बिहार में आज से जाति और आर्थिक गणना शुरू हो गई है। पहले चरण में मकान की गिनती होगी। दूसरे चरण में जाति और आर्थिक गणना होगी। इसके लिए सरकार ने कर्मचारियों की ट्रेनिंग कराई गई है। पहला चरण 7 जनवरी से 21 जनवरी तक चलेगा। दूसरा चरण 1 अप्रैल से 30 अप्रैल तक चलेगा।
पटना में जिलाधिकारी चंद्रशेखर ने बैंक कॉलोनी से इसकी शुरुआत कराई। जिलाधिकारी चंद्रशेखर ने बताया कि हर गणना ब्लॉक में औसतन डेढ़ सौ घर रखे गए हैं जिसमें 700 की जनसंख्या है। छोटी इकाई बनाकर काम किया जा रहा है ताकि गलतियां कम से कम हों। उन्होंने बताया कि दूसरा चरण अप्रैल महीने में है। अभी गणना की डाटा एंट्री करेंगे। जो एप बन रहा है उसमें पहले से डाटा एंट्री रहेगा।
इसमें परिवार के मुखिया का नाम इसमें रहेगा। मकान नंबर कितना है आदि डिटेल पहले से रहेंगी। उसी ऐप से गणना कर्मी गणना करेंगे। जो बाहर रह रहे हैं या जिनके घर नहीं हैं उनकी गणना का भी इंतजाम किया गया है। कुछ लोग घुमंतू टाइप से अपनी आजीविका के लिए रहते हैं। इसको सेकंड फेज में करेंगे।
पटना में गणना कार्य की शुरुआत बैंक कॉलोनी के इमारत रिजवी अपार्टमेंट से की गई। इसमें रहने वाले डॉक्टर जफर कलाम अंजुम ने भास्कर को बताया कि सरकार जातीय आधार पर आंकड़े लेना चाहती है इससे पॉलिसी बनाने में सहायता होगी। हो सकता है सरकार इसके माध्यम से बेहतर पॉलिसी बना पाए। हम लोगों का कर्तव्य बनता है कि हम सरकार के इस कार्य में गणना कर्मियों की मदद करें।
इस जाति आधारित गणना के लिए 500 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है। ये आंकड़ा बढ़ भी सकता है। यह राशि बिहार आकस्मिकता निधि से दी जाएगी।
राज्य सरकार के स्तर पर अभी मकानों की कोई नंबरिंग नहीं की गई है। वोटर आईकार्ड में अलग, नगर निगम के होल्डिंग में अलग नंबर है। पंचायत स्तर पर मकानों की कोई नंबरिंग ही नहीं है। शहरी क्षेत्र में कुछ मोहल्लों में मकानों की नंबरिंग है भी तो वह हाउसिंग सोसायटी की ओर से दी गई है, न कि सरकार की ओर से।
अब सरकारी स्तर पर दिया गया नंबर ही सभी मकानों का स्थायी नंबर होगा जो पेन मार्कर या लाल रंग से लिखा जाएगा। इसे 2 मीटर की दूरी से पढ़ा जा सकेगा।
पहले चरण में यदि कोई मकान नंबरिंग में छूट जाता है या कोई नया मकान बन जाता है तो उसका नंबर बगल के नंबर के साथ ABCD या ऑब्लिक 123…आदि जोड़ कर किया जाएगा। इसे ऐसे समझें… यदि किसी मकान का नंबर 20 है और उसके बाद खाली जगह है। अगले मकान का नंबर 21 है। मकान नंबर 20 और 21 के बीच खाली जगह पर भविष्य में तीन नए मकान बनते हैं तो इनका नंबर 20A, 20B और 20C या 20/1, 20/2 या 20/3 होगा। मकानों की नंबरिंग, रोड और गली के आधार पर होगी।
इसे ऐसे समझें…
कृष्णा नगर रोड नंबर 1 में मकानों की नंबरिंग इस रोड के प्रवेश से शुरू होगी, जहां सड़क खत्म होगी वहां तक जाएगी। फिर वापसी में सड़क के दूसरे साइड के मकानों की नंबरिंग करते हुए प्रवेश पॉइंट पर ही समाप्त होगी। ऐसी प्रक्रिया गलियों में भी अपनाई जाएगी। अपार्टमेंट मोहल्ले की जिस गली में है, उस गली में जितने मकान के बाद अपार्टमेंट का नंबर आएगा वह उसका नंबर होगा। उसी के आधार पर उसमें बने सारे फ्लैट को नंबर दिया जाएगा। मसलन-अपार्टमेंट का नंबर यदि 11 है तो वहां के सभी फ्लैट को 11/1, 11/2, 11/3 जैसे नंबर दिए जाएंगे।
स्थायी और अस्थायी मकान की गणना होगी
पहले चरण में बिहार जाति आधारित गणना में 4 भाग में फॉर्म को भरा जाएगा। पहले में जिला का नाम और उसका कोड दिया गया है। फिर प्रखंड, नगर निकाय का नाम और उसका कोड दिया गया है। पंचायत का नाम और उसका कोड है। वार्ड संख्या उसका कोड है और गणना ब्लॉक नंबर और उप-ब्लॉक नंबर को भरना अनिवार्य है। इसके बाद जिनके स्थायी आवास है। उस मकान सूची के लिए 10 कैटेगरी में सवाल पूछे जाएंगे।
भवन संख्या, मकान संख्या, जिस उद्देश्य के लिए मकान का उपयोग किया जा रहा है, परिवार की संख्या, परिवार के मुखिया का नाम, परिवार में कुल सदस्यों की संख्या, परिवार का क्रम संख्या, यदि वह सदस्य नहीं है तो वह कब से यहां नहीं है, परिवार के मुखिया का हस्ताक्षर भरा जाएगा। वहीं, बेघर मकान का विवरण भी भरा जाएगा। भाग 4 में मकान सूची का कार्य पूरा होने के बाद फीडबैक रिपोर्ट भरा जाएगा।
दूसरे चरण में आर्थिक और जाति पूछी जाएगी
दूसरे चरण में बिहार सरकार जाति और आर्थिक दोनों सवाल करेगी। इसमें शिक्षा का स्तर, नौकरी (प्राइवेट, सरकारी, गजटेड, नन-गजटेड आदि) गाड़ी (कैटगरी), मोबाइल, किसी काम में दक्षता, आय के अन्य साधन, परिवार में कितने कमाने वाले सदस्य, एक व्यक्ति पर कितने आश्रित, मूल जाति, उप जाति, उप की उपजाति, गांव में जातियों की संख्या, जाति प्रमाण पत्र आदि की जानकारी हासिल की जाएगी।
ये जानकारी 25 से 30 की संख्या में होगी। इस दौरान किसी ने बताने में आना-कानी की तो तो पड़ोसी से उनके बारे में जानकारी ली जाएगी। जाति को लेकर किसी भी तरह से कोई कोताही नहीं बरती जाएगी।
500 करोड़ से अधिक का खर्च अनुमानित
जाति आधारित गणना कराने की जिम्मेदारी सामान्य प्रशासन विभाग को दी गई है। जिला स्तर पर जिला पदाधिकारी यानी डीएम इसके नोडल पदाधिकारी होंगे। सामान्य प्रशासन विभाग और जिला पदाधिकारी ग्राम स्तर, पंचायत स्तर और उच्च स्तर पर विभिन्न विभागों के अधीनस्थ कार्य करने वाले कर्मचारियों की सेवाएं इस कार्य में ले सकते हैं।
जाति आधारित गणना के दौरान आर्थिक स्थिति के सर्वेक्षण भी कराया जा रहा है। इसके लिए 500 करोड़ के खर्च का अनुमान है। ये बढ़ भी सकता है। जाति आधारित के समय-समय पर विधानसभा के विभिन्न दलों के नेताओं को अवगत कराया जाएगा।
आरजेडी और जदयू की मुख्य मांग रही है
जाति आधारित गणना की मुख्य मांग आरजेडी, जेडीयू और क्षेत्रीय पार्टियों की रही है। उनका दावा है कि ऐसा होने के बाद पिछड़े, अति पिछड़े वर्ग के लोगों की शैक्षणिक, सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति का पता चलेगा। उनकी बेहतरी के लिए मुनासिब नीति निर्धारण हो सकेगा।
सही संख्या और हालात की जानकारी के बाद ही उनके लिए वास्तविक कार्यक्रम बनाई जा सकती है। चूंकि यह फैसला तब लिया गया था जब जदयू भाजपा के साथ बिहार में सरकार में शामिल थी। उस समय बिहार भाजपा ने भी जाति आधारित गणना का समर्थन किया था, लेकिन बाद के दिनों में भाजपा सरकार से हट गई और यह मांग सिर्फ जदयू आरजेडी और तमाम क्षेत्रीय दलों की रह गई। हालांकि कांग्रेसी इनके साथ थे।
CM नीतीश कुमार चाहते थे कि जिस तरह से केंद्रीय जनगणना कराया जा रहा है। उसी में जातीय जनगणना कराया जाए, लेकिन केंद्र की भाजपा सरकार ने जातीय जनगणना कराने से इनकार कर दिया। मुख्यमंत्री ने अपने खर्च पर बिहार में जातीय जनगणना कराने का निर्णय लिया। इसका नोटिफिकेशन पिछले साल जून महीने में किया गया था।
इसका फायदा क्या…
इससे क्षेत्रीय दलों को लाभ मिलेगा। वो स्थानीय स्तर पर राजनीति को मजबूत कर सकते हैं, क्योंकि ओबीसी की राजनीति करने वालों को लगता है कि इस गणना से 50 फीसदी आरक्षण वाला बैरियर टूट सकता है। उनके आरक्षण का दायरा बढ़ सकता है।
अभी तक अनुमान के मुताबिक जातियों की जनसंख्या
आजादी के बाद पहली बार 1951 में जनगणना हुई। तब से अब तक हुई सभी 7 जनगणना में SC और ST का जातिगत डेटा पब्लिश होता है, लेकिन बाकी जातियों का डेटा इस तरह पब्लिश नहीं होता।
इस तरह का डेटा नहीं होने के कारण देश की OBC आबादी का ठीक-ठीक अनुमान नहीं लगाया जा सकता है। वीपी सिंह सरकार ने जिस मंडल कमीशन की सिफारिशों को लागू कर पिछड़ों को आरक्षण दिया, उसने भी 1931 की जनगणना को आधार मानकर देश में OBC की आबादी 52% मानी थी।
चुनाव के दौरान अलग-अलग पार्टियां अपने चुनावी सर्वे और अनुमान के आधार पर इस आंकड़े को कभी थोड़ा कम कभी थोड़ा ज्यादा करके आंकती रहती हैं। देश में SC और ST वर्ग को जो आरक्षण मिलता है उसका आधार उनकी आबादी है। लेकिन OBC आरक्षण का कोई मौजूदा आधार नहीं है। अगर जातिगत जनगणना होती है तो इसका एक ठोस आधार होगा। जनगणना के बाद उसकी संख्या के आधार पर आरक्षण को कम या ज्यादा करना पड़ेगा।
वहीं बिहार में शिक्षकों के बड़े संगठन ‘टीईटी-एसटीईटी उत्तीर्ण नियोजित शिक्षक संघ गोपगुट’ ने भी इसका विरोध किया है। तर्क यह दिया जा रहा है कि चूंकि गणना कार्य के लिए शिक्षकों को अलग से राशि दी जा रही है, इसलिए उन्हें स्कूल में पूरे समय बच्चों को पढ़ाने के बाद कार्य करना होगा।
इस फरमान से कई तरह के सवाल उठ रहे हैं। साथ ही विरोध भी हो रहा है। सरकार को समर्थन दे रही पार्टी भाकपा-माले ने जाति आधारित गणना का समर्थन तो किया है, लेकिन शिक्षकों को इस कार्य में लगाने का विरोध किया है।
शिक्षकों की ओर से उठाए जा रहे 5 सवाल
- सरकार के यहां कर्मियों के लिए कार्य के घंटे का निर्धारण है कि नहीं?
- 8 घंटे तक स्कूल में पढ़ाने के बाद क्या शिक्षकों के अंदर इतनी एनर्जी बचेगी कि वे गणना कार्य निबटा पाएंगे?
- जाति आधारित गणना एक दिन का काम नहीं है कि ओवर टाइम करा लिया जाए। यह कई दिनों तक चलेगा। ऐसे में स्कूलों में पढ़ाने के साथ गणना कराने का काम कितना मानवीय है?
- सरकार ने पिछले 10-12 वर्षों से नियोजित शिक्षकों का ट्रांसफर नहीं किया है। इसमें लगभग आधी संख्या महिला शिक्षकों की है। कई शिक्षिकाएं कई किमी की दूरी तय कर कार्य स्थल पर आती हैं। इसमें कई दिव्यांग भी हैं, जिनका ट्रांसफर नहीं हो रहा। क्या ऐसे शिक्षकों को परेशानी नहीं होगी?
- जाति आधारित गणना कार्य में जिन शिक्षकों को लगाया गया है, उनमें से ज्यादातर को स्कूल के निकट का क्षेत्र जनगणना कार्य के लिए नहीं दिया गया है, क्यों?