प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दूरदर्शी सोच और नेतृत्व में देश लगातार सकारात्मक परिवर्तनों के दौर से गुजर रहा है। ये परिवर्तन एक क्षेत्र में नहीं हैं‚ अपितु विगत 9 वर्षों में प्रधानमंत्री मोदी ने सभी क्षेत्रों में आमूलचूल बदलाव लाने की सफल कोशिश की है। जो क्षेत्र‚ समाज और वर्ग नेपथ्य में थे‚ उन्हें आज प्राथमिकता मिल रही है। मसलन‚ वन्य जीव संरक्षण की दिशा में देश के लोगों के भीतर वर्षों से व्याप्त उदासीनता को पिछले कुछ वर्षों में केंद्र की सरकार ने स्पष्ट और नेक इरादों से दूर किया है।
आज हर कोई प्रकृति‚ वन्य जीव की विविध बातों को जानने को उत्सुक है। प्रकृति और पर्यावरण हमारे लिए सिर्फ साधन नहीं‚ अपितु आध्यात्मिकता और संवेदनशीलता के पर्याय हैं। आजादी के बाद पहली बार जब साल २०२२ में देश में चीते आए तो इसकी सराहना चहंुओर हुई। अब उन्हीं में से एक मादा चीते ने चार शावकों को जन्म दिया है। यह देश के लिए गौरवपूर्ण और ऐतिहासिक पल है‚ क्योंकि आजादी के लंबे कालखंड के बाद अमृत काल में वन्य जीव संरक्षण की अद्भुत मिसाल रखी जा रही है।
जैव विविधता को सुदृढ बनाए रखना मानव जीवन के लिए बेहद जरूरी है‚ जिसे प्रधानमंत्री मोदी की प्रतिबद्धता पूरी करती दिख रही है। मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में प्रधानमंत्री मोदी द्वारा जंगली चीतों का छोड़ा जाना भारत के वन्य जीवन और इसके आवास को पुनर्जीवित करने और विविधता को संरक्षित करने का हिस्सा है। देश में १९५२ से ही चीता विलुप्त घोषित कर दिया गया था। जिन चीतों को कूनो लाया गया‚ वे नामीबिया से हैं और अब उनका परिवार बढ़ने लगा है। चीतों के देश में आने के बाद खुले जंगल और चारागाह पारिस्थितिकी तंत्र में व्यापक स्तर पर सुधार देखने को मिलने वाला है। यह चीता प्रोजेक्ट देश में जैव विविधता के संरक्षण में मदद करने के साथ जल सुरक्षा और कार्बन पृथक्करण जैसी सेवाओं में भी विस्तार करने में आगामी समय में सहायक सिद्ध होगा।
साल २०१४ के बाद से लगातार केंद्र की मोदी सरकार जंगल और जीवन के बीच का शून्य पाटने की दिशा में कार्यरत है। जंगल और वन्य जीवों की अहमियत को सरकार भली–भांति समझती है। यही वजह है कि देश में २०१४ से लेकर अब तक लगभग २५० नये संरक्षित क्षेत्र जोड़े गए हैं। पूर्ववर्ती सरकारें पर्यावरण और वन्य जीवों के प्रति संजीदा नहीं थीं‚ लेकिन भाजपा–नीत सरकार के आने के बाद से देश में बाघों की संख्या दोगुनी बढ़ना साबित करता है कि वन्य जीवों और पर्यावरण को लेकर सरकार कितनी गंभीरता से आगे बढ़ रही है। इसी तरह आज देश में हाथियों की संख्या भी बढ़कर ३० हजार से अधिक हो गई है। एक समय देश के भीतर आर्द्रभूमि की संख्या बहुत कम थी। अब इसकी संख्या बढ़कर ७५ हो गई है। प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण से ही हमारा भविष्य सुरक्षित होता है। ये हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का विजन है‚ और इसकी परिकल्पना को साकार करते हुए इक्कीसवीं सदी में हम अर्थव्यवस्था और पर्यावरण संरक्षण‚ दोनों मामलों में तेजी से ग्रोथ कर रहे हैं। विकसित देशों का मानना है कि अर्थव्यवस्था और पारिस्थितिकी‚ दोनों परस्पर विरोधी हैं‚ लेकिन प्रधानमंत्री मोदी का विजन इसे सिरे से खारिज करता है।
प्रोजेक्ट एलीफेंट और प्रोजेक्ट टाइगर की सफलता दुनिया ने देखी है‚ जिसके बाद ही चीता प्रोजेक्ट की देश में शुरु आत हुई। आजादी के अमृत काल में ०१ अप्रैल‚ २०२३ को प्रोजेक्ट टाइगर को ५० वर्ष पूरे हुए हैं। भारत सरकार ने १ अप्रैल‚ १९७३ को कॉर्बेट नेशनल पार्क में बाघों के संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट टाइगर की शुरुआत की थी। मोदी सरकार के आने के बाद पिछले आठ वर्षों में देश में बाघों की संख्या दोगुनी हो गई और आज विश्व के सबसे अधिक ७५ प्रतिशत बाघ हमारे देश में हैं। मोदी जी के कुशल नेतृत्व में बाघ संरक्षण का बजट भी पिछले आठ वर्षों में काफी बढ़ा। दरअसल‚ २०१४ में बाघ संरक्षण के लिए बजटीय आवंटन १८५ करोड़ रुपये था जो बढ़कर २०२२ में ३०० करोड़ रु पये हो गया है। आज देश में ०९ से बढ़कर ५२ टाइगर रिजर्व की संख्या पहुंच गई है। मोदी सरकार पारिस्थितिकी तंत्र को बेहतर बनाने के लिए संकल्पबद्ध है‚ और यही वजह है कि ०९ अप्रैल से मोदी सरकार तीन दिवसीय कार्यक्रम ‘प्रोजेक्ट टाइगर’ के ५० साल पूरे होने के उपलक्ष्य में करने जा रही है। यह कार्यक्रम कर्नाटक के मैसूर में होगा जहां से दुनिया को बाघ संरक्षण की सफलतापूर्ण कहानी सुनाई जाएगी। दरअसल‚ एक समय ऐसा भी था जब पूरी दुनिया में बाघों की संख्या तेजी से लगातार गिरती चली जा रही थी। ऐसे में वर्तमान की केंद्र सरकार ने इनके संरक्षण का जिम्मा संभाला और आज देश में ३‚००० के करीब बाघ हैं‚ जो बेहद गौरवांवित करने वाला विषय है।
मानव‚ पर्यावरण और वन्य जीव दरअसल‚ एक–दूसरे के पूरक हैं‚ और बदलती परिस्थितियों के बीच सही नीति और नीयत से ही इन तीनों के बीच सामंजस्य स्थापित किया जा सकता है‚ और इस दिशा में मोदी सरकार के प्रयासों की जितनी भी प्रशंसा की जाए‚ वो कम है। प्रोजेक्ट एलिफेंट के ३० साल पूरे होने पर असम के काजीरंगा नेशनल पार्क में दो दिवसीय कार्यक्रम गज महोत्सव का आयोजन हो रहा है। मोदी सरकार के ऐसे प्रयासों से प्रकृति‚ पर्यावरण‚ वन्य जीव के बीच एक संतुलन तो बनेगा ही इसके साथ ही जो पीपल–कनेक्ट की जो भावना सामने आई है‚ वह अभूतपूर्व है।
इस अमृत काल के दौरान जिस तरह प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में वन्य जीव संरक्षण के कारगर प्रयास हो रहे हैं‚ उनके सुखद परिणाम दिखने लगे हैं। आम जन की भावना भी जीव संरक्षण और प्रकृति को लेकर बदली है। अब लोग इन विषयों की गहराई को भी समझने लगे हैं। ऐसा इसलिए क्योंकि नरेन्द्र मोदी सरकार पर्यावरण और वन्य जीव संरक्षण के क्षेत्र में लोक–भावना की कार्य–संस्कृति को लेकर आगे बढ़ रही है‚ जिसके व्यापक लाभ भी मिलते दिख रहे हैं।
साल २०१४ के बाद से लगातार केंद्र की मोदी सरकार जंगल और जीवन के बीच का शून्य पाटने की दिशा में कार्यरत है। जंगल और वन्य जीवों की अहमियत को सरकार भली–भांति समझती है। यही वजह है कि देश में २०१४ से लेकर अब तक लगभग २५० नये संरक्षित क्षेत्र जोड़े गए हैं। पूर्ववर्ती सरकारें पर्यावरण और वन्य जीवों के प्रति संजीदा नहीं थीं‚ लेकिन भाजपा–नीत सरकार के आने के बाद से देश में बाघों की संख्या दोगुनी बढ़ना साबित करता है कि वन्य जीवों और पर्यावरण को लेकर सरकार कितनी गंभीरता से आगे बढ़ रही है। इसी तरह आज देश में हाथियों की संख्या भी बढ़कर ३० हजार से अधिक हो गई है। एक समय देश के भीतर आद्रभूमि की संख्या बहुत कम थी। अब इसकी संख्या बढ़कर ७५ हो गई है। प्रकृति और पर्यावरण के संरक्षण से ही हमारा भविष्य सुरक्षित होता है……….