जेडीयू नेता और बिहार के सीएम नीतीश कुमार देश के दौरे की तैयारी में हैं। वे अक्सर कहा करते हैं कि उनकी चिंता बिहार को लेकर है। वे दावा भी करते हैं कि बिहार के विकास के लिए बहुत काम किया है। आरजेडी के साथ सरकार चलाने के बावजूद ऐसा कहते वक्त वे अपने शासन काल की तुलना लालू-राबड़ी राज की बदहाली से करने में संकोच नहीं करते। उनका तकिया कलाम है- पहले कुछ था जी… पहले कुछ होता था। नीतीश की नजर में उनके शासन के दौरान बिहार एक मॉडल बन गया है। संभव है कि वे अपने इसी मॉडल को लेकर देश भ्रमण के दौरान लोगों को बताएंगे।
नीतीश की प्रस्तावित रैलियों का मकसद क्या है
जेडीयू की ओर से जब नीतीश कुमार के देश के दूसरे राज्यों में रैली-सभाएं करने की बात कही जाती है तो इसके पीछे का मकसद कोई नहीं बताता। क्या नीतीश की रैली-सभाएं सिर्फ जेडीयू को धार देने के लिए हैं या जिस इंडी अलायंस की उन्होंने नींव रखी है, उसके लिए हैं। अगर इंडी अलायंस के लिए उनकी रैली है तो इसके बाकी नेता क्यों शामिल नहीं होंगे? वाराणसी और झारखंड में नीतीश की रैली की खूब चर्चा हो रही है। हालांकि वारणसी रैली तो तारीख घोषित होने के बावजूद टल गई है। रामगढ़ की रैली भी होगी या नहीं, अभी कुछ कह पाना मुश्किल है। रामगढ़ में नीतीश की रैली के लिए जडीयू ने 21 जनवरी की तारीख घोषित की है।
इंडी अलायंस बन तो गया, पर एकजुटता नहीं दिखी
विपक्षी दलों ने गठबंधन तो बना लिया, लेकिन अभी तक की स्थिति यह है कि सब अकेले-अकेले चलते दिख रहे हैं। इंडी अलायंस की चार बैठकों के बाद भी कुछ भी साफ-साफ नजर नहीं आ रहा। नीतीश कुमार अपनी तैयारी में लगे हैं तो बंगाल की सीएम ममता बनर्जी बिंदास होकर अकेले अपने सूबे में भाजपा से लड़ने की तैयारी में जुटी हैं। विपक्षी गठबंधन में शामिल लेफ्ट और कांग्रेस के लिए ममता की नजर में बंगाल में कोई मोल नहीं है। समाजवादी पार्टी और कांग्रेस उत्तर प्रदेश में रोज लड़ते हैं। आम आदमी पार्टी और कांग्रेस की लड़ाई भी किसी से छिपी नहीं है। दोनों पार्टियों की दिल्ली और पंजाब इकाइयों के नेता गठबंधन का नाम सुनते ही पूंछ पर खड़े हो जाते हैं। विपक्षी गठबंधन की एकमात्र पार्टी आरजेडी है, जिसे देश की राजनीति से कोई मतलब नहीं है। उसे सिर्फ बिहार की राजनीति तक ही सीमित रहना है। अभी तक की उसकी गतिविधियों से तो यही लगता है। कांग्रेस ने भी पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव में अकेले ही मोर्चा संभाला। यानी विपक्षी एकता के बावजूद इसमें शामिल बड़े दलों ने कोई ऐसा सियासी संकेत नहीं दिया है, जिससे लगे कि सच में विपक्ष एकजुट हो गया है। ऐसे में बीजेपी को विपक्षी गठबंधन टक्कर दे पाएगा, इसमें संदेह है।
सारा दारोमदार 19 दिसंबर की बैठक पर टिका है
विपक्षी गठबंधन आई.एन.डी.आई.ए. की 19 दिसंबर को बैठक होने जा रही है। कांग्रेस की ओर से गठबंधन में शामिल सभी दलों को न्यौता भेजा जा चुका है। इससे पहले विधानसभा चुनावों के परिणाम आने के तुरंत बाद 6 दिसंबर को कांग्रेस ने गठबंधन की बैठक बुलाई थी। हड़बड़ी में तय की गई तारीख पर बैठक में शामिल होने से लगभग सभी प्रमुख दलों ने मना कर दिया। फिर नई तारीख तय हुई। इस बीच नीतीश कुमार कई बार यह दुखड़ा सुना चुके हैं कि गठबंधन का काम कांग्रेस की वजह से आगे नहीं बढ़ रहा है। जाहिर है कि इसे लेकर उनके मन में भारी कोफ्त है। इसलिए 19 दिसंबर को हो रही इंडी अलायंस की बैठक को काफी महत्वपूर्ण माना जा रहा है।
बैठक में उठ सकती है नेतृत्व परिवर्तन की मांग
विपक्षी एकता के सूत्रधार रहे नीतीश कुमार की हड़बड़ी को देखते हुए इस बात की प्रबल संभावना है कि इंडी अलायंस की बैठक में सीट बंटवारे और गठबंधन के नेतृत्व का मुद्दा जोरदार ढंग से उठेगा। विधानसभा चुनावों में कांग्रेस की करारी हार के बाद गैर कांग्रेसी विपक्षी नेताओं को अब गठबंधन के नेतृत्व परिवर्तन की जरूरत महसूस हो रही है। सभी यह मान रहे कि राहुल गांधी या कांग्रेस के बूते कोई करिश्मा संभव नहीं। इसलिए विपक्षी गठबंधन की कमान अब किसी और को सौंपनी चाहिए। नीतीश कुमार की रैलियों की योजना को इसी से जोड़ कर देखा जा रहा है। नीतीश कुमार की पार्टी और आरजेडी के नेता लगातार नीतीश को पीएम फेस बनाने की मांग करते रहे हैं। इसे लेकर आरजेडी की अधिक रुचि इसलिए है कि नीतीश के जाते ही बिहार की कमान उसके नेता तेजस्वी यादव के हाथ आ जाएगी। ममता पहले से ही कांग्रेस के नेतृत्व को नापसंद करती हैं। अरविंद केजरीवाल और अखिलेश यादव से ममता की अच्छी पटती रही है। ममता की टीएमसी भी ममता को विपक्षी गठबंधन का नेतृत्व सौंपने की बात कहती रही है। इसलिए गठबंधन के नेतृत्व परिवर्तन की बात खुल कर बैठक में उठ सकती है।