कांग्रेस के सबसे बड़े चेहरों में से एक राहुल गांधी 14 जनवरी से भारत न्याय यात्रा पर निकलेंगे जिसके जरिए पार्टी की रणनीति 14 राज्य, 355 लोकसभा सीटों को कवर करने की है. इन 355 में से 282 सीटें बीजेपी के नेतृत्व वाले गठबंधन के पास है जो बहुमत के लिए जरूरी 272 के जादुई आंकड़े से भी अधिक है. राहुल की सबसे बड़ी चुनौती क्या होगी?
साल 2024 के पहले हाफ में लोकसभा चुनाव होने हैं और सियासी दलों ने इसके लिए अपनी-अपनी गोटी सेट करने की कवायद शुरू कर दी है. विपक्षी इंडिया गठबंधन की धुरी कांग्रेस ने भी अब अपने सबसे बड़े नेताओं में से एक राहुल गांधी को मैदान में उतारने का ऐलान कर दिया है. कन्याकुमारी से कश्मीर तक भारत जोड़ो यात्रा के बाद अब कांग्रेस ने पूर्वोत्तर के मणिपुर से महाराष्ट्र के मुंबई तक राहुल गांधी की भारत न्याय यात्रा की घोषणा कर दी है.
राहुल गांधी की भारत न्याय यात्रा 14 जनवरी को मणिपुर से शुरू होगी और 20 मार्च को महाराष्ट्र के मुंबई पहुंचकर संपन्न होगी. राहुल गांधी 67 दिन की इस यात्रा के दौरान 6200 किलोमीटर की दूरी तय करेंगे. कांग्रेस की रणनीति इस यात्रा के जरिए 14 राज्यों की 355 लोकसभा सीटों को कवर करने की है. मणिपुर टू मुंबई यह भारत न्याय यात्रा नगालैंड, असम, मेघालय, पश्चिम बंगाल, बिहार, झारखंड, ओडिशा, छत्तीसगढ़, उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, राजस्थान और गुजरात भी जाएगी.
भारत न्याय यात्रा का जो रूट कांग्रेस ने तैयार किया है, इसमें शामिल राज्यों में फिलहाल कांग्रेस की स्थिति बहुत खराब है. इन 14 राज्यों में लोकसभा की कुल 355 सीटें हैं. मणिपुर में 2, नगालैंड में 1, असम में 14, मेघालय में 2, पश्चिम बंगाल में 42, बिहार में 40, झारखंड में 14, ओडिशा में 21, छत्तीसगढ़ में 11, उत्तर प्रदेश में 80, मध्य प्रदेश में 29, राजस्थान में 25, गुजरात में 26 और महाराष्ट्र में लोकसभा की 48 सीटें हैं.
राहुल गांधी की भारत न्याय यात्रा जिन राज्यों से गुजरेगी, उन राज्यों में कांग्रेस की स्थिति
इन राज्यों में कांग्रेस की हालत पतली है. जिस मणिपुर से कांग्रेस की यात्रा शुरू होनी है, 2019 के चुनाव में वहां कांग्रेस एक भी सीट नहीं जीत सकी थी. नगालैंड में भी पार्टी शून्य पर सिमट गई थी तो वहीं असम की 14 में से कांग्रेस को तीन सीटों पर जीत मिली थी. कांग्रेस मेघालय में एक सीट जीतने में सफल रही थी. कांग्रेस पश्चिम बंगाल और छत्तीसगढ़ में दो-दो, ओडिशा- बिहार- झारखंड- मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के साथ ही महाराष्ट्र में पार्टी एक-एक सीटें ही जीत सकी थी. राजस्थान और गुजरात में कांग्रेस का खाता तक नहीं खुल सका था.
इन 14 राज्यों की 355 सीटों में से कांग्रेस 2019 के चुनाव में मात्र 14 सीटों पर सिमट गई थी. इसके उलट केंद्र की सत्ता पर काबिज भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के पास इन राज्यों की 237 सीटें हैं. बीजेपी के गठबंधन सहयोगियों को भी ले लें तो एनडीए की सीटों का आंकड़ा 282 पहुंच जाता है जो बहुमत के लिए जरूरी 272 सीटों के जादुई आंकड़े से भी ज्यादा है. इन राज्यों में कांग्रेस की खोई सियासी जमीन वापस पाने और सीटें बढ़ाने की चुनौती राहुल गांधी के सामने होगी. माना जा रहा है कि राहुल गांधी का फोकस पीएम मोदी और हिंदुत्व की काट तलाशने पर राहुल गांधी का फोकस होगा.
इन 14 राज्यों में क्या मुद्दे होंगे?
कांग्रेस के लिए हिंदी बेल्ट, खासकर यूपी और बिहार जैसे राज्यों में मंडल बनाम कमंडल यानी राममंदिर की लहर की काट तलाशने के लिए चुनौती होगी. भारत न्याय यात्रा नाम को इस बात का इशारा माना जा रहा है कि कांग्रेस का जोर जातीय, खासकर ओबीसी पॉलिटिक्स को धार देने की रणनीति पर होगा. जातीय जनगणना की मांग संसद से लेकर राज्यों के चुनाव तक, हर संभावित मंच पर कांग्रेस उठाती रही है.
सामाजिक न्याय यूपी और बिहार की पॉलिटिक्स में एक बड़ा फैक्टर रहा है. यूपी में बीजेपी की गठबंधन सहयोगी सुभासपा, अपना दल सोनेलाल और निषाद पार्टी जैसे दलों के साथ ही बिहार में राष्ट्रीय जनता दल जैसी पार्टियों की सियासत का आधार भी सामाजिक न्याय ही है. कांग्रेस की रणनीति अब कमंडल की काट के लिए जातीय वोट बैंक में आधार तलाशने की हो सकती है.
पूर्वोत्तर से उत्तर तक बीजेपी ने केंद्र सरकार की योजनाओं के लाभार्थियों का एक नया वोट बैंक खड़ा किया है. इस वर्ग के मतदाताओं को अपने पाले में कैसे लाया जाए, किस तरह के वादे किए जाएं, कांग्रेस के सामने हिंदुत्व की काट तलाशने के साथ यह चुनौती भी होगी. 80 लोकसभा सीटों वाले उत्तर प्रदेश की बात करें तो पीएम मोदी के साथ ही सीएम योगी की लोकप्रियता से पार पाना भी कांग्रेस के लिए बड़ी चुनौती होगा.
करीब-करीब सभी राज्यों में हिंदुत्व की काट तलाशने, बीजेपी के पक्ष में काउंटर पोलराइजेशन रोकने की चुनौती भी कांग्रेस के सामने होगी तो साथ ही पार्टी की रणनीति खुद से छिटके सवर्ण-दलित और अल्पसंख्यक के साथ जाट वोट बैंक को फिर से जोड़ने की होगी. पूर्वोत्तर के राज्यों में एनआरसी बड़ा मुद्दा है. असम से लेकर मेघालय और नगालैंड तक कांग्रेस की रणनीति एनआरसी को लेकर नाराजगी कैश कराने की होगी.
असम समेत पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में भी बांग्लादेशी घुसपैठियों का मसला मुद्दा बनता रहा है. बिहार में नीतीश सरकार की जातिगत जनगणना को इंडिया गठबंधन के दल बड़ी उपलब्धि के रूप में जनता के बीच लेकर जा रहे हैं तो वहीं उत्तर प्रदेश में 22 जनवरी को राम मंदिर में रामलला की प्राण प्रतिष्ठा होने जा रही है. यानी हिंदी बेल्ट में जातीय सियासत के साथ ही राम मंदिर भी एक बड़ा मुद्दा रहेगा, ये तय माना जा रहा है. कांग्रेस समेत इंडिया गठबंधन के अन्य दलों का जोर महंगाई, बेरोजगारी के मुद्दों पर भी है.
सोशल इंजीनियरिंग की काट भी चुनौती
बीजेपी ने तीन राज्यों की सरकार के जरिए जातीय समीकरणों का जो गुणा-गणित सेट किया है, उस नई सोशल इंजीनियरिंग की काट भी कांग्रेस के लिए चुनौतीपूर्ण होगा. बीजेपी ने मध्य प्रदेश में सरकार की कमान मोहन यादव को सौंपकर यूपी और बिहार के यादव मतदाताओं को भी एक संदेश दे दिया है तो वहीं भजनलाल शर्मा को सीएम बनाकर ब्राह्मणों और विष्णुदेव साय के जरिए आदिवासियों को. ऐसे में कांग्रेस के लिए चुनौती और भी कड़ी मानी जा रही है.
जातीय राजनीति के जाल में उलझी यूपी और बिहार की सियासत में यादव, कुर्मी, राजभर, जाट के साथ ही जाटव और नॉन जाटव दलित अहम भूमिका निभाते हैं. मणिपुर में कुकी और मैतेई के बीच भड़की हिंसा के बाद विपक्ष को वोटों के नए समीकरण की उम्मीद नजर आ रही है तो वहीं छत्तीसगढ़ में कांग्रेस के सामने विधानसभा चुनाव में छिटके आदिवासी वोट साधने की चुनौती होगी. मध्य प्रदेश में ओबीसी और एससी-एसटी वोट का जो अंब्रेला बीजेपी ने खड़ा किया है, उसे भेदने की चुनौती भी कांग्रेस के सामने होगी.
राहुल गांधी ने पिछले साल कन्याकुमारी से भारत जोड़ो यात्रा शुरू की थी. 7 सितंबर 2022 को दक्षिण भारत के कन्याकुमारी से शुरू हुई यह यात्रा 30 जनवरी को श्रीनगर पहुंचकर संपन्न हुई थी. 130 दिन लंबी इस यात्रा के दौरान राहुल गांधी ने 12 राज्य और दो केंद्र शासित प्रदेश कवर किए थे. इस यात्रा से राहुल गांधी की लोकप्रियता का ग्राफ चढ़ा ही, कर्नाटक और तेलंगाना जैसे राज्यों में कांग्रेस सत्ता पाने में भी सफल रही तो इसके लिए भारत जोड़ो यात्रा को ही श्रेय दिया गया.
भारत जोड़ो यात्रा के बाद सर्वे रिपोर्ट्स के मुताबिक राहुल गांधी की लोकप्रियता में भी उछाल आया था. दक्षिण से उत्तर की यात्रा के बाद अब राहुल पूर्वोत्तर से पश्चिम की यात्रा पर निकलने को तैयार हैं. ऐसे में देखना होगा कि चुनावी साल में शुरू होने जा रही राहुल गांधी की यह यात्रा पीएम मोदी की लोकप्रियता और हिंदुत्व की काट कर बीजेपी के स्टॉन्ग होल्ड वाले बेल्ट में कांग्रेस को खोई सियासी जमीन वापस दिलाने में कितना सफल हो पाती है?