हिंदू कैलेंडर सिर्फ परंपरा नहीं, बल्कि खगोल विज्ञान के सिद्धांतों पर आधारित है.
चांद लगभग 27.32 दिनों में धरती का चक्कर लगाता है और दो पूर्णिमाओं के बीच लगभग 29 दिन होते हैं. धरती को सूरज का चक्कर लगाने में 365 दिन लगते हैं. हमारा साल और मौसम थोड़े अलग होते हैं, क्योंकि धरती की धुरी थोड़ी हिलती रहती है. हिंदू कैलेंडर में चांद के हिसाब से तिथियां होती हैं और हमारा साल अंग्रेजी कैलेंडर से थोड़ा अलग होता है. साल में दो बार दिन और रात बराबर होते हैं. साल में दो बार सूरज सबसे ऊंचा होता है.
असल में एक सौर वर्ष में पूरे 12 चंद्र महीने नहीं होते हैं. सूरज और चांद के हिसाब से बने कैलेंडरों को मिलाना आसान नहीं है. अगर हम सिर्फ चांद के हिसाब से चलते, तो हमारे त्योहार हर साल अलग-अलग मौसम में आते. चांद का कैलेंडर आसान था और पुराने समय में अनपढ़ लोग भी चांद देखकर तारीख बता सकते थे. सूरज का कैलेंडर मौसम के हिसाब से सही था, लेकिन तारीख याद रखने के लिए पढ़े-लिखे लोगों की जरूरत थी. इसलिए, एक ऐसा कैलेंडर बनाया गया जो चांद और सूरज दोनों को मिलाकर चलता था, लेकिन इसके लिए गणित का ज्ञान होना जरूरी था.
ऐसे हुई ग्रेगोरियन कैलेंडर की शुरुआत
शुरुआत में रोमन कैलेंडर में केवल 10 महीने थे. सितंबर सातवां महीना था, अक्टूबर आठवां, नवंबर नौवां और दिसंबर दसवां. एक कैलेंडर वर्ष केवल 304 दिनों तक चलता था और सर्दियों के महीनों को बस अनदेखा कर दिया जाता था. कई सुधारों के बाद ग्रेगोरियन कैलेंडर आया जो आज दुनिया में सबसे ज्यादा इस्तेमाल किया जाता है. यह लगभग 365.2425 दिनों का होता है और इसमें बहुत कम गलती होती है.
तब पहले साल 360 दिनों का होता था. एक साल में 12 महीने और हर महीने 30 दिन होते थे. लेकिन बाद में हर छठे साल में एक अतिरिक्त महीना जोड़ा जाने लगा, ताकि साल का हिसाब सही रहे. इस तरह साल औसतन 365 दिनों का हो गया.
विक्रम संवत क्या है?
विक्रम संवत नेपाल का आधिकारिक कैलेंडर भी है. यह चंद्र महीनों और सौर नक्षत्र वर्षों का पालन करता है. यह कैलेंडर मुख्य भारत में लोकप्रिय है. इसे 56 ईसा पूर्व में शाकों पर अपनी जीत के बाद उज्जैन के सम्राट विक्रमादित्य द्वारा शुरू किया गया था. यह कैलेंडर ग्रेगोरियन कैलेंडर से 56.7 वर्ष (56 वर्ष और 8 ½ महीने) आगे है.
इसके महीनों के नाम तारों के समूहों के नाम पर रखे गए हैं. हर ढाई साल में एक अतिरिक्त महीना जोड़ा जाता है, ताकि त्योहार सही मौसम में आएं. यह कैलेंडर सूरज और चांद की असली गति देखकर गणना करता है. इसमें ‘ब्लू मून’ की तरह का हिसाब होता है. तिथियां 15-15 दिनों के दो पक्षों में गिनी जाती हैं और कभी-कभी एक पक्ष की अवधि बदल सकती है.
शक संवत: भारत का राष्ट्रीय पंचांग
शक संवत चंद्र महीनों और सौर नक्षत्र वर्षों का पालन करता है. इसे राजा शालिवाहन (शक राजवंश) की राजा विक्रमादित्य के राजवंश पर जीत के बाद शुरू किया गया था. इसका इस्तेमाल हिंदू कैलेंडर, भारतीय राष्ट्रीय कैलेंडर और कंबोडियाई बौद्ध कैलेंडर के साथ किया जाता है. नया साल वसंत विषुव के पास शुरू होता है.
इसमें 12 महीने होते हैं. हर महीने की लंबाई थोड़ी अलग होती है. चंद्रमा के चक्र को 30 भागों में बांटा गया है, जिन्हें तिथियां कहते हैं. हर तिथि की लंबाई 20 से 27 घंटे तक हो सकती है, क्योंकि चांद की गति बदलती रहती है.
शक संवत: भारत का आधिकारिक सौर कैलेंडर
शक संवत भारत का आधिकारिक नागरिक कैलेंडर है. इसे ग्रेगोरियन कैलेंडर के साथ-साथ भारत सरकार भी मानती है. यह कैलेंडर सौर उष्णकटिबंधीय वर्ष (सूर्य की गति पर आधारित) पर आधारित है और इसकी शुरुआत 22 मार्च से होती है, जबकि लीप वर्ष में यह 21 मार्च से प्रारंभ होता है.
शक संवत में 12 महीने होते हैं, जिनके नाम हैं: चैत्र, वैशाख, ज्येष्ठ, आषाढ़, श्रावण, भाद्रपद, आश्विन, कार्तिक, मार्गशीर्ष, पौष, माघ, फाल्गुन. सामान्य वर्ष में चैत्र माह में 30 दिन होते हैं, जबकि लीप वर्ष में इसमें 31 दिन होते हैं. अन्य महीनों की दिनों की संख्या ग्रेगोरियन कैलेंडर के समान होती है. शक संवत ग्रेगोरियन कैलेंडर से 78 साल पीछे है. जैसे अभी ग्रेगोरियन वर्ष 2025 चल रहा है, तो शक संवत में 1947 होगा.
मतलब, भारत के अलग-अलग हिस्सों में लोग अपने-अपने कैलेंडर इस्तेमाल करते हैं. पहले, हमारा साल सर्दियों के हिसाब से शुरू होता था, लेकिन अब वसंत के हिसाब से शुरू होता है. हमारा कैलेंडर तारों के हिसाब से चलता है, इसलिए हमारे त्योहारों की तारीखें थोड़ी बदल गई हैं, लेकिन हम उन्हें पुराने तरीके से ही मनाते हैं.