एआईएमआईएम ने बिहार की राजनीति को एक अलग धार दे दी है। अब तक जो मुस्लिम वोट को अपनी थाती समझते रहे हैं, उन्हें ओवैसी की इस अधिकार यात्रा से सबसे ज्यादा झटका लगा है। यह राजनीति की सच्चाई है कि ओवैसी की पार्टी भाजपा के विरुद्ध की राजनीति के साथ खड़ी हुई है। परंतु इस अधिकार यात्रा में ओवैसी ने हमले के तोप का मुंह मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव की ओर ही मोड़े रखा। ओवैसी की इस यात्रा का जो नया स्वर निकला, वह यह कि बिहार की धरती पर मेरा नया दुश्मन महागठबंधन यानी सीएम और डिप्टी सीएम हैं।
नीतीश कुमार और तेजस्वी यादव के विरुद्ध उगले आग
असदुद्दीन ओवैसी ने सीमांचल में अधिकार यात्रा के बहाने महागठबंधन के सामने एक बड़ी चुनौती तो दे डाली। हमले को निरंतर जारी रखते महागठबंधन की सरकार के प्रति काफी नाराजगी भी जताई। दो दिवसीय दौरे के दौरान ओवैसी किशनगंज, पूर्णिया, कटिहार और अररिया की जमीन पर मुख्यमंत्री पर हमला बोलते हुए कहा कि नीतीश कभी भी पलटी मारकर बीजेपी के साथ जा सकते हैं। बिहार की जनता को नीतीश से भरोसा उठ गया है। बिहार में नीतीश और तेजस्वी मुसलमानों को जहर देकर खुद मलाई खा रहे हैं। उनके मलाई खाने के दिन अब खत्म हो रहे हैं।
असदुद्दीन ओवैसी ने कहा कि नीतीश कुमार दिल्ली का ख्वाब देख रहे हैं। दिल्ली का रास्ता सीमांचल से होकर गुजरता है। सीमांचल में नीतीश और मोदी के रास्ते में मैं खड़ा दिखूंगा। नीतीश और तेजस्वी की जोड़ी सीमांचल से मुस्लिमों का हक छीन रहे हैं। सीमांचल के पिछडेपन के लिए ये जोड़ी जिम्मेवार हैं। राजगीर में गंगा का पानी दिया जा रहा है और सीमांचल में मुसलमानों को जहरीला पानी पिलाया जा रहा है। यहां अभी भी आधे-अधूरे पुल का निर्माण नहीं हुआ है। सीमांचल को सूखा छोड़ नीतीश और तेजस्वी की जोड़ी मलाई खा रही है। ये मलाई जल्द ही बंद होगी।
सभी सीटों पर लड़ेगी एआईएमआईएम
इस अधिकार यात्रा के निहितार्थ महागठबंधन की परेशानी को बढ़ाना ही साबित हुआ। वजह भी साफ है कि आगामी विधानसभा के सभी सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा कर एआईएमआईएम ने नीतीश-तेजस्वी की आंखों की नींद उड़ा दी है। ऐसा इसलिए कि राजनीति के हस्ताक्षर कहे जाने वाले नेता यह जानते हैं कि राज्य में 60 से 70 विधानसभा सीटें हैं, जहां मुस्लिम मत निर्णायक वोट साबित होते रहेंगे। और तकरीबन 30 से 40 विधान सभा सीटें ऐसी हैं, जहां दलित से समझौता कर राज्य में एक नया समीकरण गढ़ महागठबंधन को एक नई चुनौती दिया जा सकता है।
अपरोक्ष रूप से भाजपा को फायदा
ओवैसी का बिहार आगमन और राज्य के सभी विधानसभा सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा के बाद भाजपा खेमे में थोड़ी राहत है। भाजपा यह जानती है कि मुस्लिम वोट जितना बंटेगा, भाजपा की सीटें बढ़ेंगी। कुछ माह पहले राज्य में हुए तीन उपचुनाव में भाजपा के हाथ दो सीटें हासिल होना, इस समीकरण की पुष्टि भी करता है। 2020 के विधानसभा चुनाव में लोजपा ने उम्मीदवार खड़ा कर न केवल भाजपा को ज्यादा सीट हासिल कराया, बल्कि जदयू को तीसरी बड़ी पार्टी बना कर जदयू के कद को छोटा कर डाला।
अब अगर विधानसभा 2025 के चुनाव में ओवैसी सभी सीटों पर उम्मीदवार खड़ा करते हैं तो एक बात तो साफ है कि महागठबंधन की लड़ाई को मुश्किल बनाने जा रहे हैं। ऐसा इसलिए कि भाजपा ने मुस्लिम के एक बड़े वर्ग पसमांदा मुस्लिम को योजनाओं के द्वारा प्रभावित करना शुरू कर दिया है। उत्तरप्रदेश में यह फॉर्मूला सबका साथ सबका विश्वास, काफी सफल भी हुआ था।
क्या कहते हैं राजनीतिक विशेषज्ञ?
वरिष्ट पत्रकार और राजनीतिक विशेषज्ञ अरुण पांडे कहते हैं कि ओवैसी के आगमन से एक बात तो साफ हो गई है कि जो दल मुस्लिम को कोर वोट के रूप में राजनीति करते रहे हैं, उन्हें अब बड़ी मुश्किल का सामना करना पाएगा। गत चुनाव में एआईएमआईएम ने पांच विधानसभा सीटों पर जीत हासिल कर अपनी ताकत का इजहार किया था। यह और बात है कि उनके चार विधायक राजद में चले गए। एआईएमआईएम राज्य के 243 सीटों पर उम्मीदवार खड़ी करती है तो अपरोक्ष रूप से भाजपा को फायदा पहुंचने वाला है। साथ ही यह उस दल के लिए भी एक चुनौती है जो मुस्लिम मत पर एकाधिकार समझते रहें हैं। इतना भर नहीं, सीमांचल के अंदर चार लोकसभा सीटें हैं और यहां मुस्लिम मत निर्णायक होते रहे हैं। ओवैसी की पार्टी का इन लोकसभा चुनाव में खड़ा होना भी विपक्ष के लिए नई समस्या का खड़ा होना है।