हिन्दू धर्म के अनुसार किसी भी काम की शुरु आत करने से पहले भगवान श्री गणेश का नाम लिया जाता है‚ और तभी वह काम सफल हो पता है। ऐसे में गणेश चतुर्थी के अवसर पर मंगलवार‚ १९ सितम्बर‚ २०२३ को कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल द्वारा १२८वां संविधान संशोधन ‘नारी शक्ति वंदन विधेयक‚ २०२३’ का पेश करना मात्र संयोग नहीं माना जाएगा। नए संसद भवन में कामकाज के पहले दिन बहुप्रतीक्षित महिला आरक्षण बिल मोदी सरकार द्वारा लाया गया। न केवल लाया गया बल्कि दोनों सदनों से यह पास भी हो गया।
यह बिल लोक सभा और राज्य विधानसभाओं में महिलाओं के लिए ३३ प्रतिशत सीटों पर आरक्षण प्रदान करेगा‚ जिसके अंदर अनुसूचित जाति/जनजाति और एंग्लो इंडियन के लिए उप–आरक्षण की भी प्रस्ताव है। संसद में अपने संबोधन में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा‚ ‘शायद भगवान ने इसके लिए मुझे चुना है।’ अब कुछ सवाल उठाए जा सकते हैं कि क्या यह पहल मोदी सरकार का २०२४ लोक सभा चुनाव से पहले मास्टर स्ट्रोक मानी जाएगीॽ क्या यह कदम भाजपा को अगले चुनाव में फायदा पहुंचाएगाॽ क्या यह मोदी सरकार का महिला मतदाताओं को लुभाने के लिए राजनीतिक जुमला भर हैॽ क्या इस बिल को लाने का श्रेय सिर्फ मोदी सरकार को जाता हैॽ क्या इस बिल का असर चुनाव के नतीजों पर देखने को मिलेगाॽ क्या यह बिल संसद और विधानसभाओं की तस्वीर बदलने की ताकत रखता हैॽ ऐसे कई सवाल हैं‚ जिनका उत्तर सिर्फ समय दे सकता है पर कुछ मुद्दों पर प्रकाश डालना जरूरी है‚ जो हम सबको इन सवालों के जवाबों तक ले जाने में मददगार साबित होंगे।
इस समय अगर दोनों सदनों‚ राज्य सभा और लोक सभा‚ में देखा जाए तो संसद में महिलाओं का प्रतिनिधित्व सिर्फ १४ प्रतिशत है। यह बिल २७ साल पुराना है‚ और संसद में पहली बार देवेगौड़ा सरकार के समय पेश किया गया था। आखिरी बार २०१० में राज्य सभा में लाया गया पर लोक सभा में पारित न होने पर रद्द कर दिया गया था। सपा‚ राजद और बसपा जैसी पार्टियों के विरोध की वजह से यह बिल कभी भी पारित नहीं हो पाया और रद्द कर दिया गया। इस प्रकार से राजनीतिक दलों की ऐसी विविध राय ने आरक्षण विधेयक की प्रक्रिया में हमेशा बाधा डाली है। हालांकि वर्तमान समय में इस बिल को लाने का श्रेय सरकार और विपक्ष‚ दोनों लेना चाहते हैं। कांग्रेस सांसद अधीर रंजन ने जब राजीव गांधी को बिल को संसद में लाने का श्रेय देना चाहा तो गृह मंत्री अमित शाह और कानून मंत्री अर्जुन मेघवाल ने इसे खारिज कर दिया। कांग्रेस के जयराम रमेश और सीपीएम की नेता वृंदा करात मोदी सरकार के इस कदम को चुनावी जुमला बता रहे हैं। उनका कहना है कि जनगणना और परिसीमन के प्रावधानों को इस बिल से जोड़ने का मतलब है कि यह बिल २०२४ लोक सभा चुनाव से पहले लागू नहीं हो पाएगा। आम आदमी पार्टी इसे ‘बेवकूफ बनाओ’ बिल बता रही है। दूसरा पक्ष यह है कि मोदी सरकार की यह ऐतिहासिक उपलब्धि मानी जाएगी और नए सदन को इतिहास में दर्ज कराने में सफल साबित होगी।
सत्ताईस साल पुराना इस बिल‚ जो कई कारणों से पारित नहीं किया जा सका‚ को अगर मोदी सरकार लाने में सफल हुई है‚ तो सरकार की इस उपलब्धि को नकारा नहीं जा सकता। यह बिल महिलाओं को उनका अधिकार दिलाने में कारगर साबित हो सकता है। यह कदम मोदी सरकार की दूरदर्शिता का सबूत देता है। अगर इस बिल की महत्ता को देखा जाए तो यह देश की आधी आबादी के भविष्य को प्रभावित करता है। २०११ की जनगणना के अनुसार‚ भारत में महिलाओं की संख्या करीब ४८.५ प्रतिशत है‚ जो पूरी जनसंख्या की करीब आधी है। देश में बेरोजगारी और बढ़ती महगाई की वजह से सत्ता विरोधी हवाएं चलने लगी हैं। ऐसे में इस बिल को लाना आधी आबादी को सुकून देने का काम करेगा और विरोधी भावनाओं को खत्म करने में मदद करेगा। मोदी सरकार का यह कदम महिलाओं को सशक्त करेगा और उनकी राजनीतिक भागीदारी को बढ़ाएगा। यकीनन यह बिल महिला वोटरों को लुभाने के लिए महत्वपूर्ण कदम है। अब सवाल उठता है कि महिला वोटरों को लुभाना क्यों जरूरी हैॽ यहां पर कुछ आंकड़़ों को देखना जरूरी है। मध्य प्रदेश का उदाहरण लिया जाए तो मध्य प्रदेश में कुल ५.३९ करोड़ लोग मतदान करने की शक्ति का प्रयोग करते हैं‚ जिनमें ४८.२० फीसद महिला मतदाता हैं। मध्य प्रदेश में १५ विधानसभा सीटों पर भी महिलाओं की महत्वपूर्ण भूमिका और महत्व सामने आया है।
इन आंकड़ों से पता चलता है कि जिसको भी महिला समर्थन मिल जाए‚ उसकी जीत चुनाव में निश्चित हो जाती है। इसी तरह राजस्थान के बात करें तो २०१३ और २०१८ के विधानसभा चुनाव में महिलाओं की भागीदारी पुरुषों के मुकाबले ज्यादा देखने को मिलती है। राजस्थान के २०१८ चुनाव में कांग्रेस और बीजेपी की जीत में सिर्फ पांच फीसदी अंतर रहा और इसमें महिला मतदाताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रही। भारत में ऐसे १३ राज्य और केंद्रशासित प्रदेश हैं‚ जिनमें महिला मतदाताओं की संख्या पुरु ष मतदाताओं से ज्यादा देखी गई है जैसे अरु णाचल प्रदेश‚ आंध्र प्रदेश‚ बिहार‚ दमन एंड दीव‚ मिजोरम‚ मेघालय‚ गोवा‚ पुडुचेरी‚ केरल‚ तमिलनाडु इत्यादि। ये सारे राज्य लोक सभा की करीब २६ फीसद सीटों को दर्शाते हैं। बीजेपी ने काफी चतुराई से महिला वोटरों की ताकत को २०१४ लोक सभा चुनाव के बाद ही समझ लिया था।
वोटिंग पैटर्न को देखा जाए तो पता चलता है कि भारत में महिला मतदाताओं की भागीदारी हर लोक सभा चुनाव के साथ बढ़ी है। २००४ में २२ फीसद‚ २०१४ में २९ फीसद और २०१९ में ३६ फीसद महिलाओं ने मताधिकार का इस्तेमाल किया। इतिहास में पहली बार २०१९ के लोक सभा चुनाव में महिला मतदाताओं की भागीदारी पुरु ष मतदाताओं की तुलना में ०.१७ फीसद ज्यादा थी। बीजेपी ने महिला मतदाताओं की शक्ति को पहचान लिया और ऐसी विभिन्न योजनाओं को लेकर आई जिसका असर सीधा महिला आबादी पर पड़ता है। कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि बीजेपी इस बिल को २०२४ के इलेक्शन में नैरेटिव की तरह उपयोग कर सकती है‚ और २०२९ में रियाइसी फल की तरह। ऐसा भी माना जा रहा है कि यह बिल बीजेपी सरकार के लिए राजनीतिक खाद की तरह काम करेगा। वक्त के साथ देखना दिलचस्प होगा कि महिला आरक्षण बिल किस तरह देश की आधी आबादी का भविष्य तय करता है।