बिहार में चुनावी अखाड़े का पहला राउंड NDA ने जीत लिया है। पिछले एक महीने से NDA और महागठबंधन में जारी माथापच्ची के बीच NDA ने सहयोगियों की आपसी सहमति से न केवल सीट शेयरिंग की घोषणा की बल्कि कौन सी पार्टी किस लोकसभा से चुनाव लड़ेगी इसकी भी घोषणा कर दी। दूसरी तरफ महागठबंधन में अभी भी मंथन का दौर जारी है।
NDA की सीट शेयरिंग से इस बार BJP का मैसेज साफ है कि बिहार में अब सत्ताधारी गठबंधन का बड़ा भाई BJP ही है। यही कारण है कि 2019 के चुनाव में भले BJP और JDU बराबर-बराबर सीटों पर लड़ी थी, लेकिन इसके लिए BJP को अपनी 5 सिटिंग सीटों (वाल्मीकिनगर, झंझारपुर , सीवान, गोपालगंज और गया) की आहुति देनी पड़ी थी।
इस बार JDU, बीजेपी के मुकाबले न केवल एक सीट कम लड़ रही है बल्कि उन्हें अपनी दो विनिंग सीटें काराकाट और गया की कुर्बानी देनी पड़ी । हालांकि बदले में एक शिवहर की सीट देकर जरूर डैमेज कंट्रोल की कोशिश की गई है।
दलित का चेहरा चिराग
NDA की सीट शेयरिंग से एक बात और साफ हो गई है कि रामविलास पासवान की विरासत के चिराग पासवान न केवल असली हकदार हैं, बल्कि एनडीए के लिए अखिल बिहार स्तर पर दलित का चेहरा भी वही होंगे। यही कारण है कि नरेंद्र मोदी सरकार में भले कैबिनेट का सुख पशुपति पारस को मिला, लेकिन चुनाव चिराग के चेहरे पर ही लड़ा जाएगा। पशुपति पारस की धमकी के बाद भी उन्हें एक भी सीट नहीं दी गई। चिराग को जमुई के साथ हाजीपुर सीट भी दी गई। नवादा सीट जरूर उनसे ले ली गई।
इस बार एनडीए की सीट शेयरिंग में 3 बदलाव हुए हैं। पहला- बीजेपी अपनी सिटिंग सीट शिवहर छोड़ दी। दूसरा- एलजेपी की एक सीट कम कर उसकी विनिंग सीट नवादा वापस अपने पास ले ली। तीसरा- जदयू अपनी दो विनिंग सीट, काराकाट और गया उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी के लिए छोड़ दी। बाकी सब कुछ पिछले चुनाव की तरह ही है।
अब 4 सवाल में समझिए सीट शेयरिंग के मायने …
1. बीजेपी ने अपनी तीन बार की विनिंग सीट शिवहर क्यों छोड़ दी?
वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडेय कहते हैं कि बीजेपी से रमा देवी का टिकट कटना तय था। एक तो एज फैक्टर है। वो बीजेपी की तरफ से निर्धारित 75 साल के करीब पहुंच गई हैं। दूसरा, पार्टी के खिलाफ एंटी इनकंबेसी का माहौल और तीसरा- आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद का जदयू जॉइन करना।
शिवहर में अभी तक 10 सांसद बने हैं, इनमें 7 राजपूत हैं। उसमें भी दो बार आनंद मोहन रहे हैं। इनके बेटे चेतन आनंद यहां से मौजूदा विधायक हैं। पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि ऐसे में रमा देवी के विकल्प के रूप में आनंद मोहन परिवार का कोई भी सदस्य यहां एक जीताऊ उम्मीदवार हो सकता है।
सवर्ण बीजेपी के कोर वोट बैंक भी माने जाते हैं। ऐसे में ऐसा माना जा रहा कि बीजेपी ने एक तीर से दो निशाना साधा है। एक तो एंटी इनकंबेसी की काट और दूसरा अपने कोर वोट बैंक को मैसेज। अगर आनंद मोहन परिवार को यहां से टिकट मिलता है तो उन्हें सवर्ण बाहुल अन्य सीटों पर भी इसका लाभ मिल सकता है।
2. चिराग नवादा छोड़ने के लिए क्यों राजी हो गए?
एक्सपर्ट कहते हैं कि चिराग पासवान को अगर सबसे ज्यादा खीझ किसी से थी तो वे सूरजभान थे, जिस सूरजभान को एक जमाने में राम विलास पासवान का हनुमान कहा जाता था। चिराग पार्टी में टूट का जिम्मेदार भी उन्हें ही मानते हैं। इसलिए चिराग हाजीपुर सीट तो वापस चाहते ही थे, किसी भी सूरत में वो सूरजभान के परिवार को NDA से दूर रखना चाहते थे।
एक्सपर्ट कहते हैं कि इसमें वो कामयाब भी रहे। इसका एक दूसरा मायना यह भी है कि BJP ने अपनी एक सवर्ण सीट शिवहर का त्याग कर दूसरी सवर्ण सीट वापस नावादा हासिल कर ली। नवादा भूमिहार बाहुल सीट है। 2009 से लगातार ये एनडीए के पास है। दो बार यहां से बीजेपी जीती है, वहीं पिछले चुनाव में यहां से लोजपा के उम्मीदवार ने जीत दर्ज की है।
ऐसे में इस बार चर्चा है कि बीजेपी अपने पार्टी के किसी भूमिहार कैंडिडेट को यहां उतार सकती है। सूत्रों की मानें तो पार्टी के कद्दावर नेता सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर को बीजेपी यहां से उम्मीदवार बना सकती है।
3. मांझी और कुशवाहा 1 सीट पर क्यों मान गए?
उपेंद्र कुशवाहा और जीतन राम मांझी 2019 के लोकसभा चुनाव में महागठबंधन का हिस्सा थे। कुशवाहा की पार्टी जहां 5 सीटों पर चुनाव लड़ी थी वहीं मांझी के हिस्से तीन सीटें आईं थी। लेकिन दोनों का लोकसभा में खाता तक नहीं खुला था। वरिष्ठ पत्रकार अरुण पांडे कहते हैं कि उपेंद्र कुशवाहा के सामने अस्तित्व की लड़ाई है। पिछली बार वो खुद दो सीटों (काराकाट और उजियारपुर) से चुनाव हार चुके हैं।
ऐसे में वे सीटों पर बारगेनिंग करने से ज्यादा लोकसभा का अपना वनवास समाप्त करना चाहते हैं। जीतन राम मांझी के बेटे को पहले ही एमएलसी और एक मंत्री का पद राज्य में मिल चुका है। ऐसे में लोकसभा की एक सीट को वे अपने लिए फायदे का सौदा मान रहे हैं। सूत्रों की मानें तो मांझी खुद गया सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ सकते हैं।
4. नीतीश कुमार को 16 सीट देकर बीजेपी क्या मैसेज देना चाहती है?
पॉलिटिकल एक्सपर्ट की मानें तो जदयू को एक सीट का नुकसान की बजाय फायदा हुआ है। पिछली बार सीतामढ़ी पर सिंबल भले जदयू का था, लेकिन कैंडिडेट बीजेपी का ही था। लेकिन इस बार कैंडिडेट भी उनका होगा और सिंबल भी।
नीतीश कुमार पहले ही वहां से अपने करीबी और विधान परिषद सभापति देवेश चंद्र ठाकुर के नाम की घोषणा कर चुके हैं। सुनिल पिंटू का टिकट वहां से कटना तय माना जा रहा है। इसके साथ बगल की शिवहर सीट भी इस बार जदयू के खाते में आ गई है।
इस बार मुकाबला थोड़ा टफ
पॉलिटिकल एक्सपर्ट कहते हैं कि बीजेपी नीतीश कुमार के महत्व को जानती है। यही कारण है कि चुनाव से पहले एक बार फिर से वो नीतीश कुमार को एनडीए में लाने में कामयाब रही। नीतीश के सहारे बीजेपी सेक्युलर वोट खास कर अल्पसंख्यक वोटों को अपने पाले में करना चाहती है। पिछले चुनाव तक वो इसमें कामायाब भी रही है। लेकिन इस बार मुकाबला थोड़ा टफ है तो इस बार वो कितना कामयाब हो पाती है ये तो चुनाव के बाद ही पता चल पाएगा।