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खेलों में पैसे की बरसात ने खेलों की पहली वाली पवित्रता को खत्म कर दिया ,………..

UB India News by UB India News
January 29, 2023
in खास खबर, खेल
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खेलों में पैसे की बरसात ने खेलों की पहली वाली पवित्रता को खत्म कर दिया ,………..
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पिछले रविवार को देश के करोड़ों हॉकी चाहने वालों का सपना तार–तार हो गया। सबको उम्मीद थी कि १९७५ के बाद भारत फिर से हॉकी वर्ल्ड़ कप को जीतने में कामयाब हो जाएगा। पर यह हो न सका।
ओडिशा में खेले जा रहे हॉकी वर्ल्ड़ कप में न्यूजीलैंड़ ने पेनाल्टी शूटआउट में भारत को हराकर क्वार्टरफाइनल में जगह बना ली और भारत खिताबी दौड़ से बाहर हो गया। दरअसल‚ टोक्यो ओलंपिक खेलों में कांस्य पदक जीतने वाली भारतीय टीम से आशा की किरण इसलिए नजर आ रही थी‚ क्योंकि; उसका पिछले ओलंपिक खेलों में सराहनीय प्रदर्शन रहा था। कहना होगा कि भारत की महिला और पुरुष हॉकी टीमों ने टोक्यो ओलंपिक खेलों में बेहतर प्रदर्शन किया था। भारत के हॉकी प्रेमियों को लंबे अंतराल के बाद इतना शानदार प्रदर्शन देखने को मिला था अपने खिलाडि़यों से। पर चालू वर्ल्ड़ कप में हमारी हॉकी टीम का खेल बेहद औसत दर्जे का रहा। यह समझ में नहीं आता कि किस आधार पर और किस समय से ओलंपिक में कांस्य पदक जितने वाले टीम से पांच–छह खिलाडियों को टीम से बाहर कर दिया गयाॽ कहीं इसमें भ्रष्टाचार का प्रदर्शन तो नहीं हुआॽ अगर नहीं तो ओलंपिक जीतने वाली टीम के लगभग आधे खिलाडियों को बाहर करने की वजह क्या थी।

इस वर्ल्ड़ कप के शुरू होने से पहले १९७५ में अंतिम बार वर्ल्ड़ चैंपियन बनी भारतीय टीम के गोलकीपर अशोक दीवान ने राउरकेला रवाना होने से पहले कहा था कि उन्हें उम्मीद है कि हम चैंपियन बनेंगे। उनके साथ दादा ध्यानचंद के पुत्र और १९७५ के वर्ल्ड़ कप के फाइनल मैच में पाकिस्तान पर विजयी गोल दागने वाले अशोक कुमार भी थे। पर उम्मीदें और प्रार्थनाएं काम नहीं आइ। काम कैसे आतीं। हमने कतई स्तरीय खेल नहीं खेला। एक बात तो कहना होगा कि भारत जब हॉकी में ओलंपिक या विश्व चैंपियन हुआ करता था तब भारत के पास विदेशी टीमों के मुकाबले अच्छी सुख–सुविधाएं बहुत कम हुआ करती थीं। हमारे पास सीमित साधन थे लेकिन खिलाडि़यों में कला‚ दमखम और जज्बा आला हुआ करता था‚ आज ग्लैमर‚ पैसा‚ सब कुछ होते हुए भी हमारे खिलाडि़यों में जीत का जज्बे और तकनीक की कमी है। चालू वर्ल्ड़ कप में हमारी हॉकी टीम ने कोई उल्लेखनीय प्रदर्शन नहीं किया। यकीन मानिए कि वेल्स के खिलाफ लचर प्रदर्शन से ही भारतीय हॉकी प्रेमियों में निराशा छा गई थी। भारतीय टीम जैसे–तैसे प्री क्वार्टरफाइनल में आ गई। प्री–क्वार्टरफाइनल मैच में अच्छी–खासी बढ़त के बावजूद हम हार गए। हमारा खेल बेहद सुस्त और रक्षात्मक रहा। कप्तान हरमनप्रीत सिंह का नेतृत्व भी दोयम दर्जे का ही रहा। न अग्रिम पंक्ति में कोई सामंजस्य और न रक्षा पंक्ति में कोई तालमेल। सब बस खानापूÌत करने और टाइम बर्बाद करने के लिए ही खेल रहे थे हमारे खिलाड़ी। न्यूजीलैंड़ हम से बेहतर खेली और इसीलिए जीती। दुख होता है जब बरसों बाद हॉकी को ऊपर उठाने की कोशिश करने वालों कोॽ मायूस होना पड़ता है।

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काश‚ हमारी टीम ने मलयेशिया में १९७५ में खेली गई विश्व कप हॉकी चैंपियनिशप के सेमीफाइनल तथा फाइनल मैचों की टीवी रिकॉÌडंग को ही देख लिया होता। दादा ध्यानचंद के सुपुत्र अशोक कुमार ने ही १५ मार्च‚ १९७५ को पाकिस्तान के खिलाफ लाजवाब फील्ड गोल दाग कर विजय दिलवाई थी। उस गोल को भारत के लाखों हॉकी प्रेमी अब भी याद करते हैं। पहला गोल सुरजीत सिंह ने किया था। अशोक कुमार १९७१ और १९७३ के विश्व कप में भाग लेने वाली भारतीय टीमों में भी थे। भारत का दोनों दफा बेहतरीन प्रदर्शन रहा था। भारत को १९७१ में कांस्य और १९७३ में चांदी का पदक जीतने में सफलता मिली थी। पर देश निराश था क्योंकि सबको स्वर्ण पदक की उम्मीद थी। एक बार अशोक कुमार बता रहे थे कि जब भारतीय टीम १९७५ का वर्ल्ड़ कप खेलने मलयेशिया पहुंची तो वहां पर बसे हुए हजारों भारतवंशी हमें अभ्यास करते हुए देखने के लिए आते थे। वे सब हमें चीयर कर रहे थे। तब सारी टीम हर हालत में चैंपियन बनने का संकल्प लेकर ही गई थी। भारत ने विश्व कप जीतकर सारी दुनिया में तहलका मचा दिया था। भारत ने एक तरह से उन ज्ञानियों को गलत साबित करा था जिन्होंने भविष्यवाणी कर दी थी कि हम कभी विश्व विजेता बन ही नहीं सकते।

क्या हमारी इस टीम में इस बार भी वर्ल्ड़ कप जीतने का जज्बा थाॽ भारतीय टीम के वर्ल्ड़ कप के सभी मैचों के प्रदर्शन को देखकर साफ लग रहा था कि इस टीम ने १९७५ की टीम के खिलाडि़यों से कुछ नहीं सीखा। इनमें जीतने के लिए जरूरी दमखम ही नहीं था। १९७५ की विश्व विजयी टीम में फुल बैक असलम शेर खान भी थे। विरोधी टीम की आक्रामक पंक्ति के लिए गठीले बदन वाले असलम को छका कर आगे बढ़ना लगभग असंभव था। उन्होंने सेमीफाइनल मैच में मेजबान मलयेशिया के खिलाफ मैच के अंतिम पलों में बराबरी का गोल किया था। भारत १–२ से मैच में पिछड़ रहा था। तब भारत को एक पेनल्टी कॉनर्र मिला। कुआलालंपुर के मर्डेका स्टेडियम में हजारों भारतवंशी ईश्वर से प्रार्थना कर रहे थे कि भारत मैच में किसी तरह से बराबरी कर ले। उस मैच की आकाशवाणी से कमेंट्री कर रहे थे जसदेव सिंह। वे बताते थे कि जब भारत को पेनल्टी शॉट मिला तब गोविंदा के शॉट को अजीतपाल ने रोका और फिर रहा अयूब शॉट असलम शेर खान का। उनके शॉट को मलयेशिया के खिलाड़ी रोकने में असफल रहे। भारत ने बराबरी करने के बाद एक और गोल करके मैच जीता और फाइनल में प्रवेश किया।

मुझे कभी–कभी लगता है कि खेलों में पैसे की बरसात ने खेलों की पहली वाली पवित्रता को खत्म कर दिया है। पहले खिलाड़ी देश के सम्मान के लिए जीतने के लिए जान लगा दिया करते थे। दादा ध्यानचंद के परिवार वालों के पास उनका अंतिम दिनों में श्रेष्ठ इलाज करवाने तक के लिए पैसा नहीं था। तब राजधानी के शिवाजी स्टेडियम में एक बेनिफिट हॉकी मैच हुआ था पर उसी दौरान उनका एम्स में निधन हो गया था। इस तरह की न जाने कितनी कहानियां यहां–वहां बिखरी पड़ी हैं। कुल मिलाकर बात यह है कि जीत जज्बे से होती है। उसका हमारे खिलाडि़यों में इसका अभाव था। जज्बे का जुनून फूंकते हैं‚ कोच और पदाधिकारी या तो व्यस्त थे‚ या मस्त थे।

मुझे कभी–कभी लगता है कि खेलों में पैसे की बरसात ने खेलों की पहली वाली पवित्रता को खत्म कर दिया है। पहले खिलाड़ी देश के सम्मान के लिए जीतने के लिए जान लगा दिया करते थे। दादा ध्यानचंद के परिवार वालों के पास उनका अंतिम दिनों में श्रेष्ठ इलाज करवाने तक के लिए पैसा नहीं था। तब राजधानी के शिवाजी स्टेडियम में एक बेनिफिट हॉकी मैच हुआ था पर उसी दौरान उनका एम्स में निधन हो गया था। इस तरह की न जाने कितनी कहानियां यहां–वहां बिखरी पड़ी हैं। कुल मिलाकर बात यह है कि जीत जज्बे से होती है। उसका हमारे खिलाडि़यों में इसका अभाव था। जज्बे का जुनून फूंकते हैं‚ कोच और पदाधिकारी या तो व्यस्त थे‚ या मस्त थे

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