बिहार सरकार गरीबी रेखा से नीचे रहने वाले अनुसुचित जाति, पिहडे एवं अति पिछडे वर्ग के वैसे लोगों को घर बनाने के लिए जमीन खरीदकर देती है जिनके पास अपनी भूमि नहीं है। इस बात की सराहना होनी चाहिए कि अब भूमिहीन परिवारों के नए बालिग सदस्यों को भी आवास के लिए जमीन देने की घोषणा की गई है। दरअसल, पहले जिन्हें जमीन दी गई थी, उनके बच्चे बालिग हो गए हैं। वे अलग परिवार बसाना चाहते हैं। राज्य सरकार ऐसे परिवारों का सर्वेक्षण कराने जा रही है। इसमें उन्हें भी शामिल किया जाएगा, जो पिछले सर्वेक्षण में छूट गए थे। इस योजना के तहत तीन डिसमिल जमीन देने का प्रविधान है। राज्य में भूमि लेने वालों की संख्या अधिक है। जाहिर है इसके लिए ज्यादा जमीन की जरूरत पड़ रही है । राज्य सरकार की कोशिश है कि पहले गैरमजरुआ, भूदान एवं हदबंदी से फाजिल जमीन का वितरण किया जाए , लेकिन जहां इस श्रेणी की भूमि उपलब्ध नहीं है, वहां खरीद कर दी जा रही है। कहने की जरूरत नहीं कि राज्य में अब भी बड़ी संख्या में लोग आवास से वंचित हैं। अब तक के सर्वेक्षण में जिन परिवारों के नाम शामिल कर लिए गए हैं, उन्हें जमीन उपलंब्ध कराने के लिए राशि जिलों को भेज दी गई है। अब जिलों में तैनात संबंधित अधिकारियों को चाहिए कि वे पात्र लोगों को इस सुविधा का लाभ दिलाएं। अक्सर देखा जाता है कि ऐसे लोग भी गरीबों को मिलने वाली सुविधा का लाभ उठा लेते हैं, जो इसके पात्र नहीं होते। ऐसे में पंचायत के जनप्रतिनिधियों की भी जिम्मेदारी बढ़ जाती है। बिचौलियों पर विशेष नजर रखनी होगी। गांवों से अक्सर शिकायत मिलती है कि जिनके पास काफी जमीन है, उन्हें भी गरीबी रेखा से नीचे दिखाकर आवास योजना को लाभ दे दिया गया है। कई लोग ऐसे भी जो सरकार से मिलने वाली राशि तो प्राप्त कर लेते हैं, लेकिन उसका उपयोग घर नहीं बनाकर किसी दूसरे काम में कर लेते हैं।
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