सिंधु नदी के जल के उपयोग को लेकर भारत और पाकिस्तान में एक नये विवाद की शुरुआत हुई है। यह ऐसे समय हो रहा है जब शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) का विदेश मंत्रियों की बैठक में भाग लेने के लिए भारत ने पाकिस्तान को आमंत्रित किया है। संयुक्त राष्ट्र परिसर में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के खिलाफ जहर उगलने वाले बिलावल भुट्टो मई महीने में गोवा में होने वाली एससीओ की बैठक में भाग लेंगे या नहीं‚ यह स्पष्ट नहीं है। पाकिस्तान की ओर से यह कहा गया है कि वह समय आने पर इस संबंध में फैसला करेगा। सामान्य हालात में पाकिस्तान के विदेश मंत्री की भारत यात्रा द्विपक्षीय संबंधों में आए गतिरोध को तोड़़ने का अवसर बन सकती थी। लेकिन मौजूदा हालात में बिलावल भुट्टो को यात्रा का निमंत्रण देकर भारत ने केवल मेजबान की औपचारिकता निभाई है। इस वर्ष भारत को एससीओ की शिखर वार्ता की मेजबानी करनी है। इसी जिम्मेदारी का निर्वहन करते हुए प्रधानमंत्री मोदी ने बाली (इंड़ोनेशिया) में चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग से हाथ मिलाया था।
सिंधु जल समझौते में संशोधन करने के लिए भारत ने पाकिस्तान को जो नोटिस भेजा है‚ उसका जवाब पड़़ोसी देश को ९० दिन में देना है। इस्लामाबाद से मिले संकेतों के अनुसार पाकिस्तान भारत के इस आग्रह को नामंजूर कर देगा। समझोते के अनुसार किसी भी संशोधन के लिए दोनों देशों की सहमति जरूरी है। वास्तव में छह दशक पहले हुए इस समझौते में भारत ने अपने हितों का बलिदान करते हुए बहुत उदारता का प्रदर्शन किया था। रणनीतिक विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी के अनुसार सिंधु जल समझौता दुनिया में जल वितरण का सबसे उदार समझौता है। इसके तहत सिंधु नदी के बेसिन जल के केवल बीस प्रतिशत का उपयोग भारत कर सकता है। भारत की उदारता को नजरअंदाज कर पाकिस्तान जम्मू–कश्मीर में जलविद्युत परियोजनाओं का विरोध कर रहा है। चेलानी के अनुसार यह भारत के खिलाफ ‘जल युद्ध’ जैसा है। इस संबंध में विश्व बैंक की भूमिका भी संदिग्ध है।
विशेषज्ञों के अनुसार अंतरराष्ट्रीय कानूनों के मुताबिक सीमा पार आतंकवाद को आधार बनाते हुए भारत इस समझौते को एकतरफा रूप से निलंबित कर सकता है। जिस भावना से यह समझौता किया गया था‚ पाकिस्तान ने निरंतर उसकी अवहेलना की है। भारत की कार्रवाई के संबंध में पूर्व विदेश सचिव कंवल सिब्बल ने कहा कि सिंधु जल समझौता औपनिवेशिक तंत्र से जुड़़ा है। इसके जरिये पाकिस्तान को सिंधु नदी का ८० फीसद हिस्सा मिलता है। भारत ने पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद के बावजूद अपनी ओर से कभी प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। देर से ही सही अब भारत ने कदम उठाया है।
पाकिस्तान में पिछले वर्ष बाढ़ से भारी तबाही पाई थी। इस ‘जल प्रलय’ का दुखड़़ा पाकिस्तान ने दुनिया भर में रोया था। भारत ने पड़़ोसी धर्म का निर्वाह करते हुए जब सहायता की पेशकश की थी तब पाकिस्तान ने उसे धृष्टतापूर्वक ठुकरा दिया था। वास्तव में पाकिस्तान के हुक्मरानों के लिए देश में जल प्रबंधन कोई प्राथमिकता नहीं है। देश के अवाम को बाढ़ या सूखे से कैसे बचाया जाए इसके लिए कोई कारगर उपाय करने की बजाय वे इस बात का ढिंढोरा पीटेंगे कि भारत पाकिस्तान को सिंधु जल से वंचित करना चाहता है। नरेन्द्र मोदी सरकार ने जम्मू–कश्मीर में विकास कार्यों को नई गति दी है।
इसी के तहत जल विद्युत परियोजनाओं को संचालित करने का प्रयास किया जा रहा है। पाकिस्तान सरकार यदि सहयोग का रवैया अपनाए तो इससे पड़़ोसी देश में पर्यावरण संबंधी आपदाओं पर भी काबू पाया जा सकता है‚ वहीं नदियों के समूचे जल उपयोग से समृद्धि और विकास सुनिश्चित हो सकता है। सिंधु जल समझौते के अनुसार दोनों देशों के बीच कोई विवाद पैदा होने पर निष्पक्ष विशेषज्ञों की नियुक्ति के जरिये मामले को सुलझाने अथवा हेग स्थित मध्स्थता न्यायालय में मामला पेश करने का प्रावधान है। लेकिन यंह प्रक्रिया बहुत जटिल है और इसमें लंबा समय लग सकता है।
रणनीतिक विशेषज्ञ ब्रह्म चेलानी के अनुसार सिंधु जल समझौता दुनिया में जल वितरण का सबसे उदार समझौता है। इसके तहत सिंधु नदी के बेसिन जल के केवल बीस प्रतिशत का उपयोग भारत कर सकता है। भारत की उदारता को नजरअंदाज कर पाकिस्तान जम्मू–कश्मीर में जलविद्युत परियोजनाओं का विरोध कर रहा है॥