लेफ्टिनेंट जनरल असीम मुनीर पाकिस्तान के नए आर्मी चीफ होंगे। वे ISI के चीफ रह चुके हैं। अब वो जनरल कमर जावेद बाजवा की जगह लेंगे। बाजवा 29 नवंबर को रिटायर हो रहे हैं। जनरल मुनीर वही हैं, जिन्होंने पूर्व PM इमरान खान को आसपास मौजूद भ्रष्टाचार के बारे में बताया था। इसके बाद ही उन्हें उनके पद से हटा दिया गया था। 14 फरवरी 2019 को हुए पुलवामा हमले में भी असीम मुनील की साजिश थी।
असीम 2018-2019 में 8 महीनों के लिए ISI चीफ रह चुके हैं। इमरान खान ने अपने करीबी फैज हमीद को ISI चीफ बना दिया था और गुजरांवाला कॉर्प्स कमांडर के तौर पर मुनीर का ट्रांसफर कर दिया था। असीम को 2018 में टू-स्टार जनरल के रैंक पर प्रमोट किया गया था, लेकिन उन्होंने इस पोस्ट को 2 महीने बाद जॉइन किया। लेफ्टिनेंट जनरल के तौर पर उनका 4 साल का कार्यकाल 27 नवंबर को खत्म होगा।
सेना के लिए वेक-अप कॉल
इस साल अप्रैल में इमरान खान को प्रधानमंत्री पद से हटाने के बाद देश की सर्वशक्तिशाली सेना के खिलाफ अभूतपूर्व प्रतिक्रिया हुई है।
पाकिस्तान तहरीक-ए-इंसाफ (पीटीआई) के प्रमुख इमरान खान द्वारा सीधे तौर पर अपने पर हमला करने का आरोप लगाने के बाद लोग अब सड़कों पर सेना विरोधी भावनाओं को खुलकर व्यक्त कर रहे हैं। पाकिस्तान भर में आयोजित रैलियों में प्रदशर्नकारियों ने खान के समर्थन में और सेना के खिलाफ नारे लगाए हैं। रैली में खान पर हत्या के असफल प्रयास के बाद। पेशावर में कॉर्प्स कमांडर के घर के सामने सैकड़ों प्रदशर्नकारी जमा हुए और सेना विरोधी नारे लगाए। इससे पहले पाकिस्तान में यह अकल्पनीय था।
वर्तमान में पाकिस्तानी समाज में सेना विरोधी भावना तेजी से फैल रही है। सोशल मीडिया पर लोग सेना के खिलाफ अपनी राय रखते रहते हैं। सोशल मीडिया खातों को निलंबित किए जाने या गिरफ्तार किए जाने की धमकी के बावजूद। सेना के लिए यह चिंताजनक स्थिति है क्योंकि पाकिस्तान सैन्य राज्य है, और सेना ने अपने अधिकांश अस्तित्व के दौरान शासक की भूमिका निभाई है। यह इस तथ्य से स्पष्ट है कि 1947 में पाकिस्तान की स्थापना के बाद से किसी भी प्रधानमंत्री ने पूरे पांच साल का संसदीय कार्यकाल पूरा नहीं किया है, और जनरलों ने कई मौकों पर देश पर सीधे शासन किया है। खान का मुख्य समर्थन आधार पाकिस्तान के शहरी मध्य वर्ग से आता है।
पाकिस्तानी सेना खुद को पाकिस्तान के एकमात्र गैर-सामंती, गैर-वंशवादी और शिक्षित-मध्यवर्गीय संगठन के रूप में देखती है, और समाज के इस वर्ग में सेना हमेशा लोकप्रिय रही है। आश्चर्य की बात नहीं है कि खान को अब सेना के बड़े हिस्से में लोकप्रिय माना जाता है। यह कहना गलत या अतिश्योक्ति नहीं होगी कि पीटीआई प्रमुख पाकिस्तान के इतिहास में पहले राजनेता हैं, जिन्हें सेना के नेतृत्व से लड़ते हुए सेना के भीतर से भी काफी अच्छा समर्थन प्राप्त है। अब तक इमरान की सबसे बड़ी राजनीतिक उपलब्धि यह है कि वह जनता के बीच सेना के शीर्ष नेतृत्व को सत्ता के भूखे जनरलों के रूप में प्रदर्शित करने में सक्षम रहे हैं। पाकिस्तान सेना के मुख्यालय रावलपिंडी ने हमेशा इस कथन को आगे बढ़ाया है कि अधिकांश राजनीतिक नेता भ्रष्ट हैं, और देश के सामने आने वाली सभी कठिनाइयों के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार हैं, और सेना ही एकमात्र संस्था है, जो व्यवस्था ला सकती है, और स्थिरता व सुरक्षा सुनिश्चित कर सकती है।
लेकिन असल बात यह है कि लंबे सैन्य शासन ने पाकिस्तान की राजनीति, अर्थव्यवस्था और विदेश नीति पर गंभीर नकारात्मक प्रभाव छोड़े हैं। पाकिस्तान में लंबे सैन्य शासन का सबसे स्थायी प्रभाव इसका घटता हुआ राज्य संविधान है। इतने आवेशित वातावरण के साथ और इतने सारे प्रचलित विरोधी भावनाओं के साथ। यह केवल समय की बात है जब आम पाकिस्तानी सेना में विश्वास खो देंगे और इसे सिर्फ एक अन्य राजनीतिक संगठन के रूप में मानेंगे। सेना ने कई बार कहा है कि वह तटस्थ है, और अराजनैतिक होना चाहती है। लेकिन पाकिस्तान के इतिहास में पहली बार एक राजनीतिक प्रेस कॉन्फ्रेंस को इंटर-सर्विसेज इंटेलिजेंस (आईएसआई) के प्रमुख लेफ्टिनेंट जनरल नदीम अंजुम और इंटर-सर्विसेज पब्लिक रिलेशंस (आईएसपीआर) के महानिदेशक लेफ्टिनेंट जनरल बाबर इफ्तिखार ने संबोधित किया। और फिर से दोहराया गया कि सेना अराजनीतिक रहेगी। लेकिन इस दावे के विपरीत तथ्य यह है कि सैन्य प्रतिष्ठान देश की सबसे शक्तिशाली राजनीतिक शक्ति है।
सत्ता की राजनीति से पीछे हटना सामरिक प्रतीत होता है, और पूर्ण त्याग का संकेत नहीं देता। यह सिर्फ रणनीति बदलने की बात है। देश में चल रहे राजनीतिक टकराव और बढ़ते ध्रुवीकरण के साथ शक्ति का संतुलन अभी भी सेना के पास बना हुआ है। इतिहास के पन्नों में जनरल कमर जावेद बाजवा को अलग तरह से आंका जाएगा। शायद अधिक आलोचनात्मक रूप से। जैसा कि उन्होंने सरल माशर्ल लॉ का चयन करने की बजाय एक सरकार को हटाने के लिए इंजीनियरिंग द्वारा लोकतांत्रिक व्यवस्था के साथ छेड़छाड़ की, और बाद में, एक प्रॉक्सी को आगे बढ़ाया जो अब सैन्य बूटों की सीमाओं से बाहर निकल गया है।
अतीत में सेना लोकतंत्र के साथ किए गए किसी भी प्रयोग के दोष से बच गई जैसे-प्रत्यक्ष माशर्ल लॉ, फील्ड माशर्ल अयूब खान की निर्देशित लोकतंत्र अवधारणा और जनरल बाजवा की सरकार का संकर रूप। लेकिन अब विभिन्न कारणों से आम लोगों का धैर्य समाप्त होता जा रहा है जैसे-राजनीतिक अभिजात वर्ग के प्रति गुस्सा, बढ़ती महंगाई, कुशासन और वर्तमान राजनीतिक अस्थिरता। और लोग किसी भी तरह की राजनीतिक व्यवस्था को बर्दाश्त करने के मूड में नहीं हैं, जो लोगों की इच्छा को ध्यान में न रखे। वित्तीय राजधानी कराची और पंजाब के सबसे अधिक आबादी वाले प्रांत में स्थानीय चुनावों में खान की पार्टी की मौजूदा जीत को राष्ट्रीय मनोदशा के लिए लिटमस टेस्ट के रूप में देखा गया है। साथ ही, सेना द्वारा अब तक इमरान पर दबाव डालने के सभी हथकंडों ने उन्हें डराने की बजाय और लोकप्रिय बना दिया है।
यह भी ध्यान दिया जाना चाहिए कि इमरान खान का बड़ा समर्थन आधार पंजाब से आता है, जो पाकिस्तान सेना का मूल भी है। सेना के लिए बलूचों का नरसंहार करना, या बंगालियों का कत्ल करना, या सिंधी और पश्तूनों को मारना एक बात है, लेकिन पंजाब में ऐसा करना दूसरी बात है। इससे सेना के लिए पीटीआई प्रमुख और उनके समर्थकों पर बड़े पैमाने पर कार्रवाई करना बहुत मुश्किल हो जा रहा है। यह वास्तव में सत्ता के गलियारे को छोड़कर बैरकों में जाने के लिए पाकिस्तानी सेना के लिए एक वेकअप कॉल है अन्यथा उनका हश्र म्यांमार के सैन्य जुन्टा के समान हो सकता है, जहां जून्टा अपने शासन के खिलाफ गृह युद्ध का सामना कर रही है।