अपना मीडिया सफलता का यार है। वह ‘जो जीता वही सिकंदर’ के फारमूले पर चलता है! कुछ दिन पहले फिल्म ‘पठान’ का ‘टीजर’ जैसे ही आया वैसे ही उसका विरोध शुरू हो गया। इसकी चरचा हम इस कॉलम में कर चुके हैं।
जरा याद करें पठान के ‘टीजर’ को देख आपत्ति का पहला गोला एमपी के एक मंत्री जी दागते हैं फिर कई हिंदू समूह ‘बॉयकाट बॉयकाट’ और ‘बैन’ की मांग करने लगते हैं‚ जबकि ‘पठानवादी’ यह भी कहते दिखते हैं कि जिनको देखना हो देखें‚ बैन की मांग कलात्मक आजादी के अध्किार के खिलाफ है। फिर अपनी ‘रिलीज’ के ऐन पहले चैनलों में पठान का एक लंबा ‘प्रोमो’ आने लगता है‚ जिसमें ‘केसरिया बिकिनी डांस’ तो है ही‚ मारधाड भी है और शाहरुख का एक देशभक्तिवादी डॉयलाग भी है कि ‘एक सोल्जर यह नहीं पूछता कि देश ने उसके लिए क्या किया बल्कि ये पूछता है कि वह देश के लिए क्या कर सकता है.’
हमारी नजर में इस एक डॉयलाग ने पठान को हिट कर दिया! हो सकता है यह भी एक रणनीति के तहत किया गया हो। इस ‘डायलाग’ को पहले ‘टीजर’ में जानबूझकर नहीं डालकर रिलीज से ऐन पहले डाला हो! स्थिति जो हो‚ लेकिन यह एक डॉयलाग ‘पठान’ की छवि को एकदम बदलने वाला रहा। उसने पठान (हीरो शाहरुख) को देश के लिए कुर्बानी देने वाले देशभक्त बना दिया। कहने की जरूरत नहीं कि आज के देशप्रेमवादी दौर में यह छवि एकदम फिट बैठती है और बिकिनी के ‘बेशर्म रंग’ पर भारी पडती है। संभवतः इसी कारण पहले दो दिन में यह फिल्म दो सौ करोड कमाकर दक्षिण की सुपरहिट फिल्म ‘केजीएफ’ का रिकार्ड तोड देती है! बाक्स आफिस पर हिट होते ही शाहरुख खान व पठान बॉलीवुड के उद्धारकर्ता माने जाने लगते हैं। चैनलों चर्चाओं का रुख भी बदल जाता है। यों‚ जिन दिनों ‘पठान’ का विरोध किया जा रहा था उन्हीं दिनों एक चैनल ने उसका सीधे पक्ष भी लिया था कि ‘जब सेंसर ने पास कर दी तो ये कौन होते हैं उसका प्रदर्शन रोकने या बॉयकाट करने वालेॽ’ शुरू में पठान का विरोध और हिट होते ही विरोध का गायब हो जाना भी बहुत कुछ कहता है। कई लोग पूछते दिखते हैं कि क्या पठान का विरोध भी प्रायोजित थाॽ मीडिया व सोशल मीडिया में पठान के सुपर हिट होने के पीछे दो–तीन कारण गिनाए जा रहे हैं पहला यह कि पठान अपनी क्विालिटी के कारण हिट हुई‚ दूसरा यह कि पठान को हिट कराया गया‚ उसके टिकट थोक में खरीदे गए‚ तीसरी यह कि मीडिया को पठान के पक्ष में लाया गया! कहने की जरूरत नहीं कि ‘पठान’ पहली फिल्म रही जिसने अपने विरोध पर भी जीत हासिल की लेकिन यह ‘जीत’ इतनी सहज और सरल नहीं दिखती। इस जीत के एक कारक के रूप में हम उस बयान को देख सकते हैं‚ जिसे रिलीज के बाद गुजरात के बॉयकाटियों ने दिया कि चूंकि ‘पठान’ में वांछित संशोधन कर दिए गए हैं इसलिए उसका विरोध समाप्त किया जा रहा है‚ जबकि अन्यत्र कुछ हिंदू समूह विरोध करते रहे।
इसका एक अर्थ यह भी है कि पिछले दिनों जिन हिंदू समूहों ने बात बात पर फिल्मों का विरोध करने की राजनीति बना ली थी वह पब्लिक को पसंद नहीं थी और वक्त रहते हिंदुत्व के बडे नेताओं ने इस मर्म को समझा! हमारी समझ में पिछले दिनों संघ के मोहन भागवत द्वारा अल्पसंख्यकों के साथ ‘संवाद’ करना और पठान–विवाद के बीच पीएम द्वारा भाजपा नेताओं को प्रबोध कि सिनेमा पर अनावश्यक टिप्पणी करने से बचें‚ ने भी चालू हिंदू कट्टरता में कुछ पानी मिलाया होगा और जिसने ‘बॉयकाटवादियों’ को ढीला किया होगा! लेकिन पठान के हिट होने के पीछे एक और कारण हो सकता है और वह है बॉलीवुड के ‘अंध्विरोध’ के भाव का क्षरित होते जाना!॥ यह भी एक चैनल की बहस में साफ हुआ जब एक पेनलिस्ट ने कहा कि इस तरह के विरोध ने पठान के प्रति कुछ हमदर्दी ही पैदा की‚ जिसकी वजह से वह हिट हुई। इसके अलावा इन दिनों संकटापन्न बॉलीवुड को बचाने का भाव भी अपना काम करता नजर आया जिसे एक चरचा में एक फिल्म निर्देशक ने यों कहा कि कोविड के कारण नुकसान में रहे बॉलीवुड़ को अगर हम नहीं बचाएंगे तो एक दिन वो डूब जाएगा.और अंत में‚ बॉयकाटियों के बावजूद पठान का हिट होना यह भी बताता है कि अपनी पब्लिक किसी भी तरह का ‘अतिवाद’ पसंद नहीं करती। देर–सबेर वह ‘बीच का रास्ता’ निकाल ही लेती है। पठान के साथ भी यही हुआ है!॥ मीडिया व सोशल मीडिया में पठान के सुपर हिट होने के पीछे दो–तीन कारण गिनाए जा रहे हैंः पहला यह कि पठान अपनी क्विालिटी के कारण हिट हुई‚ दूसरा यह कि पठान को हिट कराया गया‚ उसके टिकट थोक में खरीदे गए‚ तीसरी यह कि मीडिया को पठान के पक्ष में लाया गया