एलन मस्क ने जैसे ही ट्विटर को खरीदा वैसे ही ‘ब्लूटिक’ वालों की दुनिया में हडकंप मच गया। मस्क ने कहा कि वे ‘ट्विटर’ को ‘जनतंात्रिक’ बना रहे हैं। अब ‘ब्लूटिक’ फ्री में किसी को नहीं मिलेगा। ‘ब्लूटिक’ के लिए कंपनी को अब हर महीने ८ डॉलर की फीस देनी होगी। इस ‘जनतंत्रीकरण’ से बहुत से ‘ब्लूटिकियों’ को बडी परेशानी हुई। वे हाय–हाय करने लगे कि ये क्या बात हुई कि अब तक जो फ्री था उसी पर ‘फीस’ लगा दी।
ब्लूटिकियों’ के इस रुदन के पीछे उनकी मुफ्तखोरी की आदत है। ऐसे लोग सोचते हैं कि सोशल मीडिया फ्री के प्लेटफार्म हैं‚ उनको वैसा ही रहने देना चाहिए। अगर कुछ लोगों को ‘ब्लूटिक’ मिला है‚ तो मिलते रहना चाहिए। ‘ब्लूटिक’ को देने का खेल ट्विटर कंपनी के पिछले मालिक ने चलाया था। ‘ब्लूटिक’ माने ऐसा ‘स्पेशल ट्विटराती’ जिसके ‘ट्वीट’ कंपनी के हिसाब से अधिक ‘सत्ता’ और ‘जनता’ व समकालीन ‘राजनीति’ पर प्रभाव डालने वाले होते‚ जो खूब ‘वायरल’ होते और जिनको पसंद करने वालों की संख्या हजारों से अधिक होती।
पूर्व–मालिकों ने ‘ब्लूटिक’ को एक प्रकार की राजनीतिक हथियार में बदल दिया था। यह उसे ही दिया जाता जो अपने–अपने देशों की राज्य सत्ताओं का तीखा आलोचक नजर आता। जो जितना उग्र आलोचक होता‚ उतना ही वह ‘ब्लिूटक’ के लायक हो जाता। उदाहरण के लिए‚ अपने यहां पिछले दिनों ऐसे कई मामूली से एक्टिविस्टिों और सेलीब्रिटीज को कंपनी ने ‘ब्लूटिक’ की उपाधि दी जिन्होंने सत्ता के विरोध में अपनी आवाज बुलंद की‚ उसके खिलाफ अभियान चलाए और लोगों को प्रेरित किया।
यह ‘ब्लूटिक’ एक ‘टिक’ का एक निशान होता जो उस ‘ट्विटराती’ (ट्विटर का उपयोग करने वाले) को विशिष्ट हैसियत देे देता। इससे ‘ट्विटर’ जैसे ‘माइको प्लेटफार्म’ की दुनिया दो तरह की हो गई। एक वर्ग उनका हो गया जिनको ‘ब्लूटिक’ नहीं दिया गया। दूसरा वर्ग उनका हो गया जिनको ‘ब्लूटिक’ दिया गया। इस तरह ‘ट्विटर’ ने ‘ट्विटरातियों’ को दो भागों में बांट दियाः एक ‘सामान्य ट्विटराती’‚ दूसरे ‘ब्लूटिकिए ट्विटराती’। एक ‘थर्ड क्लास ट्विटराती’‚ दूसरा ‘फर्स्ट क्लास ट्विटराती।’ ‘ब्लूटिक’ को फ्री में देने के पीछे भी एक राजनीति थी। जो ‘ट्विटराती’ विभिन्न मुद्दों पर अपने ट्वीटों के जरिए ट्विटर की विचारधारात्मक राजनीति के पोषक होते‚ उनको ‘ब्लूटिक’ जल्दी दिया जाता और जो ट्विटर की राजनीति को पुष्ट करने वाली लाइन न लेते‚ उनको ‘ब्लूटिक’ नहीं दिया जाता।
पिछले ही दिनों हमने देखा कि ऐसे बहुत सों को ‘ब्लूटिक’ दिया गया जिन्होंने अपने ट्वीटों में एक खास किस्म की राजनीति को आगे बढाने की कोशिश की। ऐसे ‘ब्लूटिकिए’ सामान्य ‘ट्विटरातियों’ की अपेक्षा अपने को ‘स्पेशल क्लास’ वाला मानते। वे अपने को ‘ट्विटर’ का प्रिय हीरो मानते। उनको लगता कि उनका एक ट्वीट देश को हिलाने के लिए काफी है। वे बडे ही प्रभावशाली हैं यानी बडे ‘इन्फ्लूएंसर’ हैं। इन्फ्लूएंसर’ शब्द यहीं से परवान चढा और मीडिया के शब्दकोश का हिस्सा बना।
कुछ पहले तक ऐसे लोगों को सोशल मीडिया में ‘मूवर’ और ‘शेकर’ कहा जाता था। अब ऐसे लोगों को सोशल मीडिया का ‘इन्फ्लूएंसर’ कहा जाने लगा। अपने यहां भी ऐसे कई ‘इन्फ्लूएंसर’ पैदा कर दिए गए जो साक्षात् जीवन में कुछ नहीं थे लेकिन सोशल मीडिया में उनकी धाक थी। ‘ब्लूटिक’ मिलते ही मीडिया में और समाज में उनकी पूछ बढ गई। टीवी वाले बुलाने लगे। उनकी राय की कीमत बढ गई। हर घटना पर उनके कमेंट जरूरी माने जाने लगे। उनकी चरचा होने लगी। वे मीडिया की सुर्खियों में रहने लगे। यों वे इतने महत्व के हकदार नहीं थे‚ न हैं लेकिन ‘ब्लूटिक’ ने उनको विशेष दरजे का नागरिक बना दिया।
यों ऐसे लोग खुद को बडा ही जनतांत्रिक‚ समतावादी‚ न्यायवादी बताते लेकिन अपने ‘ब्लूटिकिए’ के स्पेशल दरजे पर गर्व करते जैसे कि वे कुछ खास हैं। ट्विटर ने इस तरह ‘पॉलिटीकली करेक्ट’ राजनीति करने वालों को ‘फ्री’ में ‘ब्लूटिक’ देकर ‘ब्लूटिकियों’ की एक पूरी जमात बना दी। अगर ट्विटर के नये मालिक एलन मस्क ने इस भेदभाव को खत्म करने के साथ कह दिया कि किसी को ब्लूटिक चाहिए तो उसे हर महीने ८ डॉलर की फीस ‘ट्विटर’ को ‘पे’ करनी होगी। जब तक ब्लूटिक सेंत में मिलता रहा तब तक ‘ब्लूटिकिए’ मस्त थे। अब जब जेब से पैसा ढीला करने की बात आई तो रोने लगे।
एक शाम एक चैनल पर उसके कई रिपोर्टर व एंकर ब्लूटिक पर फीस लगा देने को लेकर बहस कर रहे थे। वे सब ‘ब्लूटिक’ वाले थे। उनको फ्री का ‘ब्लूटिक मिला हुआ था लेकिन जब उन्होंने एक दूसरे से पूछा कि क्या अब ८ डॉलर महीने देकर ‘ब्लूटिक’ बने रहोगे तो कइयों ने कहा कि ‘सोचेंगे’। कहने की जरूरत नहीं कि यह ‘ब्लूटिकिया क्लास’ खासी मुफ्तखोर है। जब तक ‘ब्लूटिक’ फ्री में मिलता रहा‚ लेते रहे लेकिन जैसे ही फीस बात आई तो मस्क की आलोचना करने लगे।
हमारी राय में एलन मस्क ने जो किया है‚ सही किया है। आज के समय में कुछ भी फ्री नहीं होता। ‘नो फ्री लंच इन कैपिटलिज्म’।