लोक दर्शन न्यास समाज शोध एवं संस्कृति द्वारा दो दिवसीय रामचंद्र खान स्मृति समारोह का शुभारंभ शनिवार को तारामंडल सभागार में हुआ। कार्यक्रम श्रद्धांजलि सभा स्मृतियां रामचंद्र खान सहित तीन सत्रों में विभक्त था। कार्यक्रम की शुरुआत श्रद्धांजलि सभा से हुई। इस अवसर पर राम गोपाल पीवी (गांधीवादी चिंतक) पीके ठाकुर पूर्व डीजीपी ने उन्हें याद करते हुए अपने स्मृतियों को साझा किये।
राम गोपाल ने कहा कि सरकारी मुलाजिम होने के बावजूद जन कल्याणकारी कायोंर् के लिए रामचंद्र खान सदा सुलभ रहे। बिहार में भूदान आंदोलन में उनकी भूमिका महत्वपूर्ण थी। वही ठाकुर ने कहा कि विचार की ताकत के क्षीण होते समय में पंडित रामचंद्र खान के विचार और उनकी स्मृति हमारे विचारवान होने में पथ प्रदर्शक की भूमिका निभाती है। वे एक और पांडित्य तो दूसरी तरफ खान साहब के रूप में अधिकारी के तौर पर दो विरोधी ध्रुवों के अद्भुत समन्वय थे। पंडित रामचंद्र खान को प्रतिबद्ध वैचारिकता एवं सत्ता और समाज के हाशिए पर रह रहे आदमी की आवाज को रेखांकित करने वाले एक बृहद मनुष्य थे। इस कार्यक्रम के उद्घाटनकर्ता एवं मुख्य अतिथि हरिवंश‚ उपसभापति‚ राज्यसभा‚ पीके ठाकुर‚ राजगोपाल पीवी‚ प्रहलाद सिंह‚ टिपानिया एवं उषा किरण खान ने स्वर्गीय रामचंद्र खान के चित्र पर माल्यार्पण किया एवं दीप प्रज्वलित कर कार्यक्रम को प्रारंभ किया।
सत्र में चयनित लेखकों को पुरस्कृत किया गया रामचंद्र खान सामाजिक विज्ञान पुरस्कार प्रोफेसर मणींद्र नाथ ठाकुर‚ जेएनयू को उनकी पुस्तक ज्ञान की राजनीति के लिए दिया गया। रामचंद्र खान अनुवाद पुरस्कार‚ डॉ चंदन श्रीवास्तव जेपी विश्वविद्यालय‚ छपरा को‚ ज्यां द्रेज की पुस्तक सेंस एंड सॉलिडेरिटी झोलावाला इकॉनमी फॉर एवरीवन के हिंदी अनुवाद के लिए दिया गया। इन दोनों लेखकों को १–१ लाख की पुरस्कार राशि दी गई।
उद्घाटन सत्र में आधुनिक समाज का संकट और गांधी विषय पर हरिवंश ने अपने उद्घाटन भाषण में कहा कि साधन और साध्य की पवित्रता एवं एकता की बात करने वाले गांधी ही हमारे समय के नायक हो सकते है। हमारे समय की चुनौती यह है कि देश गांधी के सुझाए रास्तों पर नहीं चला। आज हमारे देश में गांधी द्वारा सुझाए हुए साध्य साधन की एकता की पवित्रता से दूरी बढी है। उपभोक्तावाद‚ बाजारीकरण‚ पर्यावरण संकट एवं तकनीक हमारे समय की सबसे बडी चुनौती है। फ्रांस की क्रांति ने अगर विचारशीलता को गति दी और औद्योगिक क्रांति ने बाजार एवं पर्यावरण हनन को बढावा दिया। गांधी ने इस देश को चरित्र दिया किंतु आज गांधी मॉडल भी अपर्याप्त होगा। आज की सबसे बडी चुनौती गांधी मॉडल के रास्ते पर वापस आने की आवश्यकता है।