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सबक लेने की जरूरत……….

UB India News by UB India News
January 10, 2023
in कारोबार, खास खबर, ब्लॉग
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सबक लेने की जरूरत……….
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फंड संकट के चलते दुनिया के दूसरे सबसे बड़े वर्चुअल डिजिटल एसेट्स (वीडीए) ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म एफटीएक्स ने ११ नवम्बर को दिवालियापन के लिए आवेदन किया। हाल के समय में क्रिप्टो मार्केट में धराशायी होने का यह बड़ा उदाहरण है। २०१९ में स्थापित इस क्रिप्टो एक्सचेंज में बड़ी तेजी से बढोतरी हुई। एक समय इसका मूल्य ३२ अरब डॉलर तक पहुंच गया था। इतनी अधिक वैल्यू होने के बावजूद एफटीएक्स के पतन के मूल में भ्रष्टाचार और अदूरदर्शिता थी‚ जो लंबे समय से मौजूद थी।

सुरक्षा एजेंसियां इस मामले की जांच कर रही हैं। हालांकि जो नये साक्ष्य सामने आए हैं‚ उससे पता चलता है कि एफटीएक्स ने ग्राहकों के फंड का दुरु पयोग किया‚ लोन का विस्तार कर संबद्ध संस्थानों के घाटों को कवर करने की कोशिश की। यह पूरी प्रक्रिया एफटीएक्स द्वारा निर्मित टोकन समर्थित थी। जैसे ही यह जानकारी सार्वजनिक हुई ग्राहकों ने बड़े पैमाने पर फंड की निकासी शुरू कर दी। परिणामस्वरूप दोनों‚ कंपनी एवं उसकी सहायक कंपनी दिवालिया हो गई। ठीक इसी समय आग में घी डालने का काम किया १ बिलियन यूएस डॉलर के टोकन हैक किए जाने की घटना ने। ग्राहकों के लगभग १० बिलियन यूएस डॉलर गायब हैं। हालांकि इससे हुए नुकसान का स्पष्ट आकलन अभी तक नहीं हो पाया है।

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जो लोग क्रिप्टो एक्सचेंज एफटीएक्स के धराशायी होने से प्रभावित नहीं हुए अब वे लोग इसमें सुधार चाहते हैं। उन्हें उम्मीद है कि जल्द ही इस दिशा में प्रयास तेज होगा। क्रिप्टो एक्सचेंज जैसे बाइनेंस‚ जेबपे और बाइबिट फंड की निगरानी आदि के लिए बहुत जल्द मर्कल ट्री के जरिए प्रूफ आफ रिर्जव लागू करेंगे। यह एक ऐसा तरीका है‚ जिसके जरिए ग्राहक अपने फंड की निगरानी कर सकेंगे। इससे बाजार में अभूतपूर्व पारदर्शिता आएगी। हालांकि एफटीएक्स प्रकरण से एक महत्वपूर्ण सबक यह भी मिलता है कि इस तरह के पतन को रोकने में निश्चित अवधि में किया जाने वाला ऑडिट नाकाफी है। क्योंकि यह संपत्ति के बारे में बताता है ना कि देनदारियों को। प्लेटफार्म को और अधिक मजबूत और सुरक्षित बनाने के लिए ‘प्रूफ ऑफ साल्वेंसी’ सरीखे प्रोटोकाल मदद कर सकते हैं। सच तो यह है कि एफटीएक्स के साथ जो हुआ उसका वास्तव में वीडीए से कम लेना देना था। फिर एफटीएक्स के पतन को वीडीए का एनरॉन घोटाला क्यों कहा जा रहा हैॽ आपको याद होगा कि एनरॉन के अधिकारियों ने ९० के दशक में कंपनी के अरबों डॉलर के श्रण (विफल परियोजनाओं और खराब सौदों से) को भ्रष्टाचार और अनैतिक ऑडिट के जरिए तब तक छिपाए रखा जबतक कि खुद कंपनी ने २००१ में दिवालियापन के लिए आवेदन नहीं किया। इस तरह के मामले भारत में भी हुए हैं। १९९६ में इंडियन बैंक का लोन घोटाला भी ऐसा ही था। जॉन जे रे तृतीय‚ जिन्हें एनरॉन द्वारा पीछे छोड़ी गई गंदगी को साफ करने का काम सौंपा गया था को अब एफटीएक्स का नया सीईओ नियुक्त किया गया है। वीडीए उद्योग में शेयरों के समान टोकन बनाए जाते हैं। यह प्रक्रिया इसके धारकों को बहुत कम या न के बराबर गारंटीकृत मूल्य प्रदान करती है और इसीलिए इसके दुरुपयोग की संभावना भी अधिक रहती है। वास्तव में ये एक्सचेंज टोकन आईसीओ (इनिशियल क्वाइन आफिरंग) के समान होते हैं। इनके लिए भी समान नियामक सुरक्षा उपायों की आवश्यकता है। एफटीएक्स के पतन के चलते संस्थागत निवेशकों का विश्वास भी डगमगा गया है। अन्य मार्केट की तरह इसमें भी निवेशकों को सुरक्षा प्रदान किया जाना चाहिए। अधिकांश देशों में बैंकों में जमा धनराशि की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए एक नियामक निरीक्षण की व्यवस्था होती है‚ लेकिन वीडीए में निवेशकों के लिए इस तरह की सुविधाओं का अभाव है। एफटीएक्स सरीखे बड़े प्लेटफार्म पर निगरानी के लिए एक क्रॉस बार्डर समाधान विकसित किया जाना चाहिए।

अंतरराष्ट्रीय संगठनों पर नियंत्रण में कठिनाई की बात करें तो एफटीएक्स का वित्तीय पतन निवेशकों को केंद्रीकृत एक्सचेंजों से दूर और विकेंद्रीकृत–वित्त (डेफी) प्रोटोकॉल की तरफ ले जा रहा है। नीति निर्माताओं के लिए जोखिम को कम करने का एक तरीका यह हो सकता है कि उपयोगकर्ताओं को घरेलू प्लेटफार्म पर व्यापार करने के लिए प्रोत्साहित किया जाए‚ जिनमें से कई उपयोगकर्ताओं की सुरक्षा के लिए प्रतिबद्ध होते हैं। भारत में इसका एक अच्छा उदाहरण है– वीडीएस यानी क्रिप्टो करेंसी‚ एनएफटी आदि के ट्रांसफर पर एक प्रतिशत टीडीएस लगाने के फैसले के बाद भारतीय बाजार प्रभावित हुआ। नतीजा यह निकला कि बडी संख्या में भारतीय निवेशकों ने अंतरराष्ट्रीय प्लेटफॉर्म जैसे कि बाइनेंस‚ एफटीएक्स की तरफ रुख किया जो कि समान नियमों का पालन नहीं करते हैं। कोइंगेको के हालिया अध्ययन से यह पता चलता है कि एफटीएक्स पतन से प्रभावित होने वाले उपयोगकर्ताओं के मामले में भारत आठवें नंबर पर है। एफटीएक्स पहला हाई–प्रोफाइल अंतरराष्ट्रीय एक्सचेंज नहीं था जो विफल हुआ‚ ना ही यह आखिरी होगा। ऐसे में वैश्विक स्तर पर पारदर्शिता और बढाने की जरूरत है। नहीं तो भविष्य में इस तरह के मामले सामने आते रहेंगे।

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