जो लोग शांतिपूर्ण क्रांति को असंभव बनाते हैं, वे हिंसक क्रांति को अनिवार्य कर देते हैं.” अमेरिका के राष्ट्रपति रहे जॉन एफ कैनेडी का ये कथन आज बलोचिस्तान के संदर्भ में एकदम ठीक बैठता दिख रहा है. सात-आठ दशकों के दमन, शोषण और जिल्लत के विरुद्ध उठी प्रतिरोध की आवाज को जब पाकिस्तान के सत्ता प्रतिष्ठान ने नहीं सुना तो अब बलोच लैंड में सशस्त्र क्रांति की आग भड़क चुकी है. बलोचिस्तान लिब्रेशन आर्मी, मजीद ब्रिगेड समेत कई संगठन अब पाकिस्तान की सत्ता और सेना को सीधी टक्कर दे रहे हैं.
बलोचिस्तान का शायद ही कोई घर होगा जहां से एक बेटा, एक बाप, एक भाई या फिर एक चाचा जबरन गायब (Enforced disappearance) न हुआ हो. क्वेटा, ग्वादर, खुजदार, तुर्बत, कलात, पंजगुर, नोशकी, बोलान… बलोचिस्तान के कितने शहरों के नाम गिनाए जाएं. हर शहर पाकिस्तानी सेना के जुल्म की कहानी कहता है.
यहां के तकरीबन घरों में अपनों की राहें तकती कुछ आंखें हैं. जिन्हें लगता है कि उनके पति, पिता, भाई एक दिन लौटेंगे. लेकिन एक ये इंतजार कभी न खत्म होने वाली एक स्याह गुफा है. इनके अपनों को ISI कथित आतकंवाद और दहशतगर्दी के नाम पर उठा लेती है, फिर बर्षो बरस गुजर जाते हैं उनकी कोई खबर नहीं मिलती.
लगातार बागी होते जा रहे बलोच, डॉ महरंग की गिरफ्तारी के बाद बढ़ा विद्रोह
इंतजार की इंतहा के बाद अमूमन पर्दे में रहने वाली बलोची लड़कियों ने इकंलाब का रास्ता चुना है. सीधे सवाल करने का रास्ता अख्तियार किया है. लेकिन ये प्रतिरोध हिंसक नहीं बल्कि गांधी की सदाकत से ताकत पाता है.
मात्र 32 साल की महरंग बलोच, सम्मी दीन बलोच, सीमा बलोच, फरजाना मजीद बलोच बलोचिस्तान के संघर्ष में ये कुछ नाम ऐसे हैं जिन्होंने न सिर्फ अपने निजी दुखों को एक सामूहिक संघर्ष में बदला, बल्कि पाकिस्तानी सेना और सरकार के उस सिस्टम को हिला दिया, जो दशकों से बलोचिस्तान की आवाज को कुचलता आया है. ये नाम आज बलोचिस्तान में प्रतिरोध के प्रतीक बन चुके हैं.
बलोच लोग लंबे समय से आरोप लगाते रहे हैं कि पाकिस्तानी सरकार और सेना उनके संसाधनों का शोषण करती है, उनकी जमीन पर बाहरी लोगों को बसाया जा रहा है, और उनकी सांस्कृतिक पहचान को मिटाने की कोशिश की जा रही है. सबसे गंभीर मुद्दा है “जबरन गायब करना” हजारों बलोच युवाओं को सुरक्षा बलों द्वारा अगवा कर लिया जाता है, और उनके परिवारों को यह तक नहीं पता होता कि वे जिंदा हैं या नहीं.
इसी दमन के खिलाफ बलोच यकजेहती समिति (Baloch Yakjehti Committee- BYC) ने एक शांतिपूर्ण आंदोलन की शुरुआत की. इस आंदोलन की कमान संभाली बलोचिस्तान की उन बेटियों ने, जिन्होंने अपने निजी दुखों को एक बड़े मकसद में बदल दिया.
महरंग बलोच: शांतिपूर्ण प्रतिरोध की मशाल
महरंग बलोच आज बलोचिस्तान में एक आइकन बन चुकी हैं. महरंग जब महज तेरह वर्ष की थीं, तभी उन्होंने अपने पिता के साथ मिलकर मानवाधिकारों के लिए लड़ाई लड़नी शुरू कर दी थी. एक डॉक्टर होने के नाते उन्होंने लोगों की सेवा का रास्ता चुना, लेकिन उनके पिता और भाई के साथ हुए अन्याय ने उन्हें मानवाधिकार कार्यकर्ता बना दिया. 2009 में उनके पिता अब्दुल गफ्फार लैंगोव को सुरक्षा बलों ने अगवा कर लिया, और 2011 में उनका शव मिला. इसके बाद 2017 में उनके इकलौते भाई को भी अगवा किया गया. तीन महीने बाद उसे पाक आर्मी ने छोड़ा. इन निजी त्रासदियों ने महरंग को बलोचिस्तान में हो रहे व्यापक अन्याय के खिलाफ लड़ने के लिए प्रेरित किया.
मौतों से डरना छोड़ चुकीं महरंग कहती हैं कि ‘जब मैं छोटी थी तो मुझे लगता था कि जब आप बूढ़े हो जाते हैं तो मौत होती है, मैं डरती थी और जनाजे में जाने से इनकार करती थी. पहली बार मैंने एक शव तब देखा जब मुझे मुर्दाघर में जबरदस्ती ले जाया गया. अपने पिता को दी गई यातना और उनके क्षत-विक्षत पड़े देह को पहचाना. मैंने 15 सालों में अपने करीबी लोगों के दर्जनों शव देखे हैं कि मौत अब मुझे डराती नहीं है.’
महरंग ने बलोच यकजेहती समिति के बैनर तले शांतिपूर्ण आंदोलनों का नेतृत्व किया. 2023 में उन्होंने तुर्बत से इस्लामाबाद तक 1600 किलोमीटर का लॉन्ग मार्च आयोजित किया, जिसमें हजारों लोग, खासकर महिलाएं, शामिल हुईं. इस मार्च ने लापता व्यक्तियों के मुद्दे को ग्लोबल फोरम प्रदान किया.
उनकी बेबाकी और साहस ने उन्हें 2024 में बीबीसी की 100 प्रभावशाली महिलाओं की सूची और टाइम मैगजीन की उभरते वैश्विक नेताओं की सूची में जगह दिलाई. लेकिन रावलपिंडी के जनरलों को महरंग बलोच के बढ़ते कदम भला कैसे भाते. उनपर लगातार टॉर्चर हुआ. पाकिस्तान की पंजाबी लॉबी वाली मीडिया ने उनपर तशद्दुद किया.
हाल ही में जब बलोचिस्तान में विद्रोहियों के हमले बढ़े तो बलोच आंदोलन की वजहों पर गौर करने के बजाय पाकिस्तान सेना ने एक बार फिर से बलोचिस्तान में दमन की कार्रवाई शुरू कर दी.
22 मार्च 2025 में, क्वेटा में एक शांतिपूर्ण प्रदर्शन के दौरान उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया और उन पर आतंकवाद, देशद्रोह जैसे गंभीर आरोप लगाए गए. उनकी गिरफ्तारी ने बलोचिस्तान में आक्रोश की लहर पैदा कर दी. 22 मार्च के बाद अभी तक महरंग बलोच की कोई खबर नहीं है.
डॉक्टर बलोच ने एक इंटरव्यू में कहा था, ‘जब मैं छोटी थी तो मुझे लगता था कि जब आप बूढ़े हो जाते हैं तो मृत्यु होती है मैं मौत से डरती थी और फ्यूनरल में जाने से इनकार करती थी. पहली बार मैंने एक शव तब देखा जब मुझे मुर्दाघर में जबरदस्ती ले जाया गया… अपने पिता को दी गई यातना और उनकी क्षत-विक्षत देह की मैंने पहचान की.. मैं मजबूर की गई..’ कहती हैं- मैंने पिछले 15 सालों में अपने करीबी लोगों के दर्जनों शव देखे हैं कि मौत अब मुझे डराती नहीं है.
सम्मी दीन बलोच: गायब हुए पिता की खोज में एक बेटी की लड़ाई
सम्मी दीन बलोच की कहानी भी कम मार्मिक नहीं है. उनके पिता दीन मोहम्मद बलोच को 2009 में अगवा किया गया था, और तब से उनकी कोई खबर नहीं है. इस घटना ने सम्मी को मानवाधिकार आंदोलन में शामिल होने के लिए प्रेरित किया. वे “वॉइस फॉर बलोच मिसिंग पर्सन्स” की महासचिव हैं और BYC की एक सक्रिय सदस्य भी. सम्मी उन सभी परिवारों की आवाज बनीं, जिनके अपने लापता हैं.
बलोचिस्तान के तुतक और दश्त में सामूहिक कब्रों में पाए गए अज्ञात शवों का जिक्र करते हुए सम्मी दीन ने कहा था, “हम जानते हैं कि ये शव उन्हीं बलूचों के हैं जिनकी माताएं अभी भी उनके लौटने का इंतज़ार कर रही हैं. हमें यहां इंसान के तौर पर नहीं पहचाना जाता. जो शव फेंके जाते हैं, कोई नहीं जानता कि वे किस बलूच के हैं.”
सम्मी ने कई प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और बलोचिस्तान के बाहर भी, जैसे कराची में, अपनी बात रखी. लेकिन उनकी सक्रियता ने उन्हें भी सत्ता के निशाने पर ला दिया.
मंगलवार को कराची में एक प्रदर्शन के दौरान उन्हें हिरासत में ले लिया गया. BYC ने इसे “बलोच प्रतिरोध को दबाने की कोशिश” करार दिया.
सम्मी दीन बलोच को कराची पुलिस ने एक दिन पहले सम्मी और कई अन्य लोगों को धारा 144 का उल्लंघन करने के आरोप में गिरफ्तार किया था. इस मामले में उन्हें कोर्ट ने बेल दे दी. लेकिन कराची पुलिस ने सम्मी दीन बलोच को अदालत परिसर से फिर से गिरफ्तार कर लिया.
कराची पुलिस ने इस बलूच नेता को अदालत परिसर से हिरासत में ले लिया और उन्हें सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने (एमपीओ) के तहत 30 दिनों के लिए जेल भेज दिया.
इसके बावजूद, सम्मी ने हार नहीं मानी. उनकी हिम्मत और दृढ़ता ने बलोच युवाओं, खासकर महिलाओं, को प्रेरित किया है कि वे अपने हक के लिए लड़ें.
सीमा बलोच: महिलाओं को संगठित करने वाली योद्धा
सीमा बलोच BYC की एक और सशक्त आवाज हैं. उन्होंने खास तौर पर बलोच महिलाओं को संगठित करने और उनके अधिकारों के लिए जागरूकता फैलाने में अहम भूमिका निभाई है. बलोचिस्तान में महिलाएं दमन का दोहरा शिकार होती हैं- एक तरफ राज्य की हिंसा, दूसरी तरफ सामाजिक रूढ़ियां. सीमा ने इन रूढ़ियों को तोड़ते हुए महिलाओं को सड़कों पर उतरने के लिए प्रेरित किया.उनके प्रयासों की वजह से आज बलोच आंदोलन में महिलाओं की भागीदारी पहले से कहीं ज्यादा है.
सीमा बलोच के भाई शब्बीर बलोच अक्टूबर 2016 में गायब हो गए थे. जब वह पहली बार अपने भाई की रिहाई के लिए अभियान चलाने के लिए रैलियों में शामिल हुईं, तब वह गर्भवती थीं. उनका बेटा मीरास (पांच साल) और तीन साल की बेटी शैरी प्रोटेस्ट कैंप में बड़े हुए हैं.
सीमा कहती हैं कि जुलाई 2022 में, क्वेटा में भारी बारिश के दौरान 50 दिनों के धरने के दौरान शैरी बहुत बीमार हो गईं. “हमारे बच्चे बहुत निराशाजनक और असहाय स्थिति में बड़े हो रहे हैं और वे पीड़ित हैं. परिवार के एक सदस्य का गायब होना पूरे परिवार के लिए सामूहिक सजा है.”
सीमा ने भी कई प्रदर्शनों में हिस्सा लिया और लापता व्यक्तियों के परिवारों के लिए आवाज उठाई. उनकी सक्रियता ने बलोचिस्तान में एक नई चेतना जगाई है, जहां महिलाएं अब अपने हक के लिए खुलकर बोल रही हैं.
गायब बलोच लोगों के आंकड़े
गार्जियन अखबार ने एनजीओ वॉयस फॉर बलूच मिसिंग पर्सन्स के हवाले से कहा है कि 2000 के दशक की शुरुआत से 5,000 से ज़्यादा लोगों का अपहरण किया गया है, लेकिन उनका क्या हुआ, यह पता नहीं चल पाया है. बलूचिस्तान मानवाधिकार परिषद के आंकड़ों के अनुसार, दिसंबर 2016 से प्रांत में कम से कम 6,224 लोग लापता हो चुके हैं, जबकि 2,065 लोगों को रिहा किया गया है और 2,766 लोगों की हत्या की गई है.
वैश्विक फोरम पर मिली पहचान
महरंग, सम्मी और सीमा ने हमेशा शांतिपूर्ण प्रतिरोध का रास्ता चुना. उन्होंने गांधीवादी तरीकों से अपनी बात रखी-लंबे मार्च, धरने, सभाएं. लेकिन पाकिस्तानी सत्ता ने उनकी आवाज को दबाने के लिए हर हथकंडा अपनाया. महरंग, सम्मी और सीमा की वजह से बलोचिस्तान का मुद्दा आज वैश्विक मंचों पर पहुंच चुका है. एमनेस्टी इंटरनेशनल, संयुक्त राष्ट्र के मानवाधिकार आयोग ने इनके संघर्षों को स्वीकार किया है. महरंग की गिरफ्तारी के बाद, उनकी बहन इकरा बलोच ने कहा, “हुद्दा जेल में महरंग को देखना मुझे 18 साल पहले की याद दिलाता है, जब मैंने अपने पिता को वहां देखा था.” इन बागी लड़कियों ने न सिर्फ बलोचिस्तान में एक नई चेतना जगाई, बल्कि दुनिया को दिखा दिया कि दमन के खिलाफ आवाज उठाने की हिम्मत किसी भी सत्ता को हिला सकती है.