
Matsya 6000 को नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) के वैज्ञानिक डिवेलप कर रहे हैं। टाइटन हादसे के बाद उन्होंने मत्स्य 6000 के डिजाइन, मैटीरियल्स, टेस्टिंग, सर्टिफिकेशन और स्टैंडर्ड ऑपरेटिंग प्रोसीजर्स की समीक्षा की है। पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के सचिव एम रविचंद्रन ने द टाइम्स ऑफ इंडिया को बताया, ‘समुद्रयान मिशन गहरे महासागर मिशन के हिस्से के रूप में चल रहा है। हम 2024 की पहली तिमाही में 500 मीटर की गहराई पर समुद्री परीक्षण करेंगे।’
समुद्रयान मिशन: क्या-क्या खोजेगी मत्स्य 6000

निकल, कोबाल्ट, मैंगनीज, हाइड्रोथर्मल सल्फाइड और गैस हाइड्रेट्स की तलाश के अलावा, मत्स्य 6000 हाइड्रोथर्मल वेंट और समुद्र में कम तापमान वाले मीथेन रिसने में कीमोसिंथेटिक जैव विविधता की जांच करेगा।
समुद्रयान मिशन: क्यों खास है मत्स्य 6000

- मत्स्य 6000 का वजन 25 टन है। इसकी लंबाई 9 मीटर और चौड़ाई 4 मीटर है।
- NIOT के निदेशक जी ए रामदास ने कहा कि मत्स्य 6000 के लिए 2.1 मीटर व्यास का गोला डिजाइन और विकसित किया है जो तीन लोगों को लेकर जाएगा।
- गोला 6,000 मीटर की गहराई पर 600 बार दबाव (समुद्र तल पर दबाव से 600 गुना अधिक) का सामना करने के लिए 80 मिमी मोटी टाइटेनियम मिश्र धातु से बना होगा।
- वीकल को लगातार 12 से 16 घंटे तक ऑपरेट करने के लिए डिजाइन किया गया है, लेकिन ऑक्सीजन की सप्लाई 96 घंटे तक उपलब्ध रहेगी।
कब तक शुरू होगा समुद्रयान मिशन

समुद्रयान मिशन के 2026 तक शुरू होने की उम्मीद है। अब तक केवल अमेरिका, रूस, जापान, फ्रांस और चीन ने ही इंसानों को ले जाने वाली सबमर्सिबल विकसित की हैं।
भारत छठवां देश है जिसने मानव सबमर्सिबल बनाई है। इसके पहले अमेरिका, रूस, जापान, फ्रांस और चीन ने मानवयुक्त सबमर्सिबल बना चुके हैं। वहीं, भारत सरकार इस मिशन के जरिए समुद्र तल से मोबाइल-लैपटॉप जैसी इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस बनाने के लिए कोबाल्ट, निकल और सल्फाइड जैसी धातुएं और खनिज निकालने का प्रयास कर रही है।
टाइटेनियम एलॉय से बनी है ‘मत्स्य 6000’
NIOT के डायरेक्टर जी.ए. रामदास ने ‘मत्स्य 6000’ सबमर्सिबल की खासियत बताते हुए कहा- ये 12-16 घंटे तक बिना रुके चल सकती है। इसमें 96 घंटे तक ऑक्सीजन सप्लाई रहेगी। इसका व्यास 2.1 मीटर है। इसमें तीन लोग बैठ सकते हैं। ये 80mm के टाइटेनियम एलॉय से बनी है। ये 6000 मीटर की गहराई पर समुद्र तल के दबाव से 600 गुना ज्यादा यानी 600 बार (दबाव मापने की इकाई) प्रेशर झेल सकती है।
NIOT ‘मत्स्य 6000’ की डिजाइन को रिव्यू कर रहा
इसे नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ ओशन टेक्नोलॉजी (NIOT) के साइंटिस्ट्स ने 2 साल में तैयार किया है। वो अभी इसे रिव्यू कर रहे हैं। जून 2023 में अटलांटिक ओशन में टाइटन नाम की सबमर्सिबल डूब गई थी। पांच अरबपतियों की मौत हो गई थी। इस घटना को ध्यान में रखते हुए NIOT ने ‘मत्स्य 6000’ की डिजाइन को रिव्यू करने का फैसला किया।
सबमर्सिबल क्या है, ये पनडुब्बी से कैसे अलग है
पनडुब्बी और सबमर्सिबल दोनों पानी के अंदर चलते हैं, लेकिन उनके डिजाइन, काम और उद्देश्य अलग-अलग हैं। पनडुब्बी एक प्रकार का जलयान है जो सतह और पानी के नीचे दोनों पर काम कर सकता है। यह बिजली या डीजल इंजन से चलता है। पनडुब्बियां आमतौर पर आकार में बड़ी होती हैं और कई लोगों को ले जा सकती हैं। इनका उपयोग मुख्य रूप से टोही, निगरानी और सैन्य उद्देश्यों के लिए किया जाता है।
वहीं, सबमर्सिबल एक प्रकार का वॉटरक्राफ्ट है जिसे सिर्फ पानी के नीचे संचालित करने के लिए डिजाइन किया गया है। यह आमतौर पर आकार में छोटा होता है और सीमित संख्या में लोगों को ले जा सकता है। सबमर्सिबल का उपयोग आमतौर पर रिसर्च के लिए किया जाता है। ये मिलिट्री ऑपरेशन्स के लिए नहीं बने होते। सबमर्सिबल को पानी के अंदर जाने के लिए जहाज या प्लेटफॉर्म की जरूरत होती है। ये बात सबमर्सिबल को पनडुब्बियों से अलग करती है क्योंकि पनडुब्बियां स्वतंत्र रूप से ऑपरेट कर सकती हैं।
समुद्र तल से धातुएं निकालने की कवायद
दरअसल, ग्लोबल वार्मिंग से लड़ने के लिए ई-वाहनों और उनके लिए बैटरियों की मांग में तेजी हो रही है। वहीं, इनको बनाने में इस्तेमाल होने वाले संसाधन दुनियाभर में कम होते जा रहे हैं।
समुद्र की गहराई में पाया जाने वाला लीथियम, तांबा और निकल बैटरी में इस्तेमाल होते हैं। वहीं, इलेक्ट्रिक कारों के लिए जरूरी कोबाल्ट और स्टील इंडस्ट्री के लिए जरूरी मैगनीज भी समुद्र की गहराई में उपलब्ध है।
अनुमानों के मुताबिक, तीन साल में दुनिया को दोगुना लीथियम और 70% ज्यादा कोबाल्ट की जरूरत होगी। वहीं, अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी का अनुमान है कि 2030 तक करीब पांच गुना ज्यादा लीथियम और चार गुना ज्यादा कोबाल्ट की जरूरत होगी। इन रॉ-मटेरियल का उत्पादन मांग से काफी कम हो रहा है। इस अंतर को बैलेंस करने के लिए समुद्र की गहराई में खुदाई को विकल्प के तौर पर देखा जा रहा है।
सिर्फ रिसर्च के लिए 14 देशों को डीप सी एक्सप्लोर करने की इजाजत
UN से जुड़ी इंटरनेशनल सीबेड अथॉरिटी (ISA) ने सिर्फ रिसर्च के लिए 14 देशों को डीप सी को एक्सप्लोर करने की मंजूरी दी है। इन देशों में चीन, रूस, दक्षिण कोरिया, भारत, ब्रिटेन, फ्रांस, पोलैंड, ब्राजील, जापान, जमैका, नाउरू, टोंगा, किरिबाती और बेल्जियम शामिल हैं।
भारत सरकार ने 2021 में ‘डीप ओशन मिशन’ को मंजूरी दी थी। इसका उद्देश्य समुद्री संसाधनों का पता लगाना और गहरे समुद्र में काम करने की तकनीक विकसित करना है। साथ ब्लू इकोनॉमी को तेजी से बढ़ावा देना भी इसका एक उद्देश्य है। ब्लू इकोनॉमी एक ऐसी अर्थव्यवस्था है जो पूरी तरह से समुद्री संसाधनों पर आधारित है।
वहीं, स्वीडन, आयरलैंड, जर्मनी, फ्रांस, स्पेन, न्यूजीलैंड, कोस्टा रिका, चिली, पनामा, पलाऊ, फिजी और माइक्रोनेशिया जैसे देश डीप सी माइनिंग पर बैन लगाने की मांग कर रहे हैं।