गोवा में आयोजित शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) के विदेश मंत्रियों की बैठक पाकिस्तान के ईर्द–गिर्द सिमटकर रह गई। कम–से–कम बैठक ेके बाद विदेश मंत्री एस. जयशंकर की प्रेस कांफ्रेंस से यही आभास मिला। भारतीय मीडि़या ने भी इस बैठक का पाकिस्तान और बिलावल भुट्टो जरदारी की मौजूदगी के दायरे में हुए आयोजन के मद्देनजर विश्लेषण किया। जयशंकर के सामने इस बैठक के व्यापक एजेंडे़ और उसके महत्व को प्रतिपादित करने का अवसर था। लेकिन उन्होंने भी पाकिस्तान और जरदारी पर अनावश्यक रूप से ध्यान केंद्रित किया। यह सामान्य अनुमान कि यह बैठक यूक्रेन संघर्ष के संबंध में एशिया विशेषकर यूरेशिया क्षेत्र में सहयोग बढ़ाने एवं स्थिरता कायम रखने पर केंद्रित थी। भारत की ओर से आतंकवाद और इस संबंध में पाकिस्तान की भूमिका का मुद्दा अवश्य उठाया गया तथा उस पर सदस्य देशों ने गौर किया होगा। लेकिन यह बैठक एससीओ शिखर वार्ता का एजेंड़ा तैयार करने के लिए आयोजित थी। इसे पाकिस्तान पर केंद्रित कर देने से आगामी शिखर वार्ता का महत्व कम होता है। वास्तव में भारत को बिलावल की मौजूदगी और पाकिस्तान को ज्यादा तवज्जो नहीं देनी चाहिए थी। हो सकता है जयशंकर के तेवर के पीछे राजौरी में हुआ आतंकी हमला कारण रहा हो। सच्चाई यह है कि पाकिस्तान इस समय खस्ताहालत में है। वहां के नेता भी अब अपने देश की तुलना भारत से नहीं करते। भारत की अंतरराष्ट्रीय साख का नतीजा है कि वह एशिया–प्रशांत के संगठन क्वाड़ के साथ ही एससीओ और ब्रिक्स जैसी अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं में प्रमुख भूमिका में रहता है।
भारत की विदेश नीति में समुद्री क्षेत्र (इंड़ो पैसिफिक) और भू–क्षेत्र (यूरेशिया) पर समान महत्व केंद्रित है। अमेरिका और पश्चिमी देशों के साथ ही भारत में विशेषज्ञों का एक बड़़ा वर्ग इंड़ो–पैसिफिक में नई दिल्ली की भूमिका को सक्रिय बनाने का पक्षधर है। यह अमेरिका के भू–राजनैतिक हितों से मेल खाता है। दूसरी ओर यूरेशिया रूस और चीन के लिए महत्वपूर्ण है। ऊर्जा आवश्यकताओं के लिहाज से यूरेशिया का महत्व भारत के लिए कम नहीं। एससीओ में ईरान के शामिल होने के बाद इस संगठन का महत्व और बढ़ जाएगा। भारत को यूरेशिया से जोडने वाले अंतराष्ट्रीय उत्तर दक्षिण परिवहन गलियारे (इंस्टक) के पूरी तरह चालू हो जाने के बाद इस क्षेत्र में संपर्क और आवागमन प्रणाली कायम हो जाएगी। अमेरिका और पश्चिमी देश भारत के यूरेशिया के साथ जुड़़ने को लेकर परेशान हैं। अमेरिका यूरेशिया में रूस और चीन के महत्व को कम करने के लिए मध्य एशिया के देशों को रिझाने की कोशिश में है।
गोवा बैठक में जयशंकर की चीन और रूस के विदेश मंत्रियों के साथ बैठक पर विशेष रूप से गौर किया जाना चाहिए। प्रतीत होता है कि भारत के बारे में चीन का रुख नरम पड़़ रहा है। चीन की मीडि़या के अनुसार सीमा क्षेत्र में शांति और स्थिरता कायम करने के लिए भारत जिस बात पर जोर दे रहा है‚ उस बारे में चीन भी सकारात्मक रुख अपना रहा है। चीन की ओर से अब माना जा रहा है कि पहले हुए समझौतों और परस्पर सहमति का पालन किया जाना चाहिए। हालांकि भारत चीन सीमा पर सैनिकों को पीछे हटाने का काम अभी पूरा नहीं हुआ है। आशा की जानी चाहिए कि जुलाई में नई दिल्ली में आयोजित होने वाली एससीओ शिखर वार्ता के सिलसिले में राष्ट्रपति जिनपिंग की यात्रा से पहले कुछ ठोस कदम उठाए जाएंगे। जयशंकर सीमा के हालात को ‘खतरनाक’ बताते रहे हैं लेकिन गोवा में उन्होंने संबंधों को ‘असामान्य’ बताया। इससे लगता है कि द्विपक्षीय संबंधों में कुछ सुधार हो रहा है। नई दिल्ली में यदि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और राष्ट्रपति जिनपिंग की द्विपक्षीय वार्ता होती है तो वह एशिया के लिए खुशखबरी होनी चाहिए। भारत को इस बात पर भी ध्यान देना चाहिए कि यूक्रेन संघर्ष के बावजूद फ्रांस और जर्मनी ने चीन के साथ रिश्तों को सामान्य बनाने की पहल की है। पड़़ोसी देश के रूप में भारत के लिए तो सामान्य संबंध और भी जरूरी हैं। बहुत कुछ चीन के रवैये पर निर्भर करेगा। रूस के लिए भी यह जरूरी है कि उसे अमेरिका और पश्चिमी देशों से मिल रही सैनिक और आर्थिक चुनौती का सामना करने के लिए उसके सहयोगी देशों भारत और चीन के बीच टकराव न हो। इस दृष्टि से एससीओ शिखर वार्ता की सफलता को आंका जाएगा।
वास्तव में भारत को बिलावल भुट्टो की मौजूदगी और पाकिस्तान को ज्यादा तव्वजो नहीं देनी चाहिए थी। सच्चाई यह है कि पाकिस्तान इस समय खस्ताहाल में है। वहां के नेता भी अब अपने देश की तुलना भारत से नहीं करते। पाकिस्तान की तुलना दक्षिण एशिया के छोटे देश से की जा सकती है‚ भारत से नहीं