‘आदिपुरूष’ फिल्म को लेकर देश के कई शहरों में हिन्दू संगठन सिनेमाघरों के बाहर प्रदर्शन कर रहे हैं। ‘आदिपुरूष’ बनाने वालों का तर्क है कि वो नई पीढ़ी को रामायण से जोड़ना चाहते थे, इसलिए उन्होंने कुछ प्रयोग किए। लेकिन मुझे लगता है कि ये लचर बहाने है, बाद में सोच कर कही गई बातें है। जनता से मार खाने के बाद अब फिल्म के प्रोड्यूसर, डायरेक्टर, राइटर सबको समझ में आ गया है कि उनसे कई सारी गलतियां हुई हैं। वे कुछ डायलॉग तो बदल देंगे, लेकिन फिल्म में कई ऐसे सिक्वेंसेज हैं जो लोगों की भावनाओं को आहत करते हैं। फिल्म बनने के बाद इनको बदलना संभव नहीं होगा। अब फिल्म का स्क्रीन प्ले लिखने वाले और फिल्म के डायलॉग लिखने वाले एक दूसरे पर दोष डाल रहे हैं। इस तरह के भावना प्रधान विषय पर फिल्म बनाने से पहले डायरेक्टर और राइटर को सोचना चाहिए था। राम कथा हमारे देश के लोगों के लिए सिर्फ एक कहानी नहीं है। ये लोगों की आस्था और विश्वास से जुड़ा विषय है। गोस्वामी तुलसीदास रामायण को सरल भाषा में लिखकर अमर हो गए। सैकड़ों साल से गली गली में रामायण का मंच सजता है, कई जगह न एक्टर अच्छे होते हैं, न कॉस्ट्यूम सही होते हैं, न साउंड इफेक्टिव होती है, पर लोग घंटों घंटों तक बैठकर पूरी श्रद्धा के साथ रामलीला देखते हैं। जब रामानंद सागर ने ‘रामायण’ सीरियल बनाया तो लोग सुबह-सुबह नहा धोकर टीवी के सामने अगरबत्ती जलाकर भक्ति भावना के साथ प्रभु राम की कथा देखते थे। देश में कितने सारे राम कथा वाचक हैं – मुरारी बापू से लेकर कुमार विश्वास तक। ये भी जब राम कथा सुनाते हैं तो लोग भक्ति के सागर में डूबकर पूरी श्रद्धा के साथ प्रभु राम की कथा सुनते हैं। रामायण लोगों के लिए पावन सीता माता, आज्ञाकारी और पराक्रमी श्रीराम और अनन्य भक्त हनुमान की वो गाथा है, जिसे देश का बच्चा बच्चा जानता है। इसलिए आदिपुरूष को देखने वाले लोग इतने आहत हुए। डायरेक्टर और राइटर को प्रयोग करने का इतना शौक था, तो उन्हें किसी और विषय का चुनाव करना चाहिए था। इतना सब होने के बाद भी मैं चार बातें कहना चाहता हूं। पहली बात, विरोध प्रकट करने के लिए हिंसा करने वाले भगवान राम के अनुयायी नहीं हो सकते, दूसरी, फिल्म पर प्रतिबंध की मांग भी अनुचित है। तीसरी, रामायण तो सबको अपनी बात कहने का अधिकार देती है। चौथी, इसी तरह की फिल्म का इस्तेमाल अपनी राजनीति के लिए करने वाले राजनेता भी राम भक्त नहीं हो सकते। भारत देश में सबको रामायण से सीखना चाहिए कि ये बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है।
अपनी 40 साल की लाइफ में ऐसा नहीं हुआ : राधिका खेड़ा
कांग्रेस की राष्ट्रीय प्रवक्ता राधिका खेड़ा के साथ छत्तीसगढ़ में हुए कथित दुर्व्यवहार का मामला तूल पकड़ता जा रहा है।...