कुछ अजीब‚ हैरतंगेज और स्तब्ध कर देने वाली घटनाओं से देश आजकल हलकान है। 27 नवम्बर को एयर इंडिया की फ्लाइट में घटी घटना सकते में डालने वाली है। न्यूयॉर्क से दिल्ली आ रही फ्लाइट के एक यात्री ने सभी सीमा पार करते हुए एक महिला यात्री के शरीर पर मूत्र त्याग कर दिया। घृणित और शर्मशार कर देने वाली इस घटना ने समूचे देश को चौंकाया है। पायलट ने एयर ट्रैफिक कंट्रोल को जब दिल्ली पहुंच कर घटना की जानकारी दी तब जाकर मीडिया सहित दिल्ली पुलिस सक्रिय हो पाई। हालांकि दोषी यात्री को उसकी नौकरी से निलंबित कर दिया है और उसकी हवाई यात्रा पर भी कुछ दिनों के लिए रोक लगा दी गई है। पर क्या इतना भर कर देना पर्याप्त है।
ऐसी घटनाएं नई नहीं हैं। महिलाओं के साथ दुर्व्यवहार से जुड़े आंकड़ों की मानें तो मामले और भी चौंकाते हैं। २०२० में जारी विश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार विश्व में १८ वर्ष से कम उम्र की ७.९ फीसद लड़कियां एवं १९.७ फीसद औरतें गाहे–बगाहे यौन शोषण की शिकार हुइ। २०१७ से २०२० के बीच तीन साल की अवधि में यौन उत्पीड़न के २४ लाख से अधिक मामले अकेले भारत में दर्ज किए गए। चौंकाने वाली बात यह कि ऐसे ८० प्रतिशत मामले या तो रिपोर्ट नहीं हुए और अगर हुए भी तो उन पर फौरी करवाई नहीं हुई। यूनिसेफ द्वारा २००५ से २०१३ के बीच किए गए अध्ययन से पता चलता है कि भारत की १० प्रतिशत लड़कियों को १० से १४ वर्ष से कम उम्र में यौन दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ता है। अधेड़ और बुजुर्ग महिलाओं की संख्या तो छोड़ ही दें। देश में हर दिन महिलाएं कहीं–न–कहीं यौन दुर्व्यवहार का सामना कर रही हैं। आखिर‚ हम किस कुंठित समाज में जी रहे हैं‚ जहां महिलाओं को अपने सम्मान की रक्षा के लिए पुलिस‚ समाज‚ और सरकार के समक्ष गिड़़गिड़़ाना पड़ता है।
सवाल कई हैं पर संबंधित जवाब अनुत्तरित हैं। पहला सवाल यह कि क्या हवाई यात्रा के दौरान किसी को भी नशे की स्थिति में यात्रा करने की अनुमति है‚ और दूसरा कि क्या क्रू मेंबर्स को ऐसी घटनाओं से निपटने का प्रभावी प्रशिक्षण नहीं दिया जाता। तीसरा सबसे अहम और संवेदनशील प्रश्न यह कि क्या हमारा समाज इतना असंवेदनशील और भीरू हो गया है कि किसी महिला के साथ हो रहे दुर्व्यवहार को चुपचाप आंखें बंद कर देखता रहता है‚ हस्तक्षेप करने का पौरु ष तक नहीं दिखा सकता। सवाल सिर्फ एयर इंडिया की पीडि़त महिला कर ही नहीं‚ भारत की हर उस महिला की पीड़ा है‚ जो घर से लेकर सड़कों तक दुराचार‚ छेड़छाड़ और यौन दुर्व्यवहार की मानसिक पीड़ा झेल रही है। बेशर्मी से घूम रहे ऐसे लोगों से कानून क्यों नहीं निपट रहा। क्या उनकी नियति अपमान‚ छेड़छाड़ और दुर्भावना सहने की हो गई है। क्या ऐसे में महिला सशक्तिकरण‚ समरसता और संतुलन साधने की बातें कोरी नहीं लगतीं। ईमानदारी से सोचें तो क्या हम किताबी दार्शनिकता से ऊपर उठ पाए हैं। ऐसे सवालों के जवाब हमें अपने परिवार‚ परवरिश और पालन के तरीके में ढूंढने होंगे। क्या महिलाओं को सम्मान और आदर देने की सीख की शुरु आत घर से नहीं होनी चाहिए। जरूरी है कि बचपन से ही घर में लड़कों को लडकियों के साथ तमीज से पेश आने‚ बुरी और घृणित आदतें सुधारने और यौन दुर्व्यवहार से बचने जैसे जीवन कौशल से बच्चों को रु ब रू नहीं कराना चाहिए। जाहिर है अगर सुoढ़ नींव होगी तो इमारत भी बुलंद होगी।