ये केवल भाजपा के शीर्ष नेताओं की लगातार यात्रा का ही प्रतिफलन नहीं है, नीतीश कुमार की समाधान यात्रा। इस यात्रा के पीछे खुद नीतीश कुमार के भीतर कुछ द्वंद्व चल रहे हैं। एक समाजवादी नेता की तरह ही नीतीश कुमार का भी शगल रहा है यात्रा। यूं ही नहीं, अब तक नीतीश कुमार 16 यात्रा पूरी कर चुके हैं। मसलन, 2005 में न्याय यात्रा, 2009 जनवरी में विकास यात्रा, जून 2009 में धन्यवाद यात्रा, सितंबर 2009 में प्रवास यात्रा, अप्रैल 2010 में विश्वास यात्रा, 9 नवंबर 2011 में यात्रा, सितंबर 2012 में अधिकार यात्रा, मार्च 2014 में संकल्प यात्रा, नवंबर 2014 मे संपर्क यात्रा, नवंबर 2016 में निश्चय यात्रा, दिसंबर 2017 में समीक्षा यात्रा, दिसंबर 2019 में जल जीवन हरियाली यात्रा, 2021 में समाज सुधार यात्रा। और फिर एक यात्रा की शुरुआत, आखिर क्यों?
समाधान यात्रा का मकसद क्या है?
मुख्यमंत्री नीतीश कुमार अपनी हर यात्रा का मकसद तय करते हैं और तब उस यात्रा का नामकरण करते हैं। परंतु, इस बार समाधान यात्रा का नाम रखते ही राजनीतिक गलियारों में कई सवालों के जवाब खोजे जाने लगे। आखिर नीतीश जी किस समस्या का समाधान करने निकले हैं? वर्तमान परिप्रेक्ष्य में ये कहा जा रहा है कि राजद की ओर से की जाने वाली अभद्र टिप्पणी से वे दबाव में हैं।
राजद के पूर्व कृषि मंत्री सुधाकर सिंह के उनके (नीतीश) रोड मॉडल कृषि रोड मैप को एक सिरे से नकारने के बाद पार्टी में बने रहने के कारण भी नीतीश जी राहत नहीं महसूस कर रहे हैं। वजह ये भी है कि सुधाकर सिंह पर वो कार्रवाई भी नहीं हुई। इसलिए भी नीतीश जी भाजपा से अलग होने के फैसले पर भी कुछ सोचना चाहते हैं।
अब ‘शिखंडी’ प्रसंग को लेकर वो काफी परेशान दिख भी रहे हैं। खास कर तब, जब सुधाकर सिंह ने ये कहा कि ये शब्द मेरे नहीं है, ये राजद के अन्य नेताओं से उधार लिए शब्द हैं। हालांकि, इस प्रसंग में अपनी ओर से भले कुछ नहीं कहा हो, लेकिन उनकी पार्टी की ओर से लगातार प्रतिकार आ रहे हैं। इन बातों को लेकर भी जदयू के भीतर आक्रोश है। तो क्या नीतीश जी इस आक्रोश का समाधान ढूंढने निकल रहे?
शराबबंदी की असफलता कहीं वजह तो नहीं?
पिछले दिनों शराबबंदी के फेल्योर से भी नीतीश कुमार काफी परेशान हैं। जहरीली शराब से लगातार हो रही मौत उनकी शराबबंदी की असफलता की दास्तान कहती हैं। शराबबंदी की इस असफलता और मुआवजा के मामले में नीतीश कुमार की ना ने भी परेशान कर दिया है।
मुआवजे को लेकर भी भाजपा की सियासी विरोध प्रदर्शन ने भी नीतीश कुमार की धड़कनें तेज कर दी है। तो क्या शराब नीति ही उनकी मौजूदा समस्या है? जिसका समाधान के लिए निकले हैं। क्या वे इस यात्रा में जनता को समझाएंगे कि कितना जरूरी है शराबबंदी? तब फिर जनता से ही इस समस्या का समाधान खोजने जा रहे हैं कि शराब बंदी कानून समाप्त किए जाएं?
विपक्षी एकता की मुहिम पर जनमत हासिल करेंगे?
एक तर्क ये भी आ रहा है कि नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम से पहले राज्य में ही इसका मूल्यांकन करना चाहते हैं कि क्या राज्य की जनता इस निर्णय के कितने पक्ष में हैं? ऐसा इसलिए भी देश स्तर पर नीतीश कुमार को वो सफलता नहीं मिली, जितना वे सोच रहे थे। खास कर उन राज्यों से जहां की मौजूदा सरकार कांग्रेस के विरुद्ध है।
नीतीश की समाधान यात्रा पर क्या कहती बीजेपी?
भाजपा के प्रदेश प्रवक्ता रामसागर सिंह कहते हैं कि समाधान तो समस्या का होता है, नीतीश जी आप तो खुद ही समस्या हैं तो समाधान किसका ढूंढ रहे हैं? आपने इतनी बार यात्राएं कीं, मगर समस्या आज भी है। शराबबंदी असफल रहा है, मांझी आपके खिलाफ हैं। राजद का विरोध आप झेल रहे हैं। सीपीआईएमएल आपकी प्रशासनिक व्यवस्था पर सवाल उठा रही है। इसलिए नीतीश जी आप कुर्सी छोड़ दीजिए। जो आएगा समाधान निकालेगा।