बिहार में नीतीश कुमार न सिर्फ विकास के नये माडल तैयार करने के लिए मशहूर हैं, बल्कि राजनीतिक चालबाजी में भी वह अपना परचम लहराते रहे हैं। यह अलग बात है कि नीतीश की प्रयोगधर्मिता को उनके ही खड़ा किए इंडी अलायंस में महत्व नहीं मिल पा रहा है। इससे नीतीश कुमार का खीझना स्वाभाविक है। आरजेडी और जेडीयू के कुछ नेता भले यह सफाई देते फिर रहे हैं कि इंडी अलायंस में सब कुछ ठीक है। नीतीश कुमार की नाराजगी की कोई बात नहीं है, लेकिन इन्हीं पार्टियों के कुछ नेता सच उगलने में देर नहीं करते। जेडीयू के एक बहुचर्चित विधायक हैं गोपाल मंडल। बंगाल की सीएम ममता बनर्जी ने कांग्रेस के राष्ट्रीय अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे का नाम जब पीएम पद के लिए प्रस्तावित किया और दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल ने उसका समर्थन किया तो गोपाल मंडल ने अपनी प्रतिक्रिया यह कह कर जाहिर की है- खरगे-वरगे को कौन जानता है।
शासन में प्रयोगधर्मी रहे हैं बिहार के सीएम नीतीश कुमार
नीतीश कुमार वर्ष 2005 से बिहार के सीएम हैं। उन्होंने शासन में रहते बिहार के विकास के लिए कई नई योजनाओं की शुरुआत की। उन्होंने सात निश्चय लागू किए, शराबबंदी की, महिलाओं को निकाय-पंचायत चुनावों और नौकरियों में आरक्षण जैसे कई काम किए। उनके इन कामों को दूसरे राज्यों या केंद्र की सरकारों ने बाद में आजमाया। राज्य में सिर्फ स्टेट हाईवे का ही जीर्णाेद्धार नहीं हुआ, बल्कि गांव-टोलों के पहुंच मार्ग भी नीतीश ने बनवा दिए। अंधेरे के साम्राज्य वाले बिहार में बिजली की 20-22 घंटे निर्बाध आपूर्ति नीतीश ने सुनिश्चित की। बालिकाओं को बाल विवाह से बचाने के लिए ऊंची शिक्षा तक पहुंचने की राह बनाई। इसके लिए लड़कियों को वजीफे का प्रावधान किया। उनके लिए नौकरियों और निकायों में खासा आरक्षण दिया। सात निश्चय के तहत हर घर नल का जल योजना शुरू की तो राज्य के किसी कोने से पांच-छह घंटे में राजधानी पटना पहुंचने के लिए अच्छी सड़कें भी बिहार में नीतीश ने बनवाई हैं।
सियासत में भी नये प्रयोगों के लिए जाने जाते हैं नीतीश
राजनीति शतरंज के खेल के समान है। कौन-सी चाल कब बाजी पलट दे, कहना मुश्किल होता है। नीतीश शतरंजी सियासत के माहिर खिलाड़ी रहे हैं। उन्हें कब किस दल के साथ हाथ मिलाना है और कब किससे कुट्टी करनी है, उनसे बेहतर कोई नहीं जानता। भले ही उनके इस आचरण की उन्हें पलटू राम कह कर आलोचना होती रही है, पर सच तो यह है कि ऐसे मौके गंवाना कौन चाहेगा। यह अलग बात है कि हर नेता की दृष्टि आगे उतनी दूर तक नहीं जा पाती, जहां तक नीतीश की नजर चली जाती है। कभी बीजेपी के साथ तो कभी आरजेडी के पास नीतीश अगर आते-जाते रहे हैं तो इसके पीछे उनकी यही दृष्टि रही है। कभी लोक जनशक्ति पार्टी के संस्थापक में यह गुण पाया जाता था। इसीलिए लोग उन्हें सियासी मौसम का वैज्ञानिक भी कहते थे।