हाल ही में कलकत्ता उच्च न्यायालय ने मेडिकल रिपोर्ट में मातृ मृत्यु के जोखिम होने का हवाला देते हुए बारह साल की दुष्कर्म पीडि़ता को गर्भपात की अनुमति देने से इनकार कर दिया। पीडि़ता के गर्भ में पच्चीस सप्ताह के जुड़वां जीवित भ्रूण हैं। पीडि़ता की मां ने नाबालिग बेटी के गर्भपात कराने की अनुमति देने की प्रार्थना करते हुए हाईकोर्ट में रिट याचिका दायर की थी। हालांकि जनवरी २०२० में चिकित्सा गर्भपात संशोधन विधेयक‚ २०२० को मंजूरी देते हुए विशेष तरह की महिलाओं के गर्भपात के लिए गर्भावस्था की सीमा २० से बढ़ाकर २४ सप्ताह करने का प्रस्ताव दिया गया था। इनमें बलात्कार पीडि़त‚ सगे–संबंधियों के साथ यौन संपर्क की पीडि़त और अन्य महिलाएं (दिव्यांग महिलाएं‚ नाबालिग) भी शामिल है।
अगर देश भर में बलात्कार के आंकड़ों की बात करें तो २०१८ में ३३‚३५६ २०१९ में ३२‚०३२ और २०२० में बलात्कार के मामले २८‚०४६ दर्ज हुए। यानी‚ इन तीन सालों में देश भर में ९३‚४३४ बलात्कार के मामले दर्ज किए गए। इंसाफ और अपराधियों को सजा दिलाने की आस में हजारों महिलाएं बंद कोठरी में आज भी छुपकर सामाजिक यातना झेल रही हैं‚ वहीं मानसिक और समाजिक प्रताड़ना के चलते कइयों ने तो खुदकुशी तक कर ली। न्याय के इंतजार में परित्यक्त जीवन जीने को मजबूर इन महिलाओं की बेहिसाब मानसिक पीड़ा का सुध लेने वाला कोई नहीं।
सवाल है कि क्या यौन शोषण करने वाले पुरु ष के बच्चे को जन्म देने के लिए पीडि़ता को बाध्य करना उचित हैॽ बलात्कार या यौन शोषण के ऐसे मामले जहां पीडि़ता गर्भवती हो जाती है और उसे विधि नियमों के तहत अवश्यंभावी रूप से एक अनाम बच्चे को जन्म देने पर बाध्य होना पड़ता है‚ गहरी पीड़ा और कभी न खत्म होने वाले जख्म का कारण हैं। क्योंकि ऐसे में उस औरत को हर पल अपने साथ हुए उस हादसे के साये में जीना पड़ता है। किसी भी महिला से बलात्कार किया जाना‚ चाहे वह किसी भी उम्र की हो‚ भारतीय कानून के तहत गंभीर श्रेणी में आता है। इस संगीन अपराध को अंजाम देने वाले दोषी को भारतीय दंड संहिता में कड़ी से कड़ी सजा का प्रावधान है। इस अपराध के लिए भारतीय दंड संहिता में धारा ३७६ के तहत सजा का प्रावधान है‚ लेकिन संवेदनशीलता के स्तर पर ऐसी भयवाह घटना से उबरने में सालों लग जाते हैं और कई बार उबर भी नहीं पाते। दुष्कर्म के बाद बच्चे के जन्म के साथ ही कई तरह की सामाजिक और पारिवारिक समस्याएं खड़ी हो जाती हैं‚ जिससे तत्काल निपटा जाना बेहद जरूरी है।
क्या देश में ऐसी कोई मजबूत और ठोस व्यवस्था है‚ जिसके तहत ऐसे मासूमों को समाज और परिवार में सामंजस्य बिठाने और मुख्य धारा में शामिल किए जाने के समवेत प्रयास किए जाते हों। महिला आश्रय स्थलों की स्थिति किसी से छुपी नहीं। वहां महिलाओं के साथ दुराचार की घटनाएं यदा–कदा सामने आती रहती है। ऐसे में ऐसी महिलाओं को सुरक्षा कहां और कैसे मिले इस पर संज्ञान जरूरी है। दुष्कर्म के बाद जन्मे बच्चे के साथ ही तमाम नैतिक‚ समाजिक और मानसिक जटिलताएं पीडि़ताओं के समक्ष आन खड़ी होती है‚ जिसके चक्रव्यूह से निकलना आसान नहीं। ऐसे बच्चों के जन्म के साथ उसकी परवारिश की जिम्मेदारी और पीडि़ताओं की समाजिक स्वीकृति की दिशा में ठोस स्तर पर जल्द कुछ किए जाने की जरूरत है क्योंकि दुष्कर्म अपने पीछे कई सुलगते सवाल छोड़ जाता है।