मां भवानी के नवरात्रि उनके 9 रूपों का पूजन करने के लिए प्रचलित हैं। नवरात्रि के छठे दिन देवी कात्यायनी का पूजन करना एवं उनके विग्रह का ध्यान करना शुभ फल देता है। देवी कात्यायनी का नाम कात्या ऋषि के नाम पर पड़ा, इनके विषय में कई कथाएं प्रचलित हैं और इनका पूजन करना एक खास महत्व रखता है। एक मान्यता के अनुसार कात्या ऋषि के घोर तपस्या के पश्चात उन्हें मां भगवती ने पुत्री के रूप में प्रकट होने का वरदान दिया था।
1100 रुपए मूल्य की जन्म कुंडली मुफ्त में पाएं। अपनी जन्म तिथि अपने नाम, जन्म के समय और जन्म के स्थान के साथ हमें 96189-89025 पर व्हाट्सएप करें
Story of Devi Katyayani: एक अन्य मान्यता के अनुसार ब्रह्मा जी की मानस पुत्री सृष्टि देवी को ही मां कात्यायनी का रूप माना जाता है। पूर्वी भारत के राज्यों में बिहार, उत्तर प्रदेश और झारखंड में इन देवी को छठ मैया के रूप में पूजा जाता है। इसका उल्लेख ब्रह्मवैवर्त में मिलता है। देवी कात्यायनी ने ही ऋषि कात्या के घर पुत्री रूप में पैदा होकर महिषासुर का वध किया था। इसी कारण से विजयदशमी का पर्व देवी कात्यायनी का महिषासुर के वध करने के उपलक्ष्य में श्री राम के रावण वध के पूर्व के समय से ही मनाया जा रहा है। देवी कात्यायनी की शक्ति व अनुकंपा से ही गोपियों ने भगवान श्री कृष्ण को पति के रूप में पाया था। इसके साथ ही श्री राम ने रावण से युद्ध के पहले देवी कात्यायनी का पूजन किया था और द्वापर युग में श्री कृष्ण ने पांडवों से युद्ध से पहले माता कात्यायनी का आवाहन व पूजन करवाया था।
Maa Katyayani Puja: मां कात्यायनी के विग्रह को लाल आसन, लाल पुष्पों, लाल वस्त्रों से सजाते हुए उनकी पंचोपचार से पूजा करें। मनोकामना सिद्धि के लिए उन्हें लाल अनार अवश्य चढ़ाएं।
6th day of navratri mantra मंत्र: ॐ कात्यायनी देवी नमः
इस मंत्र का जाप 108 बार करते हुए मां कात्यायनी को 108 गुड़हल के फूल अर्पित करें। ऐसा करने पर न केवल इच्छा पूर्ति होती है अपितु सांसारिक बंधनों से या कष्टों से मुक्ति मिलती है।
जिन विवाह योग कन्याओं का विवाह न हो रहा हो अथवा जिन्हें अपने पति से भरपूप प्रेम प्राप्त करने की इच्छा हो उन्हें देवी कात्यायनी को 16 श्रृंगार करना चाहिए और इसके साथ ही उनके विग्रह का ध्यान करते हुए उनसे इच्छित वर का वरदान मांगना चाहिए। देवी कात्यायनी की पूजा कालिंदी के पुष्पों से करने पर मां शीघ्र प्रसन्न होती हैं।
कात्यायनी नवदुर्गा या हिंदू देवी पार्वती (शक्ति) के नौ रूपों में छठवीं रूप हैं।
‘कात्यायनी’ अमरकोष में पार्वती के लिए दूसरा नाम है, संस्कृत शब्दकोश में उमा, कात्यायनी, गौरी, काली, हेेमावती व ईश्वरी इन्हीं के अन्य नाम हैं। शक्तिवाद में उन्हें शक्ति या दुर्गा, जिसमे भद्रकाली और चंडिका भी शामिल है, में भी प्रचलित हैं। यजुर्वेद के तैत्तिरीय आरण्यक में उनका उल्लेख प्रथम किया है। स्कन्द पुराण में उल्लेख है कि वे परमेश्वर के नैसर्गिक क्रोध से उत्पन्न हुई थीं , जिन्होंने देवी पार्वती द्वारा दी गई सिंह पर आरूढ़ होकर महिषासुर का वध किया। वे शक्ति की आदि रूपा है, जिसका उल्लेख पाणिनि पर पतञ्जलि के महाभाष्य में किया गया है, जो दूसरी शताब्दी ईसा पूर्व में रचित है। उनका वर्णन देवीभागवत पुराण, और मार्कंडेय ऋषि द्वारा रचित मार्कंडेय पुराण के देवी महात्म्य में किया गया है जिसे ४०० से ५०० ईसा में लिपिबद्ध किया गया था। बौद्ध और जैन ग्रंथों और कई तांत्रिक ग्रंथों, विशेष रूप से कालिका पुराण (१० वीं शताब्दी) में उनका उल्लेख है, जिसमें उद्यान या उड़ीसा में देवी कात्यायनी और भगवान जगन्नाथ का स्थान बताया गया है।
परम्परागत रूप से देवी दुर्गा की तरह वे लाल रंग से जुड़ी हुई हैं। नवरात्रि उत्सव के षष्ठी को उनकी पूजा की जाती है। उस दिन साधक का मन ‘आज्ञा चक्र’ में स्थित होता है। योगसाधना में इस आज्ञा चक्र का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। इस चक्र में स्थित मन वाला साधक माँ कात्यायनी के चरणों में अपना सर्वस्व निवेदित कर देता है। परिपूर्ण आत्मदान करने वाले ऐसे भक्तों को सहज भाव से माँ के दर्शन प्राप्त हो जाते हैं।
श्लोक
चन्द्रहासोज्ज्वलकरा शार्दूलवरवाहन ।
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी ॥
कथा
माँ का नाम कात्यायनी कैसे पड़ा इसकी भी एक कथा है- कत नामक एक प्रसिद्ध महर्षि थे। उनके पुत्र ऋषि कात्य हुए। इन्हीं कात्य के गोत्र में विश्वप्रसिद्ध महर्षि कात्यायन उत्पन्न हुए थे। इन्होंने भगवती पराम्बा की उपासना करते हुए बहुत वर्षों तक बड़ी कठिन तपस्या की थी। उनकी इच्छा थी माँ भगवती उनके घर पुत्री के रूप में जन्म लें। माँ भगवती ने उनकी यह प्रार्थना स्वीकार कर ली।
कुछ समय पश्चात जब दानव महिषासुर का अत्याचार पृथ्वी पर बढ़ गया तब भगवान ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों ने अपने-अपने तेज का अंश देकर महिषासुर के विनाश के लिए एक देवी को उत्पन्न किया। महर्षि कात्यायन ने सर्वप्रथम इनकी पूजा की। इसी कारण से यह कात्यायनी कहलाईं।
ऐसी भी कथा मिलती है कि ये महर्षि कात्यायन के वहाँ पुत्री रूप में उत्पन्न हुई थीं। आश्विन कृष्ण चतुर्दशी को जन्म लेकर शुक्त सप्तमी, अष्टमी तथा नवमी तक तीन दिन इन्होंने कात्यायन ऋषि की पूजा ग्रहण कर दशमी को महिषासुर का वध किया था।
माँ कात्यायनी अमोघ फलदायिनी हैं। भगवान कृष्ण को पतिरूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियों ने इन्हीं की पूजा कालिन्दी-यमुना के तट पर की थी। ये ब्रजमंडल की अधिष्ठात्री देवी के रूप में प्रतिष्ठित हैं।
माँ कात्यायनी का स्वरूप अत्यंत चमकीला और भास्वर है। इनकी चार भुजाएँ हैं। माताजी का दाहिनी तरफ का ऊपरवाला हाथ अभयमुद्रा में तथा नीचे वाला वरमुद्रा में है। बाईं तरफ के ऊपरवाले हाथ में तलवार और नीचे वाले हाथ में कमल-पुष्प सुशोभित है। इनका वाहन सिंह है।
माँ कात्यायनी की भक्ति और उपासना द्वारा मनुष्य को बड़ी सरलता से अर्थ, धर्म, काम, मोक्ष चारों फलों की प्राप्ति हो जाती है। वह इस लोक में स्थित रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव से युक्त हो जाता है।
उपासना
नवरात्रि का छठा दिन माँ कात्यायनी की उपासना का दिन होता है। इनके पूजन से अद्भुत शक्ति का संचार होता है व दुश्मनों का संहार करने में ये सक्षम बनाती हैं। इनका ध्यान गोधुली बेला में करना होता है। प्रत्येक सर्वसाधारण के लिए आराधना योग्य यह श्लोक सरल और स्पष्ट है। माँ जगदम्बे की भक्ति पाने के लिए इसे कंठस्थ कर नवरात्रि में छठे दिन इसका जाप करना चाहिए।
या देवी सर्वभूतेषु शक्ति रूपेण संस्थिता। नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नम:॥
अर्थ : हे माँ! सर्वत्र विराजमान और शक्ति -रूपिणी प्रसिद्ध अम्बे, आपको मेरा बार-बार प्रणाम है। या मैं आपको बारंबार प्रणाम करता हूँ।
इसके अतिरिक्त जिन कन्याओ के विवाह मे विलम्ब हो रहा हो, उन्हे इस दिन माँ कात्यायनी की उपासना अवश्य करनी चाहिए, जिससे उन्हे मनोवान्छित वर की प्राप्ति होती है।
विवाह के लिये कात्यायनी मन्त्र–
ॐ कात्यायनी महामाये महायोगिन्यधीश्वरि । नंदगोपसुतम् देवि पतिम् मे कुरुते नम:॥
महिमा
माँ को जो सच्चे मन से याद करता है उसके रोग, शोक, संताप, भय आदि सर्वथा विनष्ट हो जाते हैं। जन्म-जन्मांतर के पापों को विनष्ट करने के लिए माँ की शरणागत होकर उनकी पूजा-उपासना के लिए तत्पर होना चाहिए।