बिहार के एक वरीय आईएएस केके पाठक की गाली–गलौज के वायरल वीडियो ने इन दिनों राज्य में उफान खड़ा कर दिया है। दो अलग–अलग वीडियो में पाठक पदाधिकारियों के साथ बिहारियों को गाली देते नजर आ रहे हैं। घटना से आहत बासा (बिहार प्रशासनिक सेवा संघ) के करीब साढ़े बारह सौ पदाधिकारी चरणबद्ध आंदोलन की राह पकड़़ चुके हैं। इसकी शुरुआत राज्य भर के अधिकारियों ने तीन मिनट का मौन रखकर पाठक की मानसिक शांति की कामना के साथ की। उनके विरुद्ध एफआईआर के लिए आवेदन और उच्च न्यायालय में रिट की अर्जी दाखिल की जा चुकी है। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस प्रकरण की जांच का जिम्मा मुख्य सचिव को दे चुके हैं। उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव ने स्पष्ट कह दिया है कि इस तरह की कार्यशैली बर्दाश्त करने के योग्य नहीं है। ॥ उल्लेखनीय है कि बिहार के अपर मुख्य सचिव केके पाठक वर्तमान में महानिदेशक बिपार्ड (बिहार इंस्टीट¬ूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन एंड रूरल डवलपमेंट) के साथ अपर मुख्य सचिव मद्य निषेध‚ उत्पाद एवं निबंधन भी हैं। एक बैठक में उन्होंने डिप्टी कलक्टर्स को भद्दी–भद्दी गालियां दीं‚ जिसका वीडियो वायरल हुआ। वीडियो में बिहारियों को सड़क पर चलने का शऊर नहीं होने और दक्षिणी राज्यों की जनता को शऊर वाला बताया। करीब ३६ सेकंड़ के वीडियो में सा.कहने के साथ मां–बहनों को याद करते सुना जा सकता है। दूसरे वीडियो में एक वरीय आईएएस का नाम लेने सहित गाली–गलौज स्पष्ट सुनाई दे रही है। पाठक को लेकर मुख्य सचिव को दिए ज्ञापन को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाकर बासाई का निबंधन रद्द करवाने का भी आरोप है। संघ के सचिव सुनील कुमार तिवारी का कहना है कि ज्ञापन में एक वाक्य ‘बासा के सदस्य कार्रवाई पर पैनी नजर रखेंगे।’ को प्रतिष्ठा का प्रश्न बनाया गया है।
पाठक बिहार में अपनी जिद और कथित ईमानदारी के लिए चर्चित हैं। हालांकि ईमानदारी का अर्थ ‘जीवन के सभी आयामों में एक व्यक्ति के लिए सच्चा होना है। किसी से झूठ न बोलना और बुरी आदतों या व्यवहार से किसी को तकलीफ नहीं देना है। उन गतिविधियों में शामिल नहीं होना है‚ जो नैतिक रूप से गलत होती हैं। ईमानदारी किसी भी नियम–कानून को नहीं तोड़ती।’ पाठक के दुर्व्यवहार ने एक साथ कई सवाल खड़े कर दिए हैं। क्या सरकार को उनके इस रवैये की जानकारी नहीं थीॽ आम जन के कथित व्यवहार पर राज्य स्तर पर आंदोलन का शंखनाद करने वाले ये अधिकारी जलालत क्यों झेल रहे थेॽ क्या अन्य राज्यों में भी राज्यस्तरीय पदाधिकारियों के संग ऐसा व्यवहार होता हैॽ आखिर‚ पाठक को अमर्यादित व्यवहार और असंसदीय भाषा के प्रयोग का अधिकार किसने दियाॽ शिष्टतापूर्ण व्यवहार किसी भी अधिकारी का गहना होता है। वह जितने अच्छे से इसे धारण करेगा‚ उसकी इज्जत में उतना ही इजाफा होगा। क्या उत्पाद एवं खनन विभाग के सचिव रहते पाठक शराबबंदी के साथ अवैध खनन‚ भंडारण और ओवरलोडिंग पर कमान कस पाए थेॽ ये वही पदाधिकारी हैं‚ जिन्होंने बिहार के महान पर्व छठ पर निबंधन कार्यालय खुले रहने का फतवा जारी किया था। ‘बिहार रजिस्ट्रेशन सर्विस एसोसिएशन’ की २५ अक्टूबर‚ २०२२ की बैठक में लिए गए आठ निर्णय भी केंद्र सरकार और राज्य सरकार पर कई सवाल खड़े कर रहे हैं‚ जिसकी प्रतिलिपि राज्यपाल‚ मुख्यमंत्री और राष्ट्रीय अनुसूचित जाति एवं पिछड़ा वर्ग आयोग सहित १४ जगह भेजी गई थी। पहले प्रस्ताव में ही उल्लेखित है‚ ‘अक्सर अपर मुख्य सचिव महोदय द्वारा पदाधिकारियों को मां–बहन से संबंधित अमर्यादित तथा असंसदीय भाषा में गाली दी जाती है। पदाधिकारियों को उनकी बिहारी अस्मिता के लिए शर्मसार किया जाता है। ‘तुम साले बिहारी‚ निक्कमे‚ दल्ले हो‚ निर्बुद्धि हो। पदाधिकारियों के साथ पशुवत व्यवहार किया जाता है। उनको बंदर‚ बंदरिया‚ भालू‚ कुत्ते‚ उल्लू के पट्ठे‚ हरामखोर आदि संबोधन से संबोधित किया जाता है। महिला जिला अवर निबंधक को ‘बंदरिया’ कहा गया।’
आखिर‚ पाठक किस दंभ में हैं कि गाली–गलौज से परहेज नहीं करते। एक वरिष्ठ पदाधिकारी के नाते उन्हें यह भान जरूर होगा कि यह कृत्य भारतीय दंड संहिता की दृष्टि में अपराध है। आरोपों की पुष्टि पर आईपीसी की धाराएं उन पर भी लागू होंगी। ‘बिहारियों को सड़क पर चलने का शऊर नहीं’ कहने वाले पाठक ने क्या कभी सड़क पर शऊर से चलने का क्या कोई अभियान भी चलाया हैॽ अपने विभाग में नवोन्मेष की कितनी पहल उन्होंने कीॽ क्या निबंधन विभाग में भ्रष्टाचार खत्म कर पाएॽ खैर! बिहार सरकार को पाठक प्रकरण में पक्ष–विपक्ष सहित बिहारवासियों के समक्ष उदाहरण प्रस्तुत करने की जरूरत है कि देश–विदेश में अपनी बुद्धि‚ कौशल और नेतृत्व क्षमता का लोहा मनवाने वाले बिहारियों को अपनी अहं की तुष्टि के लिए कोई अपशब्द नहीं बोल सकता। सरकार को ऐसे गालीबाज अफसर के लिए ऐसा कड़़ा रुख दिखाना चाहिए जो नजीर बन सके।