पूर्व सांसद और बिहार के बाहुबली नेता आनंद मोहन की 15 साल बाद जेल से रिहाई पर न केवल बिहार बल्कि देश भर में हंगामा बरपा है। गोपालगंज के जिलाधिकारी ड़ी. कृष्णैया की हत्या में पहले फांसी फिर उम्रकैद की सजा काट रहे आनंद मोहन को बिहार सरकार ने जेल मैनुअल में बदलाव कर रिहा किया है। सरकार ने सरकारी कर्मचारी की हत्या करने वाली धारा हटा दी‚ जिससे मोहन की रिहाई संभव हो सकी है। सरकार लाख दलील दे कि किसी भी शख्स की रिहाई जेल में उसके आचरण और अनुशासन के आधार पर तय होता है‚ मगर आनंद मोहन की छवि राज्य में कैसी रही है यह तथ्य जगजाहिर है। यही वजह है कि राज्य में इस मसले पर राजनीति भी जमकर हो रही है। सबसे पहले बसपा प्रमुख मायावती ने राज्य सरकार के फैसले पर तीखी आपत्ति जताई और इसे दलितों के साथ अन्याय बताया। उसके बाद भाजपा की प्रतिक्रिया आई‚ मगर यहां भी विचारों में अलगाव दिखा। भाजपा के एक सांसद ने जहां आनंद मोहन की रिहाई को गलत बताया वहीं एक अन्य सांसद ने बाहुबली नेता को ‘बेचारा’ की संज्ञा दे ड़ाली। बहरहाल‚ आनंद मोहन जिस राजपूत जाति से आते हैं‚ उसकी पूरे राज्य में तो नहीं मगर वैशाली‚ रोहतास‚ भोजपुर और आसपास के चार–पांच जिलों में अच्छा खासा प्रभाव है। इस फैसले से भले राजपूत वोट नीतीश कुमार के गठबंधन को मिलने की आस बढ़ गई हो‚ मगर यह महागठबंधन के लिए ‘एक हाथ ले‚ दूसरे हाथ दे’ जैसा है। चूंकि राज्य की सियासत में जाति का आधार काफी गहरा है और कृष्णैया दलित जाति के थे‚ लिहाजा जद (यू) गठबंधन को दलित वोट का नुकसान होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता है। देखना है‚ इस नुकसान की भरपाई नीतीश और उनका गठबंधन कैसे करेगीॽ दूसरा यह कि कृष्णैया के परिवारवालों ने जिस तरह सर्वोच्च अदालत जाने की बात कही है और प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी से मदद मांगी है‚ उसपर भी नजर रखनी होगी। उधर‚ आईएएस एसोसिएशन ने भी पूरे प्रकरण में नाराजगी जताई है और उच्च अदालत में अपील की बात कही है‚ वह भी विचारणीय प्रश्न है। फिलहाल तो आनंद मोहन बाहर आ चुके हैं और अपनी रिहाई का जश्न मना रहे हैं। सियासी गुणा–गणित भी जोरों पर है‚ सो निश्चित तौर पर बिहार की राजनीति एक बार फिर नये करवट लेती दिख रही है।
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