शिक्षा विभाग और बिहार लोक सेवा आयोग (बीपीएससी) के बीच गतिरोध बढ़ता ही जा रहा है। शिक्षा विभाग ने बीपीएससी को उसकी ओर से दोबारा भेजे गये पत्र को वापस लौटा दिया है। विभाग ने नाराजगी जाहिर करते हुए कहा है कि जब राज्य के मुख्य सचिव की ओर से स्थिति पूरी तरह स्पष्ट कर दी गयी है‚ तो दोबारा आपका यह पत्र भेजना अनावश्यक और बचकानी हरकत है। इसलिए इस पत्र को मूल रूप में आपको लौटाया जाता है। विभाग ने बीपीएससी की स्वायत्ता पर भी कई सवाल उठाये हैं।
शिक्षा विभाग और आयोग के बीच गहराते विवाद की स्थिति का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि शिक्षा विभाग के लिए आयोग ने जहां घृष्टता जैसे शब्द का इस्तेमाल किया था, वहीं उसके जवाब में शिक्षा विभाग ने मूर्खतापूर्ण और विवेकहीन जैसे शब्द का प्रयोग किया है। शिक्षा विभाग यह पत्र आयोग के सचिव को भेजा है। अपने पत्र में शिक्षा विभाग ने आयोग से कहा है कि स्वायत्तता का अर्थ यह नहीं है कि आयोग कोई भी मूर्खतापूर्ण और विवेकहीन परंपरा स्थापित करे, जिससे शिक्षक नियुक्ति को लेकर बाद में सरकार के सामने वैधानिक अड़चन आए।
माध्यमिक शिक्षा निदेशक कन्हैया प्रसाद ने बीपीएससी के सचिव को पत्र लिखकर स्पष्ट रूप से कहा है कि आयोग अपनी स्वायत्ता के नाम पर विवेकहीन निर्णय नहीं ले सकता है। पत्र में कहा गया है कि बिहार राज्य विद्यालय (नियुक्ति‚ स्थानांतरण‚ अनुशासनिक कार्रवाई एवं सेवा–शर्त) नियमावली २०२३ में विहित प्रावधानों के विपरीत आयोग द्वारा की जा रही कार्रवाई से ध्यान भटकाने के लिए अनर्गल और अवांछित तथ्यों का उल्लेख किया गया है‚ जो उचित नहीं है। नियमावली में विहित प्रावधानों के आलोक में आयोग अपनी कार्रवाई करने के लिए स्वतंत्र है और इसकी सूचना पूर्व में ही दी जा चुकी है। आयोग अपनी आंतरिक प्रक्रिया का निर्वहन स्वयं करे। इसमें शिक्षा विभाग को कुछ नहीं कहना है। फिर भी प्रासंगिक पत्र के माध्यम से आयोग की ओर से आंतरिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप और दबाव बनाने का जो तथ्य दिया गया है‚ वह अनुचित और अस्वीकार्य है। यह स्थापित तथ्य है कि आयोग अपने दायित्यों का निर्वहन करने के लिए स्वतंत्र है। साथ ही यह भी आवश्यक है कि नियुक्ति में विहित प्रावधानों के विपरीत आयोग ऐसा कोई कार्य नहीं करे‚ जिससे भविष्य में अनावश्यक न्यायालय वादों का कारण बने। ऐसी स्थिति में जहां नियुक्ति प्रक्रिया के मामले अदालत में जाने की आशंका बनती है‚ वहीं विभाग को अनावश्यक रूप से मुकदमे में उलझना पडता है। पत्र में कहा गया है कि बिहार राज्य अध्यापक नियमावली २०२३ का अनुपालन जरूरी है‚ ताकि समय पर नियुक्ति प्रक्रिया पूरी होने में बाधा उत्पन्न न हो। इसलिए अनर्गल शब्दावलियों का प्रयोग करते हुए अनावश्यक पत्राचार करने के बजाय नियमावली में विहित प्रावधानों के आलोक में समय पर कार्रवाई सुनिश्चित की जानी चाहिये‚ ताकि नियुक्ति प्रक्रिया को अदालत में जाने से बचाया जा सके। पत्र में कहा गया है कि बीपीएससी ने यह भी लिखा है कि वह शिक्षा विभाग या राज्य सरकार के नियंत्रणाधीन नहीं है। विभाग यह स्पष्ट करना चाहता है कि स्वायत्ता का अर्थ एनार्की नहीं है। जहां तक शिक्षकों की नियुक्ति का प्रश्न है‚ तो आयोग को जब भी स्थापित परम्पराओं से हटकर कोई कार्य करना है‚ तो पहले औपचारिक बैठक आयोग के स्तर पर की जानी चाहिए थी। आयोग का अर्थ यह नहीं है कि वह कोई भी विवेकहीन परंपरा स्थापित करे‚ जिससे शिक्षक नियुक्ति को लेकर बाद में सरकार के सामने अडचन आये। आयोग यह भी स्पष्ट करे कि लिखित परीक्षा का परिणाम निकाले बगैर प्रमाण–पत्रों का सत्यापन पहले किन–किन मामलों में किया गया है। शिक्षकों की नियुक्ति के संबंध में प्रशासी विभाग‚ शिक्षा विभाग है और संबंधित नियमावली में कई जगहों पर लिखा है कि परीक्षा के विभिन्न पहलुओं पर प्रशासी विभाग से चर्चा करके ही कार्य किया जायेगा।