ब्रिक्स ग्रुप की शुरुआत चार देशों के साथ हुई थी। इसके बाद इसमें दक्षिण अफ्रीका शामिल हुआ और इस साल फिर से इसका विस्तार हुआ है। रूस में हो रहे ब्रिक्स शिखर सम्मेलन में पांच नए सदस्य देशों के शामिल होने के बाद सदस्यों की संख्या दोगुनी हो गई है। उभरती अर्थव्यवस्थाओं के समूह ब्रिक्स में अब दो अफ्रीकी देशों- मिस्र और इथियोपिया के अलावा ईरान और यूएई भी आ गए हैं। 55 सदस्यीय अफ्रीकी संघ में दो और देशों का शामिल होना भारत के लिए महत्वपूर्ण है। ब्रिक्स का भारत शुरुआती और अहम सदस्य है। ऐसे में इस समूह का विस्तार उसके लिए खास मायने रखता है।
स्टार्ट न्यूज ग्लोबल से बातचीत में दिल्ली में दक्षिण एशियाई विश्वविद्यालय के प्रोफेसर राजेन हर्षे कहते हैं, सभी अफ्रीकी देशों के साथ भारत का व्यापार काफी बढ़ा है और निवेश भी लगातार बढ़ रहे हैं। भारत एक ऐसा देश है, जिसे उर्जा की जरूरत है और उसे इसके वैकल्पिक स्रोतों की तलाश है। ऐसे में ब्रिक्स का विस्तार उसके लिए खास है।
इथियोपिया और मिस्र का शामिल होना महत्वपूर्ण
विवेकानंद इंटरनेशनल फाउंडेशन की वरिष्ठ फेलो अफ्रीका विशेषज्ञ रुचिता बेरी के मुताबिक, ब्रिक्स के विस्तार के बाद अब इसमें अफ्रीकी महाद्वीप के तीन देश शामिल हो गए हैं। इथियोपिया अफ्रीका में भारत का रणनीतिक साझेदार है। भारत के इथियोपिया के साथ घनिष्ठ संबंध रहे हैं। मिस्र भी भारत का रणनीतिक साझेदार है।
बेरी कहते हैं कि अफ्रीकी महाद्वीप को किसी भी बहुपक्षीय संस्था में प्रतिनिधित्व का हिस्सा नहीं मिला। उन्होंने कहा, ‘अफ्रीकी देश ब्रिक्स को एक ऐसे मंच के रूप में देखते हैं, जो उन्हें उन मुद्दों पर अपनी आवाज उठाने का मंच देगा, जिन पर वे लंबे समय से दुनिया द्वारा हाशिए पर रखे गए थे। इस समय कम से कम 34 देश हैं, जिन्होंने ब्रिक्स में शामिल होने में रुचि दिखाई है। उन्हें लगता है कि ब्रिक्स वास्तव में वैश्विक दक्षिण का प्रतिनिधि है और यह वैश्विक दक्षिण की आवाज बनेगा।
ब्रिक्स में बड़े आकार के देशों की एंट्री
प्रोफेसर हर्षे का कहना है कि ब्रिक्स संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद की स्थायी सदस्यता के गठन को प्रभावित करने के लिए एक बहुत बड़ा दबाव समूह बन सकता है। अफ्रीका पर किताब लिखने वाले प्रोफेसर हर्षे ने कहा, ‘सुरक्षा परिषद का स्थायी सदस्य बनने वाला देश विश्व राजनीतिक और सुरक्षा व्यवस्था का संरक्षक बन जाता है। इसलिए भारत को इसकी सदस्यता की आवश्यकता है। इसी तरह ऊर्जा के मामले में यूएई एक बहुत बड़ा देश है क्योंकि संसाधन के लिहाज से तेल बहुत महत्वपूर्ण है।
ब्रिक्स में बड़े आकार के देशों के शामिल होने का मतलब यह भी है कि यह मंच दुनिया की आबादी के एक बड़े हिस्से का प्रतिनिधित्व करेगा। ब्रिक्स दुनिया की 41 फीसदी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है, जिसका विश्व जीडीपी में 24 फीसदी और विश्व व्यापार में 16 प्रतिशत है। प्रोफेसर हर्षे कहते हैं कि ब्रिक्स अंतरराष्ट्रीय राजनीति में पश्चिमी प्रभुत्व को चुनौती देने के लिए बना, इसलिए इसका विस्तार समझ में आता है। ब्रिक्स देश एक वैकल्पिक अंतरराष्ट्रीय व्यवस्था स्थापित करना चाहते हैं।