बिहार की राजधानी पटना और हाजीपुर में बस गांधी सेतु पुल का फासला है.जब ये पुल बना था तब ये भारत के सबसे लंबे और बड़े पुलों में शामिल था.दरअसल कुछ ऐसा ही इस लोकसभा सीट (Hajipur Lok Sabha Seat)का सियासी इतिहास भी है. यहां से 8 बार जीत दर्ज कर चुके दिवंगत नेता रामविलास पासवान (Ram Vilas Paswan) ने यहां इतनी बड़ी-बड़ी जीत हासिल की है जो सालों तक रिकॉर्ड बना रहा है. अपने पहले चुनाव में रामविलास ने यहां से साढ़े चार लाख वोटों से जीत दर्ज की तो उनके तीसरे चुनाव में जीत का फासला बढ़कर 5 लाख 4 हजार हो गया जो कि वर्ल्ड रिकॉर्ड बन गया था. तब हाजीपुर में नारा लगता था- धरती से गूंजे आसमान, हाजीपुर में रामविलास पासवान. वे जब तक सियासत में रहे तब तक वे केन्द्र में करीब-करीब हर सरकार में मंत्री रहे और हर बार वे हाजीपुर से ही सांसद रहे.
हाजीपुर सीट के सियासी इतिहास पर तफ्सील से बात करेंगे लेकिन पहले ये जान लेते हैं कि आखिर खुद हाजीपुर का इतिहास क्या है…क्योंकि अतीत के आइने में ही वर्तमान और फिर भविष्य दिखाई देगा.हाजीपुर जिला सूबे की राजधानी पटना से सटा हुआ है और गंगा और गंडक नदियों के किनारे पर स्थित है.
इसके अलावा हाजीपुर से 3 किलोमीटर दूरी पर ही मौजूद है सोनपुर शहर जहां भारत का सबसे बड़ा पशु मेला लगता है. ऐसा माना जाता है कि बंगाल के गवर्नर हाजी इलियास शाह के 13 वर्षों के शासनकाल में यह इलाका कस्बे का रुप लेने लगा. इन्हीं हाजी इलियास के नाम पर इस शहर का नाम हाजीपुर पड़ा. वैसे हाजीपुर राज्य की राजधानी पटना के करीब होने के कारण हाई प्रोफाइल शहर माना जाता है. पहले यह मुजफ्फरपुर का हिस्सा था. 1972 में वैशाली के स्वतंत्र जिला बनने के बाद हाजीपुर इसका मुख्यालय बनाया गया था.
हालांकि 2009 के चुनाव में एक बार फिर उन्हें जनता दल यूनाइडेट के राम सुंदर दास से हार का स्वाद चखना पड़ा. अपनी हार का बदला उन्होंने 2014 में लिया औऱ फिर हाजीपुर से ही सांसद बनें. वे यहां से कुल 8 बार सांसद बने. 2019 के चुनाव में उन्होंने अपना भाई पशुपति पारस को मैदान में उतारा और वे भी यहां से जीत कर संसद पहुंचे.
लेकिन 2024 के चुनाव में बड़ा ट्विस्ट है. रामविलास पासवान की पुश्तैनी सीट पर कब्जे की जंग उनके ही परिवार में छिड़ी हुई है. NDA में सीट बंटवारे के तहत ये सीट राम विलास पासवान के बेटे चिराग पासवान के हिस्से में आई है तो दूसरी तरफ उनके ही चाचा पशुपति पारस यहीं से चुनाव लड़ने के लिए अड़े हुए हैं और ऐसी खबरें हैं कि वो महागठबंधन में ठौर तलाश रहे हैं. इस सियासी जंग में अहम ये है कि चाचा-भतीजे की इस लड़ाई में भतीजे चिराग को अपने दूसरे चाचा नीतीश कुमार का साथ चाहिए होगा. क्योकि नीतीश कुमार पिछले विधानसभा चुनाव में चिराग पासवान की ओर से लगे चोट को शायद ही अब तक भूले होंगे. हालांकि अभी खुद नीतीश भी NDA में हैं लेकिन देखना ये होगा कि वे निजी तौर पर चिराग का कितना साथ देते हैं. इन्हीं वजहों से चिराग के लिए राह उतनी आसान नहीं है जितनी की वो मान रहे होंगे.