राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने ‘इंडि़या वाटर वीक’ में अपने संबोधन में जिन चिंताओं का इजहार किया है‚ उन्हें वैज्ञानिकों‚ नगर नियोजकों और नवोन्मेषकों को चुनौती के तौर पर स्वीकार करना चाहिए। तकनीक विकसित करनेका प्रयास करके जल संसाधनों के संरक्षण में मदद करनी चाहिए। जल संरक्षण में प्रौद्योगिकी महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकती है। महामहिम का यह कथन पूर्णतया सत्य है। बढ़ती आबादी के लिए स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना वर्तमान समय में सरकारों के लिए बड़़ी चुनौती है‚ जिससे समाज के सभी वर्गों के सहयोग के बिना पार नहीं पाया जा सकता। भावी पीढ़ी की जरूरतों को पूरा करने के लिए प्रभावी जल संरक्षण जरूरी है। आम लोगों‚ किसानों‚ उद्योगपतियों और बच्चों को जल संरक्षण को अपने दैनिक जीवन में व्यवहार का हिस्सा बनाना होगा। राष्ट्रपति का यह कहना बिल्कुल दुरुस्त है कि बढ़ती आबादी के कारण हमारी नदियों और जलाशयों की स्थिति बिगड़़ रही है‚ गांवों के तालाब सूख रहे हैं‚ और कई स्थानीय नदियां तो विलुप्त ही हो गई हैं। सच है कि खेतीबाड़़ी और उद्योगों में पानी का अत्यधिक दोहन किया जा रहा है। पृथ्वी पर पर्यावरण संतुलन बिगड़़ रहा है‚ मौसम का मिजाज बदल रहा है‚ और बेमौसम अत्यधिक वर्षा आम हो गई है। ऐसे हालात में सभी को जल संरक्षण के प्रति जागरूक हो जाना चाहिए। आज स्वच्छ जल की उपलब्धता पूरी दुनिया के लिए सबसे बड़़ी जरूरत है। इस तरह यह राष्ट्रीय सुरक्षा से भी जुड़़ा मुद्दा बन चुका है क्योंकि उपलब्ध मीठे पानी की मात्रा दो या दो से अधिक देशों के बीच ही फैली हुई है। इसलिए संयुक्त जल संसाधन ऐसा मुद्दा है जिसके लिए अंतरराष्ट्रीय सहयोग आवश्यक है। देश में लगभग ८० प्रतिशत जल संसाधनों का उपयोग कृषि कार्यों में किया जाता है। चूंकि बेमौसम भारी बारिश अब आम बात हो गई है‚ इसलिए बारिा के पानी का प्रबंधन करना भी जरूरी उपाय है। ऐसी फसल उगाई जाएं जिनमें पानी की खपत कम हो। गुजरात का सौराष्ट्र क्षेत्र अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण जल के अभाव वाला क्षेत्र था। जल प्रबंधन के उपायों के कारण अब इस इलाके की तस्वीर ही बदल गई है। ऐसे प्रयोग पूरे देश में किए जाने जरूरी हैं ताकि देशवासियों को राहत मिल सके।
ईरान में परमाणु बम बनाने के अबतक कोई सबूत नहीं, फिर क्यों किया हुआ हमला…..
5 फरवरी 2003 को अमेरिका के विदेश मंत्री कोलिन पॉवेल संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में एक शीशी लहराने लगे। दावा...