रिजर्व बैंक ऑफ इंडि़या ने पिछल दिनों कहा था कि घरेलू बचत पिछले पांच दशकों में सबसे कम हो गई है। दूसरी तरफ कर्ज या सालाना वित्तीय देनदारी बढकर ५.८ फीसद हो गई‚ जो २०२१–२२ में ३.८ फीसद थी। रिसर्च में सामने आया कि लोगों की आमदनी कम हो रही है‚ जबकि कर्ज बढकर दोगुने से अधिक यानी १५.६ लाख करोड़़ पहुंच चुका है। कहा गया कि इस घरेलू बचत से निकासी का बड़ा हिस्सा भौतिक संपत्ति में चला गया है। केवल ७.१ लाख करोड़ रुपये आवास ऋण व अन्य खुदरा कर्ज के तौर पर बैंकों से लिया गया। कोविड़ महामारी के दौरान घरेलू ऋण व जीड़ीपी का अनुपात बढा था‚ जिसमें गिरावट दर्ज की गई है। वित्त मंत्रालय ने रजनीतिक हलकों व सोशल मीडि़या पर लोगों की तीखी प्रतिक्रिया के बाद अपना पक्ष रखा। उन्होंने घरेलू बचत में गिरावट कारण लोगों का कर्ज लेकर ज्यादा घर व गाडि़यां लेना बताया। यह सच है कि नया मध्यवर्ग तेजी से बढ रहा है। जैसा कि सरकार दावा करती है गरीबी रेखा से लोग ऊपर उठते जा रहे हैं। ये सारे लोग अपना जीवन स्तर सुधारना चाहते हैं। देश में हर तीन में से एक भारतीय अभी मध्यवर्ग में आता है। कहा जा रहा है २०४७ तक इनकी संख्या दोगुनी हो सकती है। साथ ही उपभोक्तावाद अपने चरम पर है। लोगों में भौतिक सुविधाओं के प्रति आकर्षण बढता जा रहा है। इसलिए खुद को मध्यवर्ग में शामिल करने के लोभ में कर्ज लेकर सुविधाएं जुटाने में सहूलियत मान रहे हैं। यह भी सच है कि बैंकों व अन्य आर्थिक संस्थाओं पर कर्ज बांटने का दबाव भी बढता जा रहा है। वे सुविधाजनक तरीके से कर्ज मुहैया कराने का प्रयास करते हैं। यह भी मानना होगा कि कोरोना महामारी ने लोगों के भीतर एक तरह की दहशत पैदा की है। उन्हें जिंदगी जीने में अब देरी करना फिजूल लगने लगा है। मेहनत–मजदूरी करके अपने बच्चों को उच्च शिक्षा दिलाने वाले कमजोर आय वर्ग वालों ने अपना भविष्य वयस्क बच्चों के कांधों पर ड़ाल दिया है। जिनके बच्चे ठीक–ठाक नौकरी पा चुके हैं‚ वे भी अपना रहन–सहन बदल रहे हैं। बचत करने में माहिर रहा आम मध्य वर्ग संकट के लिए केवल रकम जोड़ कर नहीं रख रहा। बल्कि उन्होंने तरह–तरह के बीमा और अन्य निवेशों में जोखिम लेना भी चालू किया है।
क्या इस हफ्ते भी जारी रहेगा गिरावट का दौर या आएगी रिकवरी !
भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) के ब्याज दर पर निर्णय, पश्चिम एशिया के संघर्ष और विदेशी पोर्टफोलियो निवेशकों (FPI) की गतिविधियों से...