भारतीय संविधान को लागू हुए 7 दशक से भी कुछ ज्यादा हो गया है। यह देश के प्रत्येक नागरिक के लिए गर्व की बात है कि हमारे संविधान निर्माताओं ने संविधान में जिन मूल्यों को स्थापित किया है उनके जरिये देश की शासन व्यवस्था का संचालन अच्छी तरह से हो रहा है। इन 7 दशकों में अनेक आंतरिक अशांतियां भी हुइ। बाहरी आक्रमण भी हुए। लेकिन हमने संविधान में समाहित मूल्यों के कारण इन सभी चुनौतियों का सफलतापूर्वक सामना किया। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने शनिवार को संविधान दिवस के अवसर पर कहा कि ऐसे समय में जबकि देश अपनी स्वतंत्रता की शताब्दी की ओर बढ़ रहा है‚ राष्ट्र को और अधिक उचाई पर ले जाने के लिए मौलिक कर्त्तव्यों का पालन करना नागरिकों की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए। प्रधानमंत्री मोदी के इस कथन का स्वागत ही नहीं बल्कि पालन भी करना चाहिए। अगर हम अधिकारों की बात करते हैं तो कर्त्तव्यों की भी बात करनी चाहिए क्योंकि दोनों एक दूसरे के पूरक हैं। लोगों को याद होगा कि प्रधानमंत्री मोदी ने रूस के राष्ट्रपति ब्लादिमीर पुतिन को नसीहत देते हुए कहा था कि यह युग युद्ध का नहीं है। उनके इस सद्विचार का पूरी दुनिया के नेताओं ने समर्थन किया था। इसी तर्ज पर उन्होंने अमृतकाल यानी एक विकसित राष्ट्र के रूप में उभरने के लिए अगले २५ वर्षों की यात्रा को ‘कर्त्तव्य काल’–मौलिक कर्त्तव्यों को पूरा करने का युग करार दिया। उन्होंने कहा ‘आजादी का अमृतकाल देश के प्रति कर्त्तव्य का समय है। लोग हों या संस्थान‚ हमारे कर्त्तव्य हमारी पहली प्राथमिकता हैं।’ भारत के मूल संविधान में नागरिकों के मौलिक अधिकारों और राज्य के नीति निर्देशक सिद्धांतों का उल्लेख तो किया गया था‚ लेकिन कर्त्तव्यों का कहीं वर्णन नहीं था। संविधान में मौलिक कर्त्तव्यों को जोडने का उद्देश्य देशभक्ति की भावना को बढ़ावा देना और भारत की एकता एवं अखंड़ता को बढ़ावा देना था। भारत अब अपनी आजादी की शताब्दी मनाने की ओर बढ़ रहा है। इसलिए शासन के तीनों अंगों से अपेक्षा की जानी चाहिए कि देश के आम नागरिकों की दशा सुधारने के लिए संवैधानिक मूल्यों को और सशक्त बनाया जाएगा। इन ७ दशकों में विधि के शासन का क्रियान्वयन ठीक तरीके से नहीं हो पाया है‚ जिसके कारण समानता का लक्ष्य पूरा नहीं हो पा रहा है। उम्मीद की जानी चाहिए कि कार्यपालिका‚ विधायिका और न्यायपालिका‚ सभी मिलकर इस दिशा में काम करेंगे।
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