मध्यप्रदेश में शिवराज सिंह चौहान के हाथ से खिसक कर सत्ता मोहन यादव के हाथ में क्या गई, राजनीतिक गलियारों में यह चर्चा चल पड़ी कि एमपी के बहाने भाजपा के रणनीतिकारों ने बिहार को साधने की कोशिश की है। वैसे एमपी से भाजपा के घोषित मुख्यमंत्री मोहन यादव भले एक नया नाम हैं पर वे नए भाजपाई तो नहीं हैं। तीन बार विधायक और दो बार मंत्री बने मोहन यादव की अपनी एक प्रभाव सीमा है। मगर बिहार में उनका सिक्का चल जाए यह संभव होते तो नहीं दिखता। कहने को भले भाजपा जाति की राजनीति नहीं करती, पर बिहार में यादव मतों को साधने की कोशिश भाजपा के रणनीतिकार समय-समय पर करते रहे हैं। इस राह पर भाजपा के भीष्म पितामह कैलाशपति मिश्र से ले कर बिहार भाजपा के प्रभारी रहे भूपेंद्र यादव ने भी अपने सारे दांव आजमा लिए, लेकिन बिहार में लालू यादव के बरक्स किसी यादव नेता को खड़ा नही कर पाए। अब बीजेपी ने UMY समीकरण का सहारा लिया है। UMY मतलब उज्जैन के मोहन यादव, यानि मध्य प्रदेश के नए मुख्यमंत्री।
यादव की राजनीति और कैलाशपति मिश्र
भाजपा के भीष्म पितामह कहे जाने वाले भाजपा के रणनीतिकार कैलाशपति मिश्र ने यादव जाति के कुछ नेताओं को साधने की कोशिश की। कोशिश यही थी कि यादव वोटों को लालू यादव की पकड़ से छुड़ा कर भाजपा के उम्मीदवारों को ट्रांसफर कराया जा सके। इस कोशिश में पहला नाम जगदंबी यादव का नाम आता है। तब भाजपा नेता कैलाशपति मिश्र ने कई नामचीन नेताओं को दरकिनार कर भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष का पद यादव जाति के नेता जगदंबी यादव को सौंपा। जगदंबी यादव 1981 से ले कर 1984 तक जनसंघ और भाजपा के अध्यक्ष रहे। लेकिन वो भाजपा की पैठ यादव जाति में बनाने में नाकाम रहे। फिर कुछ साल बाद यह प्रयोग नंदकिशोर यादव को भाजपा का प्रदेश अध्यक्ष बना कर किया गया। नंदकिशोर यादव 1998 से 2003 तक भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष रहे। भाजपा ने इनके कार्यकाल में अच्छा प्रदर्शन जरूर किया पर यादव वोटों का एक बड़ा हिस्सा भाजपा से दूर ही रहा।
अमित शाह ने भूपेंद्र यादव को भी आजमाया
यादव मतों की भाजपा के पक्ष में गोलबंदी की राजनीति को थोड़ा विराम मिला। भाजपा ने अपने कोर वोटरों यानी सवर्ण और बनिया जाति पर ध्यान केंद्रित रखा। लेकिन बिहार में जब एनडीए सरकार की गाड़ी चल पड़ी तो नीतीश कुमार के संग चल रहे भाजपा के रणनीतिकारों ने एक बार फिर यादव वोटरों को साधने की कोशिश की। इस बार भाजपा ने गैर बिहारी यादव नेता भूपेंद्र यादव को लालू यादव के बरक्स खड़ा करने के लिए उन्हें बिहार प्रभारी बनाया। साल 2020 के विधानसभा चुनाव के समय भूपेंद्र यादव को बिहार प्रभारी बनाया गया। लेकिन ये तीर भी खाली गया। इस चुनाव में एनडीए को बहुमत जरूर मिला पर यादव वोटों की बदौलत राजद सुप्रीमो लालू प्रसाद के बेटे तेजस्वी यादव इस चुनाव में मजबूत यादव नेता बन कर उभरे। इतना ही नहीं, राजद बिहार विधान सभा में सबसे बड़ी पार्टी बन गई।
नित्यानंद राय पर भी लगाया दांव
भाजपा के रणनीतिकारों ने एक बार फिर अपना दांव लगाया, इस बार बीजेपी नेता और सांसद नित्यानंद राय को आगे किया गया। नवंबर 2016 से सितंबर 2019 तक उन्हें बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया। साल 2019 का लोकसभा चुनाव नित्यानंद राय ने उजियारपुर से लड़ा। ये जीते भी और गृह राज्य मंत्री भी बने। पर नित्यानंद राय भी राजद के एमवाई समीकरण में सेंधमारी नहीं कर सके।
RJD के MY समीकरण तोड़ने की बीजेपी की हर कोशिश नाकाम
ऐसा नहीं कि भाजपा के भीतर यादव नेताओं की संख्या नहीं बढ़ी। भाजपा के टिकट से कई यादव नेता सांसद, विधायक और यहां तक की मंत्री भी बने। पर भाजपा के साथ त्रासदी यही रही कि भाजपा के इन यादव उम्मीदवारों को अपनी जाति के ही वोट कम मिले। भाजपा को जगदंबी यादव, हुकुमदेव नारायण यादव, नंदकिशोर यादव, रामकृपाल यादव, अशोक यादव, ओमप्रकाश यादव, रामसूरत राय, नवल किशोर यादव सरीखे कद्दावर नेता तो मिले। लेकिन ये नेता यादव वोटरों को अपने पाले में नाकाम ही साबित हुए। बिहार में अब भी यादव का मतलब लालू जादो (लालू यादव) का ही समीकरण बरकरार है।