2014 के चुनाव अभियान में महंगाई कम करने की वकालत करने वाली भाजपा और उसके समर्थक इस बात पर बहुत जोर दे रहे थे कि यदि वे सत्ता में आते हैं‚ तो पेट्रोल–डीजल के दामों में भारी कमी की जाएगी। वोटरों को लुभाने के लिए यहां तक कह दिया गया था कि पेट्रोल का दाम ३५ रुपये तक लाया जाएगा परंतु पिछले ९ सालों में पेट्रोल–डीजल के दाम कम करने की दिशा में केंद्र सरकार द्वारा कोई ठोस कदम नहीं उठाया गया है। अलबत्ता‚ कुछ दिन पहले वित्त निर्मला सीतारमण ने पेट्रोल–डीजल को जीएसटी के दायरे में लाने की बात कह कर जनता की उम्मीद फिर जगा दी है। ऐसा होता है तो पेट्रोलियम उत्पादों के दाम काफी कम हो जाएंगे और बढ़ती महंगाई पर इसका सीधा असर पड़ेगा।
दरअसल‚ कुछ दिनों पहले पीएचडी चैम्बर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री को संबोधित करते हुए वित्त मंत्री सीतारमण ने कहा कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने को लेकर प्रावधान पहले से उपलब्ध हैं। साथ ही‚ उन्होंने इसकी जिम्मेदारी राज्य सरकारों पर डालते हुए कहा कि अगर राज्यों के बीच इस पर समझौता हो तो इस पर कदम उठाया जा सकता है। गौरतलब है कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने की मांग काफी समय से उठ रही है। १ जुलाई‚ २०१७ से भारत में अधिकतर चीजों पर जीएसटी लागू किया गया परंतु पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी से बाहर रखा गया। इन पर अभी भी वैट‚ केंद्रीय बिक्री कर और केंद्रीय उत्पाद शुल्क जैसे पारंपरिक कर लगाए जाते हैं। इससे इनके दाम काफी ज्यादा हो जाते हैं। सोचने की बात है कि पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है‚ तो राज्य और केंद्र सरकार को इससे होने वाले नुकसान की भरपाई कहां से की जाएगीॽ वर्तमान में पेट्रोलियम उत्पादों की खुदरा कीमतों पर बड़ा हिस्सा केंद्र और राज्य करों का लगाया जाता है। जीएसटी का अधिकतम स्लैब भी इन उत्पादों पर लगाया जाए तो भी इनके दाम काफी गिर जाएंगे। केंद्र सरकार के अनुसार पेट्रोलियम उत्पादों का दाम अंतरराष्ट्रीय बाजार के दामों पर निर्भर करता है लेकिन अंतरराष्ट्रीय बाजार में कच्चे तेल के दाम लगातार गिरने पर भी देश की जनता को इसका लाभ नहीं पहुंचाया गया। आंकड़ों के अनुसार जून‚ २०२२ में कच्चे तेल का दाम ११६ डॉलर प्रति बैरल था। दिसम्बर‚ २०२२ में यह ७८ डॉलर प्रति बैरल तक पहुंच गया था परंतु कच्चे तेल के दाम ३५ से ४० प्रतिशत कम होने के बावजूद इनका लाभ जनता को नहीं मिला।
भारतीय स्टेट बैंक की इकोनॉमिक रिसर्च रिपोर्ट के मुताबिक‚ पेट्रोल–डीजल को जीएसटी के दायरे में लाया जाता है तो सबसे ज्यादा नुकसान महाराष्ट्र को हो सकता है। महाराष्ट्र के राजस्व में १०‚४२४ करोड़ रु पये की कमी आ सकती है। राजस्थान को ६३८८ करोड़ और मध्य प्रदेश को ५४८९ करोड़ रु पये का घाटा हो सकता है। यदि पेट्रोलियम उत्पादों के जीएसटी के दायरे में आने पर फायदे की बात करें तो उत्तर प्रदेश को २‚४१९ करोड़‚ हरियाणा को १‚८३२ करोड़‚ पश्चिम बंगाल को १‚७४६ करोड़ और बिहार को ६७२ करोड़ रुपये का फायदा हो सकता है। पेट्रोलियम उत्पादों पर केंद्र सरकार को एक्साइज ड्यूटी से होने वाली कमाई की बात करें तो २०१४ के बाद से इसमें कई गुना इजाफा हुआ है। शायद यही वजह है कि केंद्र और राज्य सरकारें अपनी कमाई के इस स्रोत में कोई बदलाव करना नहीं चाहेंगी। जिन राज्यों में भाजपा की सरकार नहीं है‚ वहां भी पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी में न लाने का कारण कोई समझ नहीं पाया है। हाल में आटे और दूध–दही जैसी बुनियादी वस्तुओं को जीएसटी के दायरे में लाने पर विपक्षी दलों की राज्य सरकारों ने पुरजोर विरोध किया था लेकिन केंद्र सरकार ने अनसुना कर दिया।
पेट्रोलियम उत्पाद‚ शराब और तंबाकू उत्पादों पर लगने वाले विभिन्न करों और एक्साइज ड्यूटी से होने वाली कमाई से ही राज्य सरकारों का खजाना खाली होने से बच रहा है। ऐसे में टैक्स के पैसे से क्रियान्वित की जाने वाली विकास योजनाओं और जनता को मुफ्त में सुविधाओं जैसे मुफ्त राशन पर भी असर पड़ सकता है। चुनावी मौसम में किसी भी राजनैतिक दल द्वारा वोटरों को लुभाने के लिए ऐसे अलग–अलग शगूफे छोड़े जाते हैं। यदि सरकारी खजाने में इन शगूफों की भरपाई के लिए धन ही नहीं होगा तो ऐसे शगूफों को छोड़ने का आधार ही नहीं बचेगा। इसलिए पेट्रोलियम उत्पादों को जीएसटी के दायरे में लाने का निर्णय वर्षों से लटका हुआ है। न तो केंद्र सरकार और न ही कोई भी राज्य सरकार इसे जीएसटी के दायरे में लेने की इच्छुक दिखाई देती है। चुनावों से पहले एक्साइज ड्यूटी और करों में मामूली सी गिरावट कर जनता को आंशिक लाभ जरूर दिया जाता है। परंतु बढ़ती महंगाई के चलते यदि पेट्रोलियम उत्पादों जैसी बुनियादी जरूरत वाली वस्तुओं को सस्ता किया जाए तो जनता पर इसका अच्छा असर पड़ेगा क्योंकि फिर महंगाई भी तेजी से कम हो सकेगी। देखना यह है कि केंद्र और राज्य सरकारों की रस्साकशी में जनता को लाभ मिलेगा भी या कि नहींॽ